मन सोचता है कुछ लिखूं और ऐसा लिखूं जिससे हर हफ्ते जागरण जंक्शन पर मैं ही सबसे “बेस्ट ब्लागर” लिखूं और हमेशा टॉप पर रहूँ l इसी जद्दोजहद के चलते असंभव को संभव बनाने के लिए अपनी हर पंक्ति को, हर शब्द को, हर पैराग्राफ को अपने एहसास में डुबोकर समेटती रहती हूँ l कभी कभी हंसी आती है अपनी सोच पर l और कभी मन इतना विश्वास से भर जाता है कि नहीं सुनी ! तुझे अपनी कलम से, अपनी कल्पनाओं से, अपने विचारों को पाठकों के सामने रखना है l अब मन है तो इक्षाएं हैं और जब इक्षाएं हैं तो आशा है l मन विचलित भी होगा, आशा है तो पूरी भी होगी l बाकी तमन्ना है कभी उछलती है, कभी गिरती है, कभी परेशान करती है कभी सफल होती है l वो कहते हैं कि………
मन की मन ही ना जानी, व्याकुल मन की थाह ना जानी छलने वाला खुद ही छल गया, किस्मत की किसने है जानी यूँ खड़ा पडोसी घूरे उसको, देखो फिरे है घर घर ग्यानी…………
कभी कभी सोचती हूँ अगर समय होता, विचार होते, लेखनी में क्षमता होती तो शब्द उभरते और सुनहरे अक्षरों में चमकते l अनायास ही फिर मेरा मन कह उठता है कि…….
“ऐ जिंदगी तू कहती है कि उम्र भर सुलगी हूँ” तो सुन ! मुद्दत से छाँव में सुलगी हुई तू अगर “धूप” होती तो मैं तुझमें जी भर के सुलग लेती ये जिन्दगी अगर तू मेरे कपकपाते लफ्जों की पहचान कर लेती तो आज तुझे खुद से नहीं मुझसे मुहब्बत होती”…… एक दिन यूँ ही मैं तन्हा बैठी इन्ही विचारों में गुम थी कि दादी आ गई और बोली क्या सोच रही है सुनी ! मैंने कहा कुछ नही बस यूँ ही l लेकिन दादी कहाँ मानने वाली थी पड गई पीछे, बोली लाड़ो मेरी सुघड़ और प्यारी लाड़ो ! …… “तुम्हे समझना चाहिए कि हम अपनी इच्छाओं के बल पर नहीं जीते, हम विवश हैं, अपने भाग्य के आगे, क्योंकि हम कुछ नहीं करते l सब कुछ अपने आप ही होता है। जो हम समझ नहीं पाते और इसे समझने की कोशिश भी व्यर्थ है”।
सुनकर मन में हलचल सी हो गई लेकिन मैं कैसे बताऊँ कि दादी आज के दौर में भावनाए एक ज्वार की तरह उठती हैं बार बार मन उन्मुक्त होकर अक्सर समय की सीमाओं से लेती है टक्कर l इक्षाएं मरा नहीं करतीं जिंदा रहती हैं और मैं चुन-चुन कर उन इक्षाओं को समेट लेती हूँ आँखों में बंद सागर हिलोरें लेता है परत दर परत बढता इंतज़ार उन्हें अनमोल बना देता है……सदा के लिए। एक वक्त था जब दिल की बात जुबा पे आने से डरती थी धीरे धीरे सारे दायरे सिमटते गए…..
हाँ मैं डरती हूँ कहने से, कि मुझे मोहब्बत है तुमसे , मेरी जिंदगी बदल देगा, तेरा इकरार भी इनकार भी…..
मेरी चाहत भी निःशब्द सी, गुमनाम सी, बैचेनी की करवटें लेती रहती है सच ही है ख्वाब कभी मरा नहीं करते वो तो जीवित रहते हैं l जैसे तुम जीवित हो मेरी सांसों में, मेरे धडकनों में, मेरी यादों में, मेरे जज्बातों में, मेरे ख्यालातों में l ये सच है कि तुम्हारे ख्याल भी समुन्दर के आगोश में उठती उन चंचल लहरों की तरह हैं जो इतनी जिद्दी हैं कि उन्हें खुद समुन्दर भी कभी रख ना पाया अपने काबू में. जैसे समुन्दर की चंचल लहरें कभी शांत पायी नहीं जाती, ठीक उसी तरह मेरा मन तुम्हे लेकर अशांत रहता है और जैसे मिट्टी की सौंधी सी महक कभी मन से भुलायी नहीं जाती l उसी समीकरण के अनुरूप ना तुम मुझे भुला सकते हो, ना मैं तुम्हें पा सकती हूँ…… कौन जाने, क्या पता इसी को कहते हैं पलों के बीच का असंतुलित समीकरण…….
आ भी जाओ और तन्हाई को सिसकता देखो यूँ मुझे किसी शब टूटके बिखरता देखो मेरी साँसों में ज़हर-ऐ-जुदाई का उतरता देखो बहुत तड़फ तड़फ के तुझे माँगा है खुदा से आओ कभी मुझे सजदों में सिसकता देखो……….
१- अजीब भेद है रिश्तों का
जो कुछ था सब तुम्हारा था नया कुछ नहीं हमारा था जो तुम तक पहुँचती राहें मेरी तो हर गम को हँस के , में दुआ समझ लेती ……….. तेरे पाँव के निशां लेके जो हथेली पे निकले हम हर कदम जीत के हार हुई आशना दर्द का मिलना था काश ये गम पहले ही समझ लेती………………. कहर बरपा है मेरे गुनाहों का अश्कों से तर हुई आखें अजीब भेद है रिश्तों का मेरे दिल को काश , तेरी ये जुबां समझ लेती ……………… सौ बार ली तलाश मेरी मोहब्बत की लिख-लिख के मिटाते हो नाम मेरा यही एक बात है जो मेरे दिल को सुकूं है देती……… जब भी देखा तुझे मुझसे ही खफा देखा क़त्ल करते हो रोज बिना तीरे खंजर के इल्म होता तो इनामे तलवारे फन् सिखा देती…………. ना तुने कैद में रखा ना तुने रिहा किया रफ्ता-रफ्ता भुला के हमें मार दिया जनाजा रोक देती अपना , जो तुझे मेरी जुस्तजू होती…………….. जल-जल के किश्तों में तेरी बेसबब बेरुखी से हर पल मेरी जां जलती रही जो इल्म होता तो तुझे किश्तों में ख़ुदकुशी देती……….. ——————————————————–
२-अपनी अपनी मेजबानी
न थी नफरत उन्हें हमसे न प्यार है यारों न थी वफ़ा उन्हें हमसे न क़ज़ा ही यारों बस इक चली थी हवा बदगुमानी की यारों……………. जो जली मैं तो कण-कण में रोशनी दी यारों जो बुझी मैं तो न बाकी रही कोई भी निशानी यारों बस इक चली थी हवा बदगुमानी की यारों……………. जिन्दगी कभी-धूप काभी-छाँव का इक है नगमा यारों जो गाया मेरे दिल ने तो दिल को मात खानी पड़ी यारों बस इक चली थी हवा बदगुमानी की यारों……………. किसी की जीत का मतलब है किसी की हार यारों बड़ा अजीब सा तमाशा है हकीकत-ए-जिन्दगी का यारों बस इक चली थी हवा बदगुमानी की यारों……………. दुनिया ने किस का राह-ए-फ़नां में साथ दिया है यारों देते हो लाख तरीकों से तस्कीन फिर भरते हो सिसकियाँ यारों बस इक चली थी हवा बदगुमानी की यारों……………. मेरे दिल से पूछो इक बार सही है क्या इश्क-ए-बेगुनाही यारों यहाँ इश्क ही इश्क है जलता बेपनाह यारों बस इक चली थी हवा बदगुमानी की यारों……………. हैं चंद रोज़ के यहाँ मेहमां हम सभी ए “सुनी” बस हमीं को करनी है ख़ुद अपनी मेज़बानी यारों………
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