ना जाने आज क्यूँ इन सत्ताधारियों के प्रति मेरी नफरत इतनी बढ़ गयी है कि दिल कर रहा है जितनी भी कटुता दिल में है उसे आज पूरी की पूरी इस सफ़ेद कागज पर उतार दूँ पर हमारा कानून इसकी इजाजत नहीं देता फिर भी जितना दर्द है उसे बयाँ नहीं करुँगी तो अन्दर ही अन्दर घुटन महसूस होती रहेगी l…..
यथार्थ इतना क्रूर है कि कोई एक घटना तमाचे की तरह गाल पर पड़ती है ! आज के आधुनिक युग में आदर्श, संस्कार, मूल्य, नैतिकता, गरिमा और दृढ़ता किस जेब में रखे सड़ रहे होते हैं सारी की सारी मर्यादाएँ देश की ‘सीताओं’ के जिम्मे क्यों आती हैं जबकि ‘राम’ के नाम पर लड़ने वाले पुरुषों में मर्यादा पुरुषोत्तम की छबि क्यों नहीं दिखाई देती? ये पूर्णतया सत्य है कि भारत मैं नारियों की स्थिति सदियो से दयनीय रही हैं। कभी पर्दा प्रथा तो कभी बालविवाह कभी सती प्रथा के नाम पर उसे प्रताड़ित किया जाता रहा है लेकिन किसी ने ये नही सोचा कि नारी अगर समाज में पुरुषों से पति, पिता, भाई, चाचा, मामा, दोस्त आदि जैसे अपने रिश्ते को जी जान से संवारती है तो अपने सम्मान को बरकरार कैसे रखा जाए वो ये बखूबी समझती है और इस क्रूरता से निजात पाने के लिए संघर्ष भी करती हैं। दूर क्यों जाते हैं हमारी सभ्यता की पहली इकाई परिवार को ही ले लीजिये। जिस घर को नारी सबसे ज्यादा सहेजती और सँवारती हैं, उसे इसी परिवार से सारी क्रूरताएं, प्रताड़नाएं, लंपटाताएं, शारीरिक दंड की स्थितियाँ मिलतीं हैं। हमारे देश में नैतिकता का पतन किस हद तक हो रहा है क्या हमारे सिस्टम में भी ऐसा कोई तरीका नहीं है जिस से इस प्रकार की हरकत पर कोई लगाम लगाई जा सके l हम विश्व की किसी भी हिस्से मे चले जाए तो हमें एसे प्रमाणिक तथ्य मिलेँगे जहाँ पुरूषों की अपनी अज्ञानतावश नारी का शोषण अकर्मण्यता से, कट्टरपथिता से, पक्षधरता से न किया हो और तो और कभी शारीरिक संरचना तो कभी संतानोपत्ति और कभी देह सुख देने वाली स्वाभाविक स्थतियों को आधार बनाकर नारी का दुरुपयोग किया जाता रहा है l आप सोच रहे होंगे क्या नारी के अपमान की रट लगा रखी है आजकल नारी और पुरुष बराबर हैं तो जनाब मैं कैसे मान लूँ इस बात को कि नारी आज भी पुरुषों के समकक्ष है l सीएम फड़नवीस की मौजूदगी में नारी सशक्तिकरण की उड़ा दी गई धज्जियां और एक प्रदेश का मुख्यमंत्री कुछ न कह सका l महाराष्ट्र के एक मंदिर का वाकया जानकर आप भी कहेंगे कि भारत में महिलाओं को समानता का अधिकार मिलने में अब भी काफी समय है। हम सबके लिए दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि नारी सशक्तिकरण को चोट पहुंचाने वाली यह घटना महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फणनवीस के मौजूदगी में हुई। घटना महाराष्ट्र के दादर स्थित स्वामी नारायण मंदिर की है। मंदिर में एक महिला पत्रकार को सबसे आगे की लाइन में धर्मगुरुओं के पास नहीं बैठने दिया गया। महिला को धर्मगुरुओं के पास न बैठाने के पीछे तर्क यह दिया गया कि ‘हमारी संस्कृति में महिलाओं को आगे या गुरु के पास बैठने की अनुमति नहीं है।’ उस वक्त मंदिर में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी मौजूद थे। लेकिन सबसे आश्चर्यजनक बात ये है कि मुख्यमंत्री ने इस बात को बड़े ही हलके स्वर में नजर अंदाज़ कर दिया एक महत्वपूर्ण पद पर बैठा व्यक्ति महिलाओं के सम्मान को लेकर चिंतित नहीं है तो आम आदमी महिलाओं के सम्मान को लेकर कैसे चिंतित हो सकता है ! जहाँ तक मैं समझती हूँ कि परिवार, समाज और देश के प्रति दोनों का समान योगदान होता है। ऐसे में कोई एक बड़ा सम्माननीय और दूसरा उससे तुच्छ कैसे हो सकता है? ऐसी स्थिति से तो स्पष्ट हो जाता है कि स्त्री-पुरुष के बीच समानता है। इसी समानता के साथ ही आवश्यक हो जाता है कि दोनों के साथ समाज का रवैया भी समान हो। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में दोनों को समान अवसर मिलें, बराबर सम्मान मिले। इसके लिए अर्द्धनारीश्वर की अवधारणा को समझना अत्यंत आवश्यक है। ईश्वर के अर्द्धनारीश्वर स्वरूप में उनके आधे शरीर को पुरुष रूप में और आधे को स्त्री रूप में प्रदर्शित किया गया है। इस अवधारणा के अनुसार दोनों में से कोई भी एक-दूसरे से न श्रेष्ठ है और न ही हीन। हालांकि दोनों स्वरूप एक-दूसरे से भिन्न हैं, एक मृदु है, कोमल है तो दूसरा कठोर परन्तु शक्ति दोनों में अप्रतिम है। स्त्री-पुरुष समानता का इससे अच्छा उदाहरण तो शायद ही हमें कहीं और मिलेगा। किसी स्त्री पर जब कोई संकट आता है तो यही समाज ये कहता नजर आता है कि अवश्य महिला में ही कमी होगी तो झूठा इल्जाम लगा दिया लेकिन समाज ये क्यूँ नहीं समझता कि नारी की अपनी एक सीमा रेखा होती है जिसे वो तभी लांघती है जब सहनशक्ति जवाब दे देती है कोई भी नारी तब तक कुछ नहीं कहती जब तक स्थिति नियंत्रण के बाहर नही हो जाती है ! आज की ये कैसी सामाजिक सोंच है जो स्त्री और पुरुष को अलग-अलग नियमों के खाकों में जकड़ देती है और पुरुष कभी देख और सुन ही नहीं पाता कि स्त्री के भीतर कितना और कैसा कैसा दर्द रिसता है। भावनात्मक वेदना तो दूर की बात है मनुष्यता के नाते जो गहरी संवेदना उपजनी चाहिए नहीं उपजती ! इस प्रकार की घटनाओ की देश में बाढ़ सी आ रही है पुरुषों द्वारा कभी बलात्कार, कभी दहेज़ हत्या, कभी ऑफिस सहकर्मी को हेय दृष्टि से देखना, कभी राह चलती महिलाओं को घूरना, महिलाओं को बराबरी का दर्जा न देना इसका मुख्य कारण दोषी को उपयुक्त दंड न देना है ! सत्य यही है कि भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है, जो अपने देश में बैठे गद्दारो पर कोई कार्यवाही नहीं करता, जहाँ लाखों अरबो का घोटाला करने वाले आजाद घूमते है, जहाँ नारियों का अपमान होता है, जहाँ हर पल नारी छली जाती है, जहाँ आतंकवादियों और बलात्कारियों के मानवाधिकारो के लिए लड़ने वाले मिल जाते है, लेकिन आतंकवादियों के हमलों में मरने वालों के लिए कोई मानवाधिकार की बात नहीं करता ! क्यूंकि भारत के सेकुलर नेता ऐसे है, जो आतंकवादियों को सम्मान देते है और राष्ट्रवादीयों को गालियां देते है यहाँ देश के नेताओं की छवि धूमिल हो चुकी है सफ़ेद लिबास में भेडिये घूम रहे हैं जहाँ तहां और किसी पर किसी भी तरह का कोई अंकुश नहीं है जहाँ तक मैं समझती हूँ कि राजनीति से चरित्र निर्माण नही होता, अच्छे चरित्र वाले मनुष्य ही राजनीति मे अपना झंडा गाड़ते हैं ! वैसे दोस्तों शराफत का पढ़ाई लिखाई से कुछ लेना देना नहीं होता अधिक पढ़े लिखे और उंचें पदों पर अगर बीमार मानसिकता वाले व्यक्ति हों तो वो सामान्य लफंगों से बहुत अधिक खतरनाक होते हैं ! सुनीता दोहरे प्रबंध सम्पादक इण्डियन हेल्पलाइन न्यूज़
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