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हमको अब विकास की नींव डालनी होगी

santosh kumar
santosh kumar
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दुनियॉ कहॉ से कहॉ पहुच गयी लेकिन हम कहॉ रह गए चीन समेत तमाम देश हमसे बाद मे गुलामी की बेड़ियों से निकले लेकिन वें कहॉ पहुच गए और हम कहॉ खो गए, यह बात गौर करने वाली है कि क्या हम दुनियॉ के उन तमाम देशों का बराबरी करने मे असक्षम, यदि नही तो हमारी सक्षमता को कौन सी ताकत पीछे खींच रही है।
भारत जब आजाद हुआ तब भुखमरी, बिमारी, अशांति थी और इस पर कुछ समय तक काम किया गया थोड़ा बहुत काबू पाया गया हॉलाकि यह समस्यॉ तो आज भी बनी है. हमको अपना ध्यान उस तरफ ले जाना जो हमारे विकास मे रूकावट बना है आखिर भारत क्यो विकास नही कर पा रहा है, क्या कारण है कि प्रतिस्पर्धा मे वें हमसे जीत गयें, क्यो हमारे पास संसाधन की कमी है जब हमारे पास संपदा भरपूर है, प्रकृति ने हमको सबकुछ दे रखा है, हमारे पास युवा भी, बुद्धिमान भी, विचारक, वैज्ञानिक सबकुछ है फिर भी हम पीछे है। ये सबकुछ होते हुए साथ ही हमारे पास दुनियॉ का सबसे अच्छा संविधान है, भारत की विविधता, लोग की जीवन का अधिकार, राज्य का सशक्त होना, मनावता का विषेश ध्यान रखना, वैश्विकता आदि हमारे संविधान का आधार है. भारत महान कहने से महान नही होगा हमसब को भारत को महान बनाना होगा, यह बात सत्य है कि भारत के आजादी के कुछ समय बाद से जीतनी भी सरकारे आयीं अपनी वास्तविक कर्तव्यो का निर्वहन नही कर पायी, एक राज्य को सशक्त कैसे बनाना है इस पर काम नही हो पाया, काम सिर्फ पार्टी को सशक्त बनाने मे किया गया। भारत की पहुच कहॉ तक हो पायी, भारत ने क्या हासिल किया इसका कोई आकलन नही है, जो भी है पार्टी की उपलब्धि है. देश के लोकतंत्र का लोगो ने नाजायज फायदा उठाया और उससे भी ज्यादा मताधिकार का। सबसे बड़ी समस्या यह है कि जिनकी सरकार देश आयी वो खुद को भारत समझने लगें.

ठीक है जो हुआ सो हुआ हम उसपर विस्तार से नही जाते, लेकिन क्या भारत अब जिस रास्ते पर है वह सही है यह बड़ा सवाल है।
जो चीज हमारे देश की ताकत होनी चाहिए वह हमारी कमजोरी है….जो इस प्रकार है
राजनीति के क्षेत्र मे देखे तो …. लोकतंत्र
समाज मे देखे तो हमारी……. सामाजिक विविधता
अर्थव्यवस्था मे देखे तो ……हमयुवा
देश के विकास न करने का सबसे बड़ा कारण है हमसब की अपने देश के व्यवस्था के परिपेक्ष मे समझ न होना और इसका कारण है हमारी शिक्षा और इस सबका जिम्मेदार है हमारी राजनीति….भारत मे राजनीति का क्षेत्र बहुत स्पष्ट है भारत वैध लोकतांत्रिक देश है. देश का अपना संविधान है, संविधान स्पष्ट कर देता है कि हमारी राजनीति कैसी होनी चाहिए लेकिन हम कुछ तुक्ष्छ निजी स्वार्थ के चलते देश की राजनीति को साधन की तरह उपयोग कर रहे है क्या हमारी राजनीति को जातिवादी, सम्प्रदायवादी, वर्गवादी, या पूजीवादी होना चाहिए, क्या राजनीति को समाज को बाटना चाहिए, मै मानता हू कि राजनीति और संविधान मे अंतर है लेकिन इस अंतर की समझ हम सबको को होनी चाहिए जो अवैध तारीका अपना के सत्ता मे आऐगें वो क्या खाॅक संविधान और देश को तव्वजो देगें ।
आज भारत के विकास मे रूकावट का जिम्मेदार तो राजनीति है लेकिन राजनीति जिसका सहारा ले रही है वह जाति और धर्म है सच कहू तो हमारी पीछली पीढ़ी इसी मे फसी रही और अब हम भी फसें हैं क्या हम आने वाली पीढ़ी को भी यही सब देगें जरा सोचों हम सब अपने अपने बच्चो को कहॉ कहॉ पढ़ने के लिए भेजते है क्या इसका मकसद यही होता है कि हमारा बच्चा पढ़ लिखकर तमाम गुटो या सामाजिक बुराईयों का हिस्सा हो जाए या फिर नौकरी मिलें और सामाज की तरक्की का हिस्सा बनें। अगर हमको तरक्की पूर्ण समाज चाहिए, तो हमको अपने समाज मे परिवर्तन लाना होगा हिन्दू-मुस्लिम, जाति, वर्ग मे न बटकर एक शांती और सौहार्दपूर्ण महौल बनाना होगा। यह सब हमको अपने लिए करना होगा तथा अपने बच्चो के लिए भी करना होगा ताकि वें शांती, एकता, समानता और विकास को समझ सकें।
दूसरी बात यह है कि आपको अपने धर्म और आस्था की समझ होनी चाहिए आप आस्था की ठेकेदारी इन स्वार्थी राजनीतिज्ञो को बिल्कुल न सौपें अगर आप ऐसा करते है तो फिर जिसे धर्म कहते है वह धर्म नही कुछ और है।
राजनीति राज्य मे होती है राज्य के लिए होती है लेकिन एक राज्य के राजनीति की ताकत पूरी दुनियॉ मे दिखती है….यह हमारा दुर्भाग्य है कि दुनियॉ मे हमारी राजनीतिक ताकत के बजाए राजनीतिक कमजोरी दिखती है, इसका सबसे बड़ा कारण है कि हम अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग देश के हित मे नही करते। इसका भी दो कारण हो सकता है या तो हमे लोकतंत्र की समझ नही है या हमे भारत राज्य मे लगाव नही है।
एक बात बहुत दुखद है कि देश के राजनीतिक दल सत्ता के मोह मे भारत को नजरअंदाज करते रहते है । सत्ता के पहले भी और बाद मे भी वह अपनी विचारधारा को आगे रखता है देश के विकास से उसका वास्तविक नाता नही होता है और जनता भी इसका हिसाब नही लेती उसका कारण है कि वे हमको तमाम आपसी मामलो मे उलझाए रहते है. हम एक दूसरे से हिसाब-किताब करते रहते है कहीं धर्म का, कहीं जाति का। और तो और अब हम खुद राजनीतिक दलो मे बटते जा रहे जो जनता का स्पेस है वह भी संर्कीण होता जा रहा है।
राजनीतिक दल मे भी भारत के नागरिक ही है सत्ता मे भी भारत का नागरिक ही होता है लेकिन देश का दुर्भाग्य है कि वह राजनीतिक दल को प्राथमिकता देता है।
अतत: मै जनता के लिए एक बात स्पष्ट कर दू कि भारत संविधान के अनुसार चलेगॉ हम सबको यह बात समझनी चाहिए कि भारत सभी धर्म, जाति, वर्ग, सम्प्रदॉय का है और हमेशा रहेगॉ किसी एक संगठन या सम्प्रदॉय का कभी नही हो सकता कभी नही, यह सत्य है इसलिए सबको संविधान के अनुसार चलना चाहिए तथा भारत के विचारधारा को सभी को स्वीकारना चाहिए और राजनीतिक दलो से मात्र देश के विकास पर समझौता करना चाहिए राजनीतिक दलो को अपने धर्म मे हस्ताक्षेप करने का अधिकार बिल्कुल भी नही देना चाहिए। राजनीतिक दलो को देश कि विचारधारा पर काम करने के लिए मजबूर करना चाहिए। यह सब हो सकता है बस हमसब देश की विचारधारा को अपना ले यानी संविधान को प्राथमिकता दे तभी हम सच्चे देशभक्त हो सकते है और यकीन करो देश का संविधान आपको वैध जीवन जीने कि संपूर्णता देगा, अगर हम ऐसा करने मे सक्षम नही है तो तैयार करो अाने वाली पीढ़ी को इसी आग मे जलाने को।

SANTOSH KUMAR(Blogger)

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