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राम आप सचमुच जीत गए क्या…

nai baat
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बोलो राजा रामचंद्र की जय। बचपन में दशहरे के दिन गांव के मेले में यह तुमुलनाद तब सुना था जब राम का बाण लगते ही रावण का पुतला धू-धू कर जलने लगा और उसमें रखे पटाखों की गूंज से कान के परदे संज्ञाशून्य हो उठे। लाइ-गुड़ के लड्डू जिसे अवधी में हम गुड़इय़ा कहते हैं, खाते हुए यह सब देख रहे थे और हमारे बाबा ने कहा-मिट्टी उठा लो हाथ में रावण के पुतले पर फेंकना है। फिर समझ बढ़ी तो असत्य पर सत्य की जीत वाली कहानी जानी। और यह बात भी जेहन में आ गई कि असत्य भी अमर है रावण की भांति। हर साल रावण को मरता देखता हूं और सोचता हूं कि यह शायद राम की पराजय है कि घोर अभिमानी पंडत जिंदा है। भाषणों-नसीहत में हर दिन सच्चाई के पथ पर चलने की सीख देने वाले आधुनिक रामों पर भी तरस आता है। फील्ड चाहे कोई हो, धर्म, अध्यात्म, साहित्य पत्रकारिता, राजनीति।

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