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पापा की पगली सी बेटी ।

हालात की चाल ।
हालात की चाल ।
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समय कितनी जल्दी सें बदलता हैं पुरानी यादों को याद करों तो ऐसा लगता हैं मानों यें सब कल की ही तो बात थी । एक छोटी सी लङकी जो पापा के साथ बैठकर उनकी ही थाली में खाती थीं आज समय के इस बदलाव नें उसें एक ऐसे मोङ पर लाकर खङा कर दिया हैं कि आज उसे अकेले बैठकर खाना खाना पङ रहा हैं । कभी – कभी पगली सी वें लङकी सोच कर हंसती भी हैं कि क्या वें वही लङकी हैं ? जो अगर अपने पापा के साथ नहीं खाती थी तो बीमार पङ जाती थी । कहा जाता हैं कि जिन्दगी में भलें ही पिता और बेटी का सम्बन्ध चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हों पर लङकी अपनी सारी बात पहले अपनी माँ को बताती हैं पर इस पागल सी लङकी कि जिन्दगी भी बङी उल्टी सी थीं वे तो सारी बात पहले अपने पापा को ही बताती थी फिर कहीं जाकर माँ को बताती थी । जिस लङकी को एक समय सङक पार करना नहीं था और जब – जब भीङ – भाङ में वें ङरती थी तो अपने पापा को हर उस समय अपने साथ पाती थीं । आज वहीं लङकी उस शान्त से शहर को छोङकर इतनी दूर आ गई हैं कि वें उस भीङ में न तो खोती हैं और न हीं सङक पार करने सें ङरती हैं । कभी – कभी की पापा यें लाङली दूसरो को भी सङक पार करा देती हैं । पापा का सपना था कि बेटी को आईएस बनाने का पर उन्होनें कभी इच्छा बेटी पर थोपी नहीं । बेटी ने जब अपनी इच्छा बताई की और घर में सबसे अलग क्षेत्र में जाने का निर्णय ली तब पापा थोङे घबराएं जरुर पर उस पगली बेटी की इच्छा और काबलियत पर विश्वास करके उसको उस क्षेत्र में जाने की इजाजत भी दे दी । पापा की बेटी थोङी भोली थी ,पापा की उस समय की चिन्ता को जब समझ नहीं पाई थी पर वे इतनी भी भोली नहीं थी कि उस क्षेत्र में पहला कदम रखने के बाद उस क्षेत्र की वास्तविकता को न समझें । बेटी ने जब उस क्षेत्र को करीब सें देखी तो थोङी निराश जरुर हुई पर उसकी निराशा को आशा में बदलने के लिए उसके पापा नें हीं उसकों समसें ज्यादा हिम्मत दी । पापा सें कभी दूर न रहने वाली उनकी बेटी आज उनसें इतनी दूर रह रहीं हैं कि चाँह कर भी एक बार पापा के गले लगकर जी भर कर रों नहीं सकती हैं । पापा के हाथों से लिखना सीखनें वाली उनकी बेटी आज इतनी बङी हो गई हैं कि अपने पापा के लिए ही लिख रहीं हैं पर जाने क्यों लिखनें के बाद भी उतनी सन्तुष्ट नजर नहीं आ रहीं हैं, जितनी सन्तुष्ट पापा का हाथ पङकर लिखें गए क , ख , ग को देखने के बाद होती थीं ।

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