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ये कैसा पार्टी प्रेम ?

हालात की चाल ।
हालात की चाल ।
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इस समय मीङिया में एक बङा सवाल उठ खङा हुआ हैं या यू कहें कि मीङिया द्वारा इस सवाल का निर्माण किया जा रहा हैं । सवाल भी कोई ऐसा-वैसा नहीं हैं जिसको नजरअन्दाज किया जा सकें । सवाल यह हैं कि क्या कन्हैया कुमार अपने नेत्तव की क्षमता और भाषण शैली से देश के प्रधानमन्त्री मोदी जी, जो अपने अनूठे अन्दाज की भाषण शैली के लिए जाने जाते हैं , को चुनौती दे रहा हैं या मोदी जी के समकक्ष खङे होने की योग्यता रखता हैं। इस सवाल का जवाब तलाश रही मीङिया को आम जनता से इसका जवाब भले ही अभी मिलता नहीं दिख रहा हैं क्योकि मोदी जी राजनीति की लम्बी पारी खेल चुके हैं और कन्हैया कुमार की अभी बस शुरुआत हैं लेकिन इन सब के बीच इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता हैं कि कन्हैया कुमार कुशल नेत्तव की क्षमता रखता हैं । अन्तर सिर्फ इतना हैं कि कन्हैया कुमार की अभी बस शुरुआत हैं और मोदी जी इस खेल में परिपक्व हो चुके हैं ,इसीलिए वर्तमान में भलें ही मीङिया द्वारा इस बात का प्रचार किया जाना कि कन्हैया कुमार प्रधानमन्त्री मोदी की छवि को प्रभावित कर रहा हैं ,ये गलत होगा और जनता भी इतनी नादान नहीं कि वे इस बात को नही समझ सकती हैं । लेकिन वर्तमान समय में ऐसा लग रहा हैं कि मोदी जी भले एक बार कन्हैया कुमार को भूल जाये लेकिन भाजपा कन्हैया कुमार को भूलने के मिजाज में नजर आती नहीं दिख रही हैं और ऐसा लग रहा हैं कि मीङिया की बातें भाजपा के नेताओं के दिल पर गहरी चोट कर गयी हैं । तभी तो जब भी कोई नेता चाहे वे बङा हो या छोटा जब अपना मुँह खोलता हैं तब उनके मुँख वचनों से कन्हैंया कुमार का नाम ही निकलता हैं और फिर उसके बाद कन्हैया कुमार पर बयान रुपी बमों का प्रहार शुरु हो जाता हैं । भाजपा के नेताओं के इन्ही बयानी बमों की आङ लेकर अन्य पार्टिया अपनी-अपनी सियासी रोटियाँ सेंक रही हैं और जाने अनजाने में भाजपा नेताओं के इन बयानी बमों से उनके घरों में ही विस्फोट हो रहा हैं । भाजपा के कुछ नेता जिस तरह सें कुछ लोगों के जुबान पर ताला लगाने के लिए जुबान काटने की बात कर रहे हैं वे भाजपा की बनी हुई छवि को बिगाङने पर उतावले नजर आ रहें हैं और अपने विपक्षियों को खुद पर खुद मुद्दो की थाली पकाङा कर अपने ऊपर प्रहार क् लिए आमन्त्रित कर रहे हैं । अन्य पार्टियां भाजपा नेताओं के इन्ही उग्र बयानों का सहारा लेकर भाजपा को हिंसक और उग्र लोगों की पार्टी साबित कर अपनी चुनावी चाल चलने की तैयारी करते दिख रही हैं और राष्ट्रप्रेम एंव राष्ट्रद्रोह की नई परिभाषा बनाकर अपनी चुनावी जमीन तैयार कर रही हैं और उनके इस काम में मीङिया भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से अपना योगदान दे रही हैं । मीङिया और राजनैतिक पार्टियों को हर चुनाव से पहले एक मुद्दे की तलाश में रहती हैं । जिस पर पूरा चुनाव लङा जा सका और इसमें संयोग की बात तो यह हैं कि हर बार ये मुद्दे इन पार्टियों को बिना किसी मेहनत के भाजपा खुद पर खुद लाकर दे देती हैं । बिहार चुनाव के समय बीफ और आरक्षण जैसे मुद्दे नें भाजपा के पास आती बिहार की चाबी को उससे छीन लिया तो लव जिहाद ने यूपी उपचुनाव में पार्टी की जीत की बलि ले ली और इन सब मुद्दे को एक आम मुद्दे से विवादित रुप देने में भाजपा के कुछ बङबोले नेताओं के बङबोले बयानों का भरपूर योगदान रहा हैं । फिर चाहे वे आरक्षण का मुद्दा हो या बीफ का मुद्दा । इन मुद्दे का जहाँ शान्ति से समाधन हो सकता था उसको भी विवादित बनाने का प्रयास किया गया । हाल ही में हुई जवाहरलाल नेहरु विश्वविधालय में हुई घटना में एकबार फिर भाजपा के नेता अपनी वही पुरानी गलती को दुहराते दिख रहे हैं । जवाहरलाल नेहरु विश्वविधालय के मुद्दे को अगर पार्टी के नेता विश्वविधालय का मुद्दा समझकर सरकार और विश्वविधालय को कार्यवाही करने देते तो आज उनके ऊपर एकबार फिर हिंसक अभिव्यक्ति करने का आरोप नही लगता और मोदी जी को अपनी तुलना कन्हैया कुमार से करने पर मजबूर नहीं होना पङता । यह बात तो कुछ हद तक जनता भी समझती हैं कि कन्हैया कुमार कों सभी पार्टियां अपना चुनावी एंजेङा बनाकर उस पर राजनीति करेगी और मीङिया टीआरपी के खेल में कन्हैया कुमार के नाम के बल पर खूब खेल – खेलने वाली हैं । इन सब के बीच भाजपा को कुछ हद हासिल होने वाला नही हैं और मजबूरन उसे खाली हाथ बैठकर ही सन्तोष करना पङेगा । ऐसे में भाजपा को समझना होगा कि कन्हैया कुमार के नाम पर अब भी अगर पार्टी सोच समझकर नही बोलती हैं तो पार्टी के पास आती सीटें भी उससें दूर हो जायेंगी और अन्य पार्टिया को इसका लाभ मिलेगा । भाजपा कन्हैया कुमार के खेल में बुरी तरह उलझती जा रही हैं और अनजाने में इस खेल को मोदी जी और कन्हैया कुमार के बीच की लङाई के रुप में पेश कर रही हैं । इसका फायदा भाजपा को मिलेगा या नहीं ये तो वक्त ही बताएगा पर इसका फायदा इस समय कन्हैया कुमार को मिलता जरुर दिख रहा हैं । कन्हैया अपनी कुशल भाषण शैली के बल पर जनता के मन में जगह तो बना ही रहें हैं साथ ही धीरे-धीरे अपनी राजनैतिक जमीन भी तैयार कर रहे हैं । लेकिन इन सब के बीच में कांग्रेस भी ऊपर से जितनी निश्चित नजर आ रही हैं अन्दर से उतनी बेचैन लग रह हैं क्योकि कांग्रेस पार्टी का शीर्ष नेत्तव इस बात को समझ रहा हैं कि अगर कन्हैया कुमार जनता के बीच लोकप्रिय हो गया और मोदी जी को अगले चुनाव में अपनी छवि के बल पर चुनौती देने लगा तो उनके तथाकित युवराज का क्या होगा ? क्या उनके युवराज का युवराज बनने का सपना पूरा हो पाएगा ? या फिर दुबारा कि तरह वहीं विपक्ष की पाली में बैठकर प्रधानमन्त्री की सीट को निहारते भर रह जायेगें । लेकिन इस समय कन्हैया कुमार को अगर ऊपर उठाने में सबसे ज्यादा कोई योगदान दे रहा हैं तो वे खुद भाजपा ही हैं और उसका ये योगदान अप्रत्यक्ष रुप से उसके लिए ही गङ्ङा खोदने का काम कर रहा हैं । कन्हैया कुमार एंव मोदी जी में जमीन आसमान का फर्क हैं लेकिन वर्तमान समय में मोदी जी के पार्टी के ही नेता अपने बयानों से और अपनी गतिविधियों के बल पर इस जमीन आसमान के बीच के अन्तर को कम करने के लिए खुद ही जमीन आसमान को एक करने जैसी मेहनत करते दिख रहे हैं और अप्रत्यक्ष रुप सें जनता के बीच कन्हैया कुमार को हीरो तो मोदी जी को विलेन के रुप में दिखाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं । भाजपा को समझना होगा कि अगर अभी पार्टी नही समभलती हैं तो पार्टी का भविष्य खतरें में हैं ।

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