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समाज में हीरो और घर में जीरो !!!

मन की आवाज़
मन की आवाज़
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मनुष्य निरंतर घर और दफ्तर के भंवर में फसा रहता है | कभी घर का पलड़ा भारी होता है तो कभी दफ्तर का | जो व्यक्ति इन दोनों स्थानों में से किसी एक को ज्यादा तरजीह देता है वह दूसरी तरफ के दबाव की खाई में गिर जाता है | पशोपेश की इस भंवर से बाहर निकल पाना बहुत कठिन है |
vicharon ka bhavar
कहने को हम एक ही जीवन यापन करते है परन्तु यह असत्य है | हम एक ही साथ तीन जिंदगियां जीते है – एक खुद के लिए , एक परिवार के लिए और एक समाज के लिए |तीनो कसौटियों में जो खरा उतरता है वाही महानता की ऊँचाइयों को छू पता है |

अगर हम परिवार को नज़रंदाज़ कर सफलता की अंधी दौड़ में दौड़ते रहे तो सफलता के कोई मायिने नहीं रह जाते | सफलता का असली स्वाद तभी मिलता है जब आपकी सफलता में परिवार की ख़ुशी शामिल हो | जो व्यक्ति सिर्फ सफलता के पीछे भागते है वह कर्मठ , प्रसिद्ध , प्रतिष्ठिक एवं समाज में गौरवान्वित होते है | परन्तु वः अपने निजी जीवन में पूर्णरूप से असफल एवं निष्प्रभावी होते है | उनकी निजी ज़िन्दगी नीरस होती है और वो लोकप्रिय होते हुए भी अकेलेपन का शिकार हो जाते हैं | संसार के सभी प्रकार के वैभव एवं ऐश्वर्य , धन- दौलत, बंगला-गाड़ी इत्यादि होते हुए भी वो अधूरा जीवन जीते है |

इसके विपरीत अगर हम पारिवारिक मसलों में ही रमें रहे और अपनी अन्य जिम्मेदारियों की अनदेखी करें तब भी हम खुश नहीं रह पाएंगे | हमारे ऊपर सदैव ही असफलता की तलवार लटकती रहेगी | फलस्वरूप हम निराशा की अंधी खाई में गिर जायेंगे और हमारी सामाजिक प्रतिष्ठा तो ठेस पहुंचेगी |ऐसे व्यक्ति सफलता का स्वाद कभी नही चख पाते | समाज में उनकी साख नहीं जम पाती | धीरे-धीरे संसाधनों की कमी उन्हें सताने लगती है | इनकी व्यवस्था हेतु जब बार- बार वो अपने रिश्तेदारों से उम्मीद लगाते है तो परिवार भी इनसे कटने लगता है और ये अलग- थलग पड़ जाते हैं |

स्वाभाविक रूप से हम किसी भी छेत्र में असफलता का मुह नहीं देखना चाहेंगे – घर हो या दफ्तर |

घर में गृहणिया काम-काज करती हैं , सभी की ज़रूरतों का ध्यान रखती है | अपनी ज़रूरतों का बलिदान कर परिवार क सभी सदस्यों का ख्याल रखती हैं | परन्तु अवसर आने पर बातों ही बातों में उनको यह एहसास कराया जाता है की उनका योगदान बेहद मामूली है और ऐसा करना तो उनका फ़र्ज़ है कोई बड़ी बात नहीं है | बच्चों का प्यार – दुलार तो उन्हें मिलता है परन्तु अक्सर उनके मान-सम्मान को ठेस पहुंचाई जाती है |

दूसरी ओर जो पुरुष सिर्फ लक्ष्मी के पीछे भागते है वः पारिवारिक सुख से वंचित रह जाते है | उनका तर्क होता है कि वो सब कुछ परिवार की भलाई के लिए कर रहे है | धन सम्बंधित ज़रूरतों को वो पूरा करतें हैं फिर भी परिवार के सदस्य उनसे दूर हो जाते है | समय के अभाव के चलते वे निंदा के पात्र बनते हैं |

इन सब परेशानियों का एक ही समाधान है की हर कार्य को पूर्ण इमानदारी एवं लगन के साथ किया जाए | कभी अपने आपको को सीमित दृष्टिकोण से ना देखें अपनी संभावनाओं को पहचाने और हर संभव दिशा में सतत प्रयास करें | सदैव घरेलु जीवन को दफ्तर की परेशानियों से दूर रखें | हमेशा घर में हर पल खुश रहे दफ्तर की उलझाने घर में सूना कर सब को परेशान ना करें | इसी प्रकार घर की समस्याएँ घर पर छोड़ कर आयें दफ्तर में अपनी राम कथा सुना कर लोगों का दृष्टिकोण अपने लिए खराब ना करें | याद रखें आपको किसी की सहानभूति की आवश्यकता नहीं है और सहानभूति आपकी उलझन नहीं सुलझा सकती | अगर भोत आवश्यक लगे तो किसी एक भरोसेमंद दोस्त की मदद लें नाआअ की अपना दुखड़ा सभी को सुनाएं | परिवार और दोस्तों से साथ बिताये जाने वाले समय को पहले से ही निर्धारित कर ले | किसी भी छोटे मोटे कारण से इसमें बदलाव ना करें | खाने के समय परिवार के सदस्यों के साथ भोजन करें और हलके-फुल्के हसी मज़ाक के साथ ही सुख-दुःख बाटें | खाने के समय को टीवी देख कर या अखबार पढ़ कर नष्ट ना करें | याद रखें ये समय अनमोल है |

निष्कर्श्स्वरूप मै बस इतना कहना चाहती हूँ की “आप जो भी कार्य करें उसे पूरी निष्ठा से करें ” | इस विषय पर मनन एवं चिंतन के लिए बहुत कुछ है ….. मैं आपके कीमती विचारों का स्वागत खुले दिल से करती हूँ !!! आप अपनी राय इस विषय पर प्रकट करें और बताएं की आप क्या सोचते है ?????

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