Menu
blogid : 12009 postid : 1130523

उत्तर प्रदेश आरटीआई एक्ट की मूल मंशा…..

sach ka aaina
sach ka aaina
  • 221 Posts
  • 935 Comments

उत्तर प्रदेश आरटीआई एक्ट की मूल मंशा…..

लखनऊ/09 जनवरी 2016/ यूपी की अखिलेश सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश सूचना का अधिकार नियमावली 2015 जारी करने के बाद आरटीआई एक्टिविस्ट उद्देलित हैं और पारदर्शिता के क्षेत्र में विगत 15 वर्षों से काम कर रहे लखनऊ के सामाजिक संगठन येश्वर्याज सेवा संस्थान की सचिव उर्वशी शर्मा की अगुआई में लामबंद हो रहे हैं. आरटीआई कार्यकर्ताओं ने इस नियमावली को सूचना का
अधिकार अधिनियम 2005 की मूल मंशा के खिलाफ बताते हुए आशंका व्यक्त की है कि आरटीआई एक्ट की धार कुंद करने के लिए बनायी गयी यूपी की  यह नयी आरटीआई नियमावली सूचना आयोग में भ्रष्टाचार बढायेगी. सामाजिक और आरटीआई एक्टिविस्ट उर्वशी ने बताया कि उन्होंने सूबे के
राज्यपाल राम नाइक और  मुख्य राज्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी समेत आयोग के सचिव को और रजिस्ट्रार को भी इस नियमावली पर नियमवार आपत्तियां भेजकर इस नयी आरटीआई नियमावली के अनेकों प्राविधानों को गैरकानूनी और जनविरोधी बताते हुए नियमावली के गैरकानूनी प्राविधानों पर आपत्तियां देकर इस नियमावली के क्रियान्वयन पर तत्काल रोक लगाकर गैरकानूनी प्राविधानों को हटाने के बाद ही नियमावली को लागू करने की मांग की है l उर्वशी ने बताया कि उनका संगठन आने बाले सोमवार तारीख ११-१-२०१६ को आरटीआई एक्टिविस्टों के साथ उत्तर प्रदेश के सभी 9 सूचना आयुक्तों से भेंट कर उन सभी को भी इस नियमावली की खामियों से अवगत कराएगा.
येश्यर्याज द्वारा उठायी गयी 12 आपत्तियां नीचे दी जा रही हैं :
1-      नियमावली के नियम 2(ज) के द्वारा आरटीआई आवेदकों के लिए प्रारूपों का निर्धारण करना आरटीआई एक्ट की मूल मंशा के विरुद्ध है और आरटीआई एक्ट की धारा 5(3) व 6(1) के परंतुक का उल्लंघनकारी है l भारत सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने कार्यालय ज्ञाप No. 10/1/2013-IR दिनांक 06/10/2015 के द्वारा स्पष्ट किया है कि आरटीआई एक्ट के प्रयोग के लिए
कोई प्रारूप-निर्धारण नहीं किया जा सकता है l
2-  नियमावली के नियम 4 के अंतर्गत सूचना अभिप्राप्त करने के लिए अनुरोध को शासित करने बाले नियम 4(1), 4(2) आरटीआई एक्ट की मूल मंशा के विरुद्ध हैं और आरटीआई एक्ट की धारा 5(3) व 6(1) के परंतुक का उल्लंघनकारी होने के कारण गैरकानूनी हैं l
3-      आरटीआई एक्ट सूचना दिलाने का अधिनियम है किन्तु नियमावली के नियम 4(5) के परंतुक द्वारा सूचना देने से मना करने का नियम बनाया गया है जो आरटीआई एक्ट की मूल मंशा के विरुद्ध है और आरटीआई एक्ट की धारा 6(1),7(1),7(3) और 7(5) के परंतुक के साथ पठित धारा 6(3) का उल्लंघनकारी होने के कारण गैर-कानूनी है l
4-      नियमावली के नियम 5 में गरीबी रेखा से नीचे रहने बाले आरटीआई आवेदकों को निःशुल्क सूचना उपलब्ध कराने का कोई भी उल्लेख न होने के कारण यह आरटीआई एक्ट की मूल मंशा के विरुद्ध है और आरटीआई एक्ट की धारा 7(5) के परंतुक का उल्लंघनकारी होने के कारण गैर-कानूनी है .
5-  नियमावली का नियम 7(2)(छः) असंगत होने के कारण गैर-कानूनी है क्योंकि उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग में की जाने वाली द्वितीय अपीलें और
शिकायतें प्रथम अपीलीय अधिकारी के विरुद्ध नहीं अपितु जनसूचना अधिकारी के ही विरुद्ध ही स्वीकार की जा रही हैं l
6-  नियमावली के नियम 9(1) में  आरटीआई आवेदकों को आयोग में जबरन समन करने की व्यवस्था गैर-कानूनी है और आरटीआई एक्ट की मूल मंशा के विरुद्ध है l साथ ही साथ इसी नियमावली के नियम 9(2) के द्वारा आयोग की सुनवाइयों में राज्य लोक सूचना अधिकारी की उपस्थिति की बाध्यता समाप्त कर देने और नियम 10 के द्वारा सरकारी खर्चे पर आने वाले लोकसेवकों के अनुरोध पर सुनवाई का स्थगन प्रभावी होने से अपने पैसे खर्च कर आयोग आने वाले गरीब आरटीआई आवेदकों का वित्तीय उत्पीडन होगा l
7-      नियम 9(2) के द्वारा आयोग की सुनवाइयों में  राज्य लोक सूचना अधिकारी की उपस्थिति की बाध्यता समाप्त कर देना और नियम 10 के द्वारा लोकसेवकों के अनुरोध पर सुनवाई का स्थगन प्रभावी करना गैर-कानूनी है और आरटीआई एक्ट की मूल मंशा के विरुद्ध है l साथ ही साथ ऐसा करने से लोकसेवकों में आरटीआई एक्ट के अनुपालन के प्रति डर समाप्त हो जायेगा और सूचना आयोग में भी अदालतों बाली ‘तारीख-पे-तारीख’ वाली कार्यसंस्कृति आयेगी तथा भ्रष्ट जनसूचना अधिकारी-सूचना आयुक्त गठजोड़ और भी मजबूत होने के कारण सूचना आयोग में प्रत्येक स्तर पर भ्रष्टाचार का सिस्टम पैदा होगा और पुष्ट भी होगा l
8-  नियम 11 के द्वारा राज्य लोक सूचना अधिकारी की अर्जी पर मामले को सुनवाई कर रहे आयुक्त से इतर अंतरित करने की व्यवस्था करना गैर-कानूनी है और आरटीआई एक्ट की मूल मंशा के विरुद्ध है l साथ ही साथ ऐसी व्यवस्था करने से राज्य लोक सूचना अधिकारियों द्वारा उत्तर प्रदेश के सूचना आयोग में आरटीआई एक्ट का सम्यक अनुपालन करा रहे ईमानदार सूचना आयुक्तों से अपने मामले अंतरित कराकर अपने भ्रष्ट गठजोड़ बाले सूचना आयुक्त के यहाँ पंहुचाने का कुचक्र किया जायेगा जिससे आरटीआई एक्ट का सम्यक अनुपालन करा रहे ईमानदार सूचना आयुक्तों का मनोबल गिरेगा और सूचना आयोग में धीरे-धीरे भ्रष्टाचार की व्यवस्था पुष्ट होती जायेगी l
9-  नियम 12 के द्वारा राज्य लोक सूचना अधिकारी की अर्जी पर आयोग द्वारा पारित दण्डादेश को बापस लेना अधिनियम की धारा 19(7) और 23 के प्रतिकूल होने के साथ साथ इस स्थापित विधि के भी प्रतिकूल है कि  विधायिका द्वारा स्पष्ट अधिकार दिए बिना किसी भी न्यायिक,अर्द्ध-न्यायिक या प्रशासकीय संस्था को अपने ही आदेश का रिव्यु करना या उसे बदलना अवैध होता है l उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग भी एक प्रशासकीय संस्था है और इस स्थापित विधि के अनुसार इसके द्वारा अपने आदेश को बदलना गैर-कानूनी है l  इस नियम की ओट में सूचना आयुक्तों द्वारा लोक सूचना प्राधिकारियों के दंड के आदेशों को बापस लिया जायेगा जिसके कारण एक्ट की धारा 20 निष्प्रभावी हो जायेगी और सूचना आयोग में धीरे-धीरे भ्रष्टाचार की व्यवस्था भी पुष्ट होती जायेगी l
10-     नियम 13(1) के आरटीआई आवेदक द्वारा अपील को बापस लिए जाने की व्यवस्था की गयी है जो आरटीआई एक्ट की मूल मंशा के विरुद्ध है और आरटीआई एक्ट की धारा 7(1) का उल्लंघनकारी होने के कारण गैर-कानूनी है l साथ ही इससे अपील से सम्बंधित सूचना के प्रभावित पक्ष द्वारा आरटीआई आवेदकों को धमकाकर या प्रलोभन देकर अपील को बापस कराने की घटनाओं में बढोत्तरी होगी जिससे सही आरटीआई आवेदकों को खतरा उत्पन्न होगा और दूषित उद्देश्य से आरटीआई आवेदन लगाने बाले आरटीआई आवेदकों का एक नया वर्ग सामने आएगा जिसके कारण एक्ट कमजोर भी होगा और बदनाम भी l
11- नियम 13(3) में सूचना आवेदक की मृत्यु पर उसके समस्त आरटीआई आवेदनों पर सूचना दिलाने की कार्यवाहियां रोक देने की की व्यवस्था की गयी है जो आरटीआई एक्ट की मूल मंशा के विरुद्ध है और आरटीआई एक्ट की धारा 7(1) का उल्लंघनकारी होने के कारण गैर-कानूनी है l इस असंवैधानिक व्यवस्था कर देने के चलते अब ऊंची पंहुच बाले और रसूखदार लोकसेवकों के भ्रष्टाचार के मामलों की सूचना मांगे जाने पर आरटीआई आवेदकों की सीधे-सीधे हत्याएं की जायेंगी और यूपी में आरटीआई आवेदक अब और अधिक असुरक्षित हो गए हैं l
12-  नियम 19 यूपी में दूसरी राज्यभाषा का दर्जा प्राप्त उर्दू से भेदभाव करता है और उर्दू में किये गए आरटीआई पत्राचार के हिंदी या अंग्रेजी ट्रांसलेशन को जमा करने को बाध्यकारी बनाता है l यह नियम आरटीआई एक्ट की मूल मंशा के विरुद्ध है और आरटीआई एक्ट की धारा 6(1) का उल्लंघनकारी होने के कारण गैर-कानूनी तो है ही साथ ही साथ प्रदेश की 19% मुस्लिम आबादी के साथ भेदभाव करने वाला होने के कारण अलोकतांत्रिक भी है l
नियमावली वेबलिंक…………………..
https://docdroid.net/kfmuE5e/up-rti-rules-2015.pdf.html पर उपलब्ध
है और यहाँ से डाउनलोड की जा सकती है.सुनीता दोहरे
प्रबंध सम्पादक
इण्डियन हेल्पलाइन न्यूज़

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply