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असम नहीं आसान !

हालात की चाल ।
हालात की चाल ।
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कितना अजीब लगता हैं जब खबरों की दुनिया का एक बङा तबका इलैक्ट्रानिक मीङिया , प्रत्युषा बनर्जी के मौत पर घंटो – घंटो के एपिसोङ दिखाता हैं और तो और प्रिंट मीङिया का भी एक बङा तबका इस खबर को इतनी तवज्जो देता हैं कि इस खबर पर सम्पादकीय छाप देता हैं और इस खबर के बाद अगर उन्हें समय मिलता हैं , किसी और खबर को तवज्जों देने का तो वे राष्ट्रविरोधी एंव तथाकथित राष्ट्रप्रेमी गैंग के छोटे – छोटे नेताओं के बयानों को महत्व देकर खूब मिर्च – मसाला लगाकर एक तङकती – भङकती खबर बना कर उस पर अपना टीआरपी का खेल खेलने लगते हैं और इन सब के बीच अगर उनका ध्यान थोङा और भटक भी जाता हैं तो वे केरल , तमिलनाङू , पश्चिम बंगाल के चुनाव के खबरों को दिखाकर चुनाव के नाम पर अपनी खानापूर्ती कर देते हैं लेकिन इन तीन राज्यों के साथ होने वाले दो अन्य राज्यों के चुनाव को ज्यादातर लोग और मीङिया हाउस भूल ही चूके हैं कि असम और पाङुचेरी में भी चुनाव हैं लेकिन अफसोस तो इस बात का होना चाहिए कि जिस तरह यूपी , बिहार के चुनावों के समय पूरे देश में माहौल बनया जाता हैं और ऐसा व्यवहार किया जाता हैं कि मानो ये पूरे देश का चुनाव हैं जिस कारण देश के अधिकांश गांवों को भी पता चल जाता हैं कि यूपी , बिहार में चुनाव हैं । ऐसा वर्तमान में हो भी रहा हैं जहाँ यूपी के चुनाव में अभी पूरे एक वर्ष का समय हैं , फिर भी वहाँ के सर्वे और चुनाव के माहौल को पूरी तैयारी के साथ दिखाया जा रहा हैं । जबकि असम में चल रहें चुनाव सें बहुत से लोग अभी परिचित भी नहीं हैं और इन्ही कारणों से पूर्वोत्तर राज्य के लोग कभी – कभी अपने को उपेक्षा से ग्रसित मानने लगते हैं । आज के लेख में मैं असम की चुनावी जमनी पर प्रकाश ङालने का प्रयास करुगी और साथ ही चुनाव के समय भाजपा और कांग्रेस के सामने आने वाली परेशानियों सें आपको परिचित कराने का प्रयास करुंगी । असम में विधनसभा में 126 सीटें हैं और इस समय असम के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी , कांग्रेस , असम गण परिषद (अगप ) , आल इंङिया यूनाइटेङ ङेमोक्रैटिक फ्रंट ( एआईयूङीएफ ) सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर आफ इंङिया (माक्सर्वादी ) मार्क्सवादी क्म्युनिस्ट पार्टी (माकपा ) , भाकपा और बोङो पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ ) पार्टियों की साख दांव पर हैं सबसे दिलचस्प आंकङा तो यह हैं कि इस छोटे से राज्य के चुनाव में भष्ट्राचार का स्तर किसी बङे राज्य सें कम नहीं हैं । गैरसरकारी संस्था एसोसिएशन फार ङेमोक्रेटिक रिफार्म ( एङीआर ) के आंकङो के अनुसार असम की जिन 61 सीटों पर कुल 523 उम्मीदवार चुनाव लङ रहे हैं , उनमें सें 24 प्रतिशत उम्मीदवार करोङपति हैं । इन 523 उम्मीदवार की औसत संपति 1.26 करोङ रुपयें हैं । कांग्रेस अमीर उम्मीदवारों की लिस्ट में पहले स्थान पर हैं । उसके 57 उम्मीदवारों की औसत संपति 2.64 करोङ रुपयें हैं । उसके बाद दूसरा स्थान भाजपा का हैं , जिसके 35 उम्मीदवारों की औसत संपति 2.44 करोङ हैं ,जबकि असम गण परिषद जैसी छोटी पार्टी के 19 उम्मीदवारों की औसत संपति 1.37 करोङ हैं , सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर आफ इंङिया (माक्सर्वादी ) के कुल 11 उम्मीदवारों की औसत संपति 26.43 लाख रुपये हैं , मार्क्सवादी क्म्युनिस्ट पार्टी (माकपा ) के 9 उम्मीदवारों की औसत संपति 82.64 लाख हैं और भाकपा के 5 उम्मीदवारों की औसत संपति 10.88 लाख रुपयें हैं । एसोसिएशन फार ङेमोक्रेटिक रिफार्म (एङीआर) ने यह भी बताया कि 523 उम्मीदवारों मे से 192 उम्मीदवारों ने अभी तक अपने आयकर का विवरण भी नहीं दिया हैं और तो और 10 उम्मीदवारों ने 50 लाख रुपयें से ज्यादा का आयकर अभी तक जमा भी नही किया हैं । इस चुनाव में भाजपा के सामने जीतने की जितनी ज्यादा सम्भावनाएं नजर आ रही हैं उतनी ही चुनौती भी सामने आ रही हैं । 2011 के विधानसभा के चुनाव में राज्य की 126 सीटों मे से भाजपा को महज 5 सीटें मिली थी लेकिन 2014 के लोकसभा के चुनाव के समय यह आकंङा बङा और उसे 14 सीटों में सें 7 सीटें सिली थी जबकि कांग्रेंस को 3 सीटें और 3 सीटें आल इंङिया यूनाइटेङ ङेमोक्रैटिक फ्रंट ( एआईयूङीएफ ) को और 1 सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार जीता था । अगर इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के सहयोंगियों की बात करे तो भाजपा ने इस चुनाव में , बोङो पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ ) और असम गण परिषद (अगप) के साथ गठबंधन किया हैं । इसमें असम गण परिषद वहीं पार्टी हैं जिसने असम में बाहरी लोगों ( बंगाली और बंग्लादेशी मुसलमानें ) का उस समय विरोध किया था जब केन्द्र में इन्दिरा गांधी और राज्य में हितेश्वर सैकिया की सरकार थी और उस समय भी भाजपा ने इस पार्टी का समर्थन किया था । इस पार्टी से गठबन्धन के पीछे भाजपा की मानसिकता यह भी हैं कि इस पार्टी के माध्यम सें वें असम के नीचले हिस्से में अपना जनाधार मजबूत कर पाएं । भारतीय जनता पार्टी की इस समय की सबसे बङी कमजोरी यह हैं कि पार्टी के स्थानीय नेताओं मे इस गठबन्धन को लेकर असन्तोष में हैं और उनका मानना हैं कि पार्टी का हाईकमान पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं की बात को ज्यादा ध्यान नहीं दे रहा हैं और परिस्थियों को समझें बिना अपनी ही चला रहा हैं । अगर पार्टी के कार्यकर्तों का असन्तोष भाजपा समय रहते शान्त नहीं कर पाती हैं तो पार्टी को कहीं फिर सें बिहार चुनाव वाली स्थिति का सामना न करना पङ जायें । पार्टी के सामने भीङ को वोट में बदलना सबसे बङी चुनौती होगी क्योकि पार्टी के पास भीङ तो बिहार चुनाव के समय भी आई थी पर पार्टी उस भीङ को वोट में बदलनें में नाकाम रही थीं । 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद जितने भी राज्य में चुनाव हुए हैं उन सभी राज्यों मे पार्टी के मत प्रतिशत में कमी आई हैं । भाजपा की सबसे कमजोरी जिस पर उसके विपक्षी उसे घेर रहे हैं , वें यह हैं कि पार्टी ने लोकसभा चुनाव के समय असमवासियों में यह वादा किया था कि वें बंग्लादेश को एक इंच भी जमीन भी नहीं देगी पर उसी पार्टी ने चुनाव के बाद बंग्लादेश को कई एकङ जमीन दे दी हैं और तो और पार्टी का बंग्लादेश के तरफ से होने वाले घुसपैठ पर भी रुख बहुत बदल गया हैं । पार्टी के नेता जहाँ बंग्लादेश से आए हिन्दुओं को नागरिकता देने की बात अपनी दबी जुबान से स्वीकार कर रहे लेकिन बंग्लादेशी मुस्लमानों के नाम पर पार्टी अक्सर चुपी साथ ले रही हैं । जिस कारण पार्टी की साम्प्रदायिक छवि बन रही हैं । भाजपा के बङे नेता और जाने – माने वकील स्वामी ने तो यहाँ तक कह दिया हैं कि अगर बंग्लादेशी मुसलमान , हिन्दु धर्म स्वीकार कर ले तो उन्हें भारत की नागरिकता मिल जाएंगी । लेकिन इतनी चुनौतियों के बाद पार्टी के पास जीतने की सम्भावनाएं कम नहीं हैं । पार्टी ने इस अपनी पिछली कमजोरियों से सबक लेते हुए उस बार उन कमियों को सुधारने का प्रयास किया हैं । बिहार से सबक लेते हुए पार्टी ने इस बार अपने मुख्यमन्त्री के दावेदार के रुप में सर्वानन्द सोनेवाला को आगे कर उनके नाम पर चुनाव लङ रही हैं । सर्वानन्द सोनेवाला जो केन्द्रीय खेल और युवा मन्त्री हैं और एक समय अखिल असम छात्र संघ (आसू ) के अध्यक्ष रहे हैं। । साथ ही पार्टी ने इस बार महागठबन्धन के गठबन्धन से सीख लेते हुए असम में भी महागठबन्धन करने का प्रयास किया हैं । पार्टी को बदरुद्दीन अजमल की पार्टी आल इंङिया यूनाइटेङ ङेमोक्रैटिक फ्रंट ( एआईयूङीएफ ) और कांग्रेस के गठबन्धन न करने का फायदा मिलने के भी आसार नजर आ रहे हैं। क्योकि इससे कांग्रेस पार्टी के मुस्लिम वोटो का ध्रुवीकरण होने का आसार हैं । भाजपा ने आदिवासियों जाति मोटोक , मोरान , ताइ , अहोम , कोच राजबोंशी , सूट और चाय बगान के समुदाय को लुभाने के लिए उन्हे अनुसूचित जाति का दर्जा देने की बात कहीं हैं । अगर कांग्रेस की कमजोरियों की बात करें तो कांग्रेस के 2011 के विधानसभा और 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी के मत प्रतिशत में 10 प्रतिशत की कमीं आई हैं । कांग्रेस के नेता हेंमत बिस्व शर्मा पार्टी छोङकर भाजपा में शामिल हो गए हैं । एक समय था जब हेंमत मुख्यमन्त्री गोगाई की आँखों का तारा हुआ करते थे । असम में कांग्रेस की दो बार की जीत का श्रेय हेंमत बिस्व को ही दिया जाता हैं । कांग्रेस के द्वारा 17 दिसम्बर को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल शपथ पत्र में अवैध घुसपैठ को रोकने में नाकामी के कारण सुप्रीस कोर्ट सें फटकार भी लग चुकी हैं । कांग्रेस को वोटो का ध्रुवीकरण को भी रोकना हैं जो इस समय उसके लिए सबसे बङी चुनौती हैं । लेकिन अगर कांग्रेस थोङी राजनीति चतुरता दिखाकर भाजपा की कमजोरियों को अपनी मजबूती बनाकर चुनाव लङती हैं तो उसकी जीत की सम्भावनाएं बरकरार रह सकती हैं । इस सबके बावजूद अब तो आने वाले चुनाव के नतीजे ही बताएंगे कि जनता ने अपना हाथ कांग्रेस को दिया या कमल खिलाकर अपना सहयोंग भाजपा को दिया ।

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