आचार्य नरेन्द्र देव की जयंती पर पार्टी ऑफिस में समाजवादी पार्टी के मुखिया ने दंगा करने की साजिश करने वालों को कुचल देने काऐलानकिया है और साथ ही साथये भी कहा है कि मुजफ्फरनगर में मुसलमानों की हत्याएं हुई हैं.वह उनकी जान नहीं लौटा सकते लेकिन पीड़ितों कोसुरक्षा देंगे. पार्टी मुखिया के इस ब्यान को सुनकर ऐसा लगता है कि इस दंगे की भेंट सिर्फ मुसलमान ही चढ़े है कोई हिन्दू नहीं. कितना उचित है एसपी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव का ये फरमान ? मुलायम सिंह यादव इससे क्या साबित करना चाहते हैं ? उन्होंने 1990 में कारसेवकों पर हुई फायरिंग की याद दिलाते हुए ये भी कहा कि ‘मुझे पता है कि ऐसे तत्वों को कैसे कुचला जाता है. सपा सुप्रीमो के इस फरमान को सुनकर ऐसा जाहिर हो रहा है किअब एक बार फिर मुलायम वही पुरानी कार्यवाही दोहराना चाहते हैं. जो 1990 में बतौर मुख्यमंत्री उन्होंने विश्व हिंदू परिषद के आह्वान पर बाबरी मस्जिद तोड़ने और राम मंदिर बनाने के मकसद से अयोध्या पहुंचे कारसेवकों पर गोलियां चलवाई थीं. कार सेवकों पर ही नही सरकार ने तो उत्तराखंड के निर्दोष आन्दोलन कारियों पर भी गोलियाँ चलवाई थी. देखा जाए तो सही मायने में सपा सुप्रीमों ने दंगो के दौर से गुजरे मुजफ्फरनगर जिले में टकराव की वारदात को सियासी रंग में डुबोकर मुस्लिम वोटों को अपनी झोली में डालने की कोशिश में ही धर्म को मुद्दा बनाया है. उनका ये भी कहना कि “सरकार सबसे ऊपर है” क्या ये नहीं साबित करता कि जिस आवाम से सरकारें बनती और बिगड़ती हैं. क्या उस अवाम की चैन-ओ–सुकून सबसे ऊपर नहीं है. और अब यही चैन-ओ–सुकून बरकरार रखने के लिए सरकार कोई कदम क्यों नहीं उठाती ? सपा सुप्रीमो कहते हैं कि “1990 में विश्व हिंदू परिषद के आह्वान पर बाबरी मस्जिद तोड़ने और राम मंदिर बनाने के मकसद से अयोध्या पहुंचे कारसेवकों को देखकर मेरी हालत महाभारत के अर्जुन जैसी हो गई थी. जिस तरह से अर्जुन को धर्म की रक्षा के लिए अपने लोगों से ही युद्ध करना पड़ा था, वैसे ही संविधान और कानून की रक्षा के लिए मुझे उन लोगों पर फायरिंग का आदेश देना पड़ा था”. मुलायम सिंह का ये कथन कितना सही है ये भी अवाम की निगाहों से बचा नही है. लंबे वक्त से दंगों का दंश झेल रहे उत्तर-प्रदेश के मुजफ्फरनगर में आपका कथन कि “मुसलमानों की हत्याएं हुई हैं” आपके इस कथन पर आवाम आपसे पूछती है कि आपका जाति–धर्म के नाम पर सियासत करना कहाँ तक उचित है. क्या सपा सरकार ये नहीं जानती कि सरकार बनाने में आवाम का कितना बड़ा हाथ होता है. आप सब ये जानते हैं कि जनता उस सरकार से भी बड़ी है जो ऐसे लोगो को सरकार मे चुनकर भेजती है. यदि सड़क पर जनता भी खुलकर आ गयी तो न आप ऐसे कुचलने की बात करोगे और ना ऐसे स्वपन देखोगे. राजनीति का स्तर देश में इतना गिर जायेगा किसी ने भी नहीं सोचा होगा. वोट बैंक कमाने के लिए किसी भी विशेष समुदाय को अलग से चर्चा का विषय बनाना या बात करना क्या किसी भी पार्टी के मुखिया को शोभा देता है ? ……..
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