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हाल ही में केरल के थोडुपुझा में एक कॉलेज के प्रोफ़ेसर टीजे जोसफ़ पर कुछ समुदाय विशेष के लोगों ने दिनदहाड़े हमला किया और उनके हाथ काट दिये। जैसा कि सभी जानते हैं यह मामला उस समय चर्चा में आया था, जब प्रोफ़ेसर जोसफ़ ने कॉलेज के बी कॉम परीक्षा में एक प्रश्नपत्र तैयार किया था जिसमें “मुहम्मद” शब्द का उल्लेख आया था। चरमपंथी मुस्लिमों का आरोप था कि जोसफ़ ने जानबूझकर “मोहम्मद” शब्द का उल्लेख अपमानजनक तरीके से किया और इस वजह से उन्मादी भीड़ ने उन्हें ईशनिंदा का दोषी मान लिया।
जिस दिन यह प्रश्नपत्र आया था, उसी दिन शाम को थोडुपुझा में धार्मिक संगठनों ने सड़कों पर जमकर हंगामा और तोड़फ़ोड़ की थी तथा कॉलेज प्रशासन पर दबाव बनाने के लिये राजनैतिक पैंतरेबाजी शुरु कर दी थी। केरल में पिछले कई वर्षों से या तो कांग्रेस की सरकार रही है अथवा वामपंथियों की, और दोनों ही पार्टियाँ ईसाई और धर्म विशेष “वोट बैंक” का समय-समय पर अपने फ़ायदे के लिये उपयोग करती रही हैं।
पहले समूचे घटनाक्रम पर एक संक्षिप्त नज़र- थोडुपुझा के कॉलेज प्रोफ़ेसर जोसफ़ ने एक प्रश्नपत्र तैयार किया, जो कि विश्वविद्यालय के कोर्स पैटर्न और पाठ्यक्रम पर आधारित था। उसमें पूछे गये एक सवाल पर केरल के एक प्रमुख धार्मिक संगठन ने यह कहकर बवाल खड़ा किया कि इसमें “मुहम्मद” शब्द का अपमानजनक तरीके से प्रयोग किया गया है।
मामले में जोसफ़ को गिरफ़्तार करने के लिये दबाव बनाने के तहत उनके लड़के को पुलिस ने उठा लिया और थाने में जमकर पिटाई की। बेचारे प्रोफ़ेसर ने आत्मसमर्पण कर दिया। मामला न्यायालय में गया, जहां से उन्हें ज़मानत मिल गई। लेकिन उन्मादियों ने प्रोफ़ेसर के हाथ काटने का फ़ैसला किया और जब प्रोफ़ेसर अपने परिवार के साथ चर्च से लौट रहे थे। उस समय प्रोफ़ेसर पर हमला कर दिया। उन्हें चाकू मारे और तलवार से उनका हाथ काट दिया और भाग गये।
इस मामले में पुलिस की जाँच में यह बात सामने आई है और धार्मिक संगठन के एक “कार्यकर्ता” अशरफ़ ने बताया कि केरल के अन्दरूनी इलाकों में चल रही धार्मिक अदालत ने “आदेश” दिया था कि न्यूमैन कॉलेज के मलयालम प्रोफ़ेसर के हाथ काटे जायें और इसे अंजाम भी दिया गया। एक समुदाय का दूसरे समुदाय के प्रति ऐसा व्यवहार निंदनीय है। यह देश को बांटने वाला कृत्य है। इसे कतई बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए।
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