मेहँदी लगे हाँथ कितने सुन्दर लगते है हांथों में मेहँदी की महक और सुर्ख लालिमा मेहँदी लगाने को मुझे आकर्षित करती थी सुनो तुम्हे याद है वो दिन जब हथेलयों को तुम्हारी ओर करते हुए मैंने कहा था कि देखो कितने सुन्दर लग रहे हैं मेरे हाँथ, इन हाथेलियों पर मैंने तुम्हारे नाम, तुम्हारे प्यार की इबारते लिखीं है तुमने बेमन से कहा था कि मुझे ये सब पसंद नहीं तुम कितने निष्ठुर हो गये थे उस दिन जब तुमने एक नजर भी न देखा था मेरी मेहँदी रची हथेलियों को……… तुम तो जानते थे कि मेहँदी मेरी कमजोरी है मेरी रूह, मेरी साँसों की पुकार थी मेहँदी मेरी सारी सखी, सारी भाभियाँ मेहँदी लगाती और मैं हसरत भरी निगाहों से देखती थी कि काश मैं भी रच सकती इन हथेलियों पर मेहँदी वो भाभियों कि हँसी ठिठोली कर कहना मुझसे लगा लो सुनी मेहँदी, इसकी महक से खिचे चले आंएगे पर उन्हें क्या पता कि मेरा मेहँदी लगाना तुमे पसंद नहीं सखियों से सुना था कि जितना गाढ़ा रंग होता है मेहँदी का उतनी ही हया की लाली सुर्ख हो जाती है कपोलों पर और मैं इतराने लगती थी खुद पर कि मेरे हांथों में मेहँदी तो एकदम काला रंग छोडती है मगर ना जाने क्यों एकदिन वक्त का उल्टा पहिया घूमा इस मेहँदी ने मुझसे नाता ही तोड़ लिया तुमेह कभी मेरा मेहँदी लगाना न भाया और मैं सोचती रहती कि तुम कहो कि सजा लो अपनी हथेलियों को मेहँदी से लेकिन तुम हमेशा ये कहते कि दिखावे के रिवाजों की कर्जदार मत बनो. मैं मूक, अवाक, ठगी सी तुमेह देखती और सोचती रहती, तुम कहके निकल लेते पर अब सोचती हूँ कि प्रेम कब मेहँदी के रंग का मोहताज रहा है प्रेम, इश्क, मोहब्बत तो हर युग में आज भी परवान चढ़ती है मेहँदी से भी ज्यादा सुर्ख रंग तुम्हारे प्रेम का मेरे हांथो पर चढ़ा है ये तुम्हारे प्रेम का सुर्ख रंग नही छूटेगा जन्म-जन्मान्तरों तक इसलिए आज भी बिना मेहँदी से मेरी हथेली सजीं रहतीं हैं अब इन हथेलियों पर तुम्हारे प्रेम के बूटे खूब नजर आते हैं मुझे लेकिन मन ही मन इन्तजार आज भी है कि शायद हिना से लिपटा हुआ एक धूप का टुकड़ा मेरी इन हथेलियों पर बिखर जाए और मैं इसे अपनी साँसों में महसूस कर सकूँ……………….. सुनीता दोहरे ..
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