हम भारतीयों के सर का ताज है हिन्दी………. ब्लॉग शिरोमणि प्रतियोगिता contest -3
sach ka aaina
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हम भारतीयों के सर का ताज है हिन्दी………. ब्लॉग शिरोमणि प्रतियोगिता contest–3
अभी के दिनों में हिन्दी के हित को देखते हुए दो तरह की बातें कही जा रही हैं. इसलिए हिंदी को लेकर मैंने अपने “कांटेस्ट नंबर १ और कांटेस्ट नंबर २” में अपना पहला पक्ष रक्खा जिसमे मैंने कई ऐसी बाते कहीं जो आज की सच्चाई हैं जैसे कि हिंदी ही नहीं, देश की बाकी भाषाएं भी अंगरेजी के मुकाबले पिछड़ रही हैं. आज के हालातों में जो स्थितियां बन रही हैं उनमें लगातार अंग्रेजी का वर्चस्व बढ़ रहा है और हिन्दी लगातार किनारे हो रही है. चूंकि हिन्दी इतने बड़े इलाके में बोली जाती है और इतने ज्यादा लोग उससे जुड़े हुए हैं तो वो लगातार बनी हुई है. लेकिन अब दिक्कत ये हो रही है अंग्रेजी के कारण जो बेहतर रूप, अद्यतन ज्ञान और जो विकसित ज्ञान है, वो उन तक न पहुंच पाने से उनकी उसमें हिस्सेदारी हो रही है. भाषा का मुख्य काम जनता की हिस्सेदारी है तो इतने बड़े समाज को अलग करके आप एक पराई भाषा पर निर्भर कैसे हो सकते हैं ? अतः हमें अगर एक समाज को विकसित करना है तो अपनी भाषा को तो अपनाना ही पड़ेगा. प्रसिद्ध संस्कृति का भी अपना अलग महत्व है क्योंकि वह उच्च संस्कृति की एक सीढ़ी है. भारत में हिन्दी का दर्जा संवैधानिक रूप से दूसरी भाषाओं से ऊंचा है, उसको इसी ऊंचे रूप में स्थापित रहने के लिए अगर आप अपने को ऊंचा नहीं उठाओगे तो राजभाषा का दर्जा लेने का आपको कोई अधिकार नहीं है. इसके साथ-साथ हिन्दी को दूसरी भारतीय भाषाओं में प्रमुख भूमिका में रहते हुए अपना परचम फहराना होगा. दूसरी बड़ी बात देशवासी हिन्दी का इस्तेमाल न करके और एक विदेशी भाषा का इस्तेमाल करके, जो करोड़ों लोग हैं, उनको सत्ता से, ज्ञान से, प्रशासन से, व्यवसाय की बहुत सारी चीजों से वंचित कर रहे हैं. क्या ये उचित है ? शिक्षा में अंग्रेजी की घुसपैठ को बढ़ते हुए देखकर मुझे तो ये लगता है कि पचास साल बाद हिन्दी की स्थिति क्या होगी. अंगरेजी माध्यम के स्कूल बढ़े हैं, निम्न मध्यवर्ग के भीतर अपने बच्चों को अंगरेजी पढ़ाने की ललक बढ़ी है, ज्ञान के नये क्षेत्र, मसलन सूचना-प्रौद्योगिकी और प्रबंधन की शिक्षा-सामग्री मुख्य रूप से अंगरेजी में है और इससे मोटी तनख्वाह वाली नौकरियां भी अंगरेजी में ही हैं. विचार करने की बात यह है कि महीने में छह हजार रुपए कमाने वाला आदमी भी अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में पढ़ाना चाहता है. वह समझता है कि आज अंग्रेजी ही नौकरी और प्रतिष्ठा दिलवा सकती है. धीरे-धीरे सरकारी स्कूलों में भी अंग्रेजी का बोलबाला शुरू हो जाएगा. अमीर-गरीब दोनों के स्कूल अलग, रिहायश के इलाके अलग, वाहन अलग, जल और बिजली की पूर्ति अलग और इसी के साथ-साथ बैंक खाते अलग और उनकी भाषा भी अलग. ये सब देखकर तो मुझे लगता है कि हिन्दी बची रहेगी, पर गरीबों की भाषा के रूप में. ये सत्य है कि अगर हालात यही रहे तो संपन्न वर्ग अंग्रेजी में अपने को व्यक्त करेगा, गरीब लोग हिन्दी बोलेंगे. अर्थात हिन्दी उस-उस क्षेत्र में बनी रहेगी, जहां-जहां अविकास है. लेकिन सोचनीय ये है कि विकास होते ही अंग्रेजी आ धमकेगी. और ये भी सत्य है कि प्रश्नकर्ता के दिमाग में यह बात धीरे-धीरे उतरने लगेगी कि हिन्दी का भविष्य है भी और नहीं भी है. हिंदी को मरने नहीं दिया जाएगा, पर जीने भी नहीं दिया जाएगा.
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इस पक्ष में हिंदी हमारे गौरव को बढ़ाती है. यह हमारी राष्ट्र भाषा के रूप में स्थापित सभ्यता का भी प्रतीक है हिंदी केवल भाषा नहीं, बल्कि संस्कृति का नाम होने के साथ-साथ हिंदी विश्व की सबसे शक्तिशाली भाषा है. इसलिए ये कहा जा सकता है कि हिंदी का भविष्य विश्व स्तर पर उज्ज्वल है. देखा जाए तो हिंदी का मान-सम्मान भारत के कोने-कोने मे हो रहा है. दक्षिण भारत की भाषाओं के साहित्य का अनुवाद हिंदी में बड़े आदर के साथ किया जा रहा है. सभी भारतीय महसूस कर रहे हैं कि एक मात्र हिंदी ही ऐसी भाषा है जो संपूर्ण भारत को एकता के सूत्र में बांध कर चल रही है. एक बात और कहना चाहूंगी कि हिन्दी समाज में साहित्य का भविष्य मुझे इसलिए उज्जवल दिखाई देता है क्योंकि मुझे लगता है कि हिन्दी का भविष्य एक रचनात्मक भाषा, नाटक की भाषा, साहित्य की भाषा सिनेमा की भाषा, कलाओं की भाषा में प्रज्वलित है इसलिए हिन्दी में साहित्य का भविष्य उज्ज्वल है. मुझे लगता है कि स्कूल के हिन्दी पाठ्यक्रम में बदलाव की जरुरत है क्योंकि स्कूल में बच्चे हिन्दी पढ़ते हैं तो उन्हें सबसे अरुचिकर विषय हिन्दी लगता है. कारण सबसे खराब पुस्तकें, सबसे खराब टीचर के साथ-साथ सबसे कम ध्यान हिन्दी पर दिया जाता है. बच्चे के संस्कार स्कूल से ही हिन्दी में रुचि के नहीं बन पाते हैं ऐसी स्थिती में आगे चलकर बच्चा हिन्दी क्या पढ़ेगा ? तो समाज को चाहिए कि वो बड़ी संख्या में स्कूली स्तर पर हिंदी पाठकों को पैदा करें. देश में आम बोलचाल की भाषा हिंदी होने की वजह से, इसका प्रसार खुद ही होता रहता है. आम बोलचाल में हिंदी को लोग बचपन मे ही स्वतः सीख लेते हैं. आजकल भारत में ‘भविष्य की हिंदी व हिंदी का भविष्य’ को लेकर बहुत सी परिचर्चाएं, गोष्ठियां, हिंदी ब्लॉगिंग और कार्यशालाओं के आयोजन किये जाते हैं. अगर आपको ये लगता है कि कुछ सालों मे हिंदी का अंत होने वाला है, तो आप गलत सोच रहे हैं हिन्दी, भारत मे 40 करोड़ लोगों की मुख्य भाषा है, कुलमिलाकर 120 करोड़ की आबादी वाले भारत मे 80 करोड़ से ज्यादा लोग हिंदी को अच्छे से समझते हैं. अँग्रेजी समझने वाले लोगों की आबादी भारत मे लगभग 15 करोड़ ही है, जबकि अच्छी तरह अँग्रेजी बोलने वालों की आबादी भारत में 2-3 करोड़ से ज्यादा नहीं होगी. इसलिए आप ये अच्छे से समझ सकते हैं कि हिन्दी का भविष्य उज्जवल ही नहीं हिंदी हमारे सर का ताज है. देखा जाये तो बुद्धिजीवी-वर्ग के साथ-साथ लेखक वर्ग, शासन व प्रशासन हिंदी की दुहाई तो बहुत देता है लेकिन अपने कुल-दीपकों को अँग्रेजी माध्यम में दाखिला करवाकर उच्च शिक्षा दिलवाना चाहता है. इस बुद्धिजीवी-वर्ग से मैं यही कहना चाहूंगी कि अँग्रेजी पढ़िए इसके साथ-साथ जितनी और अधिक भाषाएं सीख सकें सीखिए लेकिन अपनी भाषा को हीन करके या बिसराने की कीमत पर कदापि नहीं. एक बिंदु हिंदी के लिए बहुत ही असरदार है जैसे ज़्यादातर मीडिया वाले लोग अधिक लोगों तक पहुचने के लिए हिंदी भाषा का सहारा ले रहें है, टीवी मे ज़्यादातर प्रोग्राम अब सिर्फ हिंदी मे ही होते है, हिंदी ब्लॉगिंग के माध्यम से अपनी “मातृभाषा” हिन्दी के प्रति………..प्रीत का पैगाम देकर हिंदी प्रेम को मजबूत करते हैं. हिंदी ब्लॉगिग के स्वर्णिम भविष्य के प्रति मैं नतमस्तक हूँ. ये विचारणीय है कि जागरण ब्लॉगिग के जरिये हिंदी के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए जो हम देशवासियों को प्रेरणा मिल रही है इसे देखते हुए अपार ख़ुशी होती है कि निश्चित रूप से हिंदी ब्लॉग का और हमारे देश की गौरव हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है इसमें कोई सन्देह नहीं है. सब मिलकर हिंदी भाषा को और बढ़ावा दे रहें हैं. सादर नमन है जागरण ब्लौगिंग के सम्मान में ……….
वो तो जागरण की ब्लॉगिंग है जो हिन्दी का दर्द कह गयीं अगर अंग्रेजी के लफ्ज़ होते तो स्वतः ही मुकर गए होते…………
हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि भारतीय भाषाओं से हिन्दी और हिन्दी से भारतीय भाषाएं हैं. देखा जाये तो हिन्दी से विदेशी भाषाएं, विदेशी भाषाओं से हिन्दी, का अनुवाद करने की हमारे पास कोई जादू की छड़ी नहीं है ये साहित्य अकादमी इत्यादि हैं तो ये साल में चन्द किताबें निकालकर खुश हो जाते हैं आपको क्या लगता है कि ये चन्द किताबें हमारे देश में हिंदी के प्रति अपनी ईमानदारी पूरी कर पातीं हैं अगर हिंदी को उसके शिखर तक पहुँचाना है तो मेरे हिसाब से अनुवाद का एक पूरा मंत्रालय होना चाहिए. केन्द्रीय सरकार को चाहिए कि एक ऐसा अनुवाद मंत्रालय तैयार करे जो दूसरी भाषाओं से हिंदी और हिन्दी से दूसरी भाषाओं का अनुवाद हो सके ताकि हजार किताबों का आदान-प्रदान दूसरी भाषाओं में हो सके. अगर ऐसा होता है तो हम हिंदी के प्रति सही मायने में कुछ कर पायेंगे….. और अब अंत मैं अपनी लिखी कुछ चन्द लाइनों के साथ समाप्ति कर विदा चाहूंगी……
मेरे हिन्द को तराशा हिन्दी के शबाब ने चमक रहा है वतन मेरा सुनहरे लिबास में…..
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