लेखिका के मन के समुन्दर में अगर कोई भी तस्वीर उभर रही हो तो जैसे एक कलाकार लकीरो के बेहतरीन संयोजन से कृति को उकेरता है ठीक वैसे ही लेखिका अपने शब्दों के खजाने से पाठकों के मन को वशीभूत करने की कोशिश में मौन वातावारण को भी सजीव रखने का माद्दा रखती है ! वो सुनते है कि मोहब्बत संयम का दूसरा नाम है लेकिन फिर भी कभी-कभी दर्द से व्यथित होकर ह्रदय अपने प्रेमी को स्वार्थी कहता है…………. कभी अपना सब कुछ न्योछावर कर देने को तत्पर रहता है. और कभी कभी अपने महबूब को फुर्सत के क्षणों में याद करके व्यथित होता है….. मैंने भी थोड़ी सी कोशिश की है अपने मन में तैर रहीं तस्वीर को इन भावों के रूप में आपके समक्ष प्रस्तुत करने की……….
१-कहीं तू बदल ना जाए…..
मैं डरती हूँ तेरी आँखों में कोई साहिल न मचल जाए कि मैं तेरी मुरीद हूँ कहीं तू बदल न जाए……
मैं डरती हूँ तेरी बातों की गफलत से कहीं ऐसा न हो कि बिन बात के रंजिश और बढ़ जाए…..
यूँ ही कभी मन मेरा तुझसे एक हंसी शाम को पाना चाहे यूँ लगे जैसे कोई बच्चा चाँद को पाना चाहे……
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२-मयखाने बहुत हैं……
इस दुनियाँ में दर्द के पैमाने बहुत हैं रंजो गम के इस जहाँ में मायने बहुत हैं…………..
जहाँ पी जाते हैं मैं को मय में, वो मयखाने बहुत हैं हो जाओ अगर तन्हा तो रहने के ठिकाने बहुत हैं…….
ना मिलना हो किसी से तो ना मिलने के बहाने बहुत है जल जाये अगर शमां तो जलने को परवाने बहुत हैं………..
ना हो कोई अपना तो अनजाने बहुत हैं इस शहर की तनहाई में इश्क़ के दीवाने बहुत हैं…..
सुनने वाला हो कोई तो सुनाने को अफसाने बहुत हैं इस भरे शहर की भीड़ में हँसने को बेगाने बहुत हैं …….
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३-लेकिन मैं कुर्बानी दूँ तो क्यों ?
श्याम के निर्मल रूप को तुझमें देखा था मैंने शायद तुम ये नहीं जानते प्रेम, एक बहुत ही सुन्दर शब्द है प्रेम मानव जीवन को मीठा आभास कराता है. संसार के प्रत्येक व्यक्ति के भीतर प्रेम की कामना पाई जाती है. और यही कामना तो की थी मैंने अपना श्याम माना था तुझे पर तूने तो गैर की खुशियों पे मुझे कुर्बान कर दिया. हाँ मैं जानती हूँ कि प्यार कुर्बानी मांगता है. लेकिन मैं कुर्बानी दूँ तो क्यों ? तेरे प्यार का स्वरूप तो स्वार्थ में तब्दील हो चुका है….
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