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राष्ट्रपिता बनने में जो सुख है वह राष्ट्रपति बनने में कहां…। शायद इसीलिए अन्ना हजारे राष्ट्रपति नहीं बनना चाहते। उनका ताजा बयान थोड़ा सुकून देने वाला है। अब राजनीति में तो नीतिवान रहे नहीं, कम से कम समाजसेवा के क्षेत्र में एक-दो चेहरे ऐसे होने चाहिए ही, जिनके सहारे देश की बदनसीब जनता बेहतर कल का सपना देख सके। वैसे हर काल में ऐसे वीर रहे हैं जो राष्ट्रपति नहीं हुए तो क्या उनसे कम तर नहीं थे। हालांकि तथ्य यह भी अपनी जगह है कि देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद और 21 सदी के पहले दशक में एपीजे अब्दुल कलाम को छोड़ कर कोई भी पब्लिक पर बहुत प्रभाव नहीं छोड़ सका। हिंदी प्रेमी जैल सिंह की थोड़ी बहुत छवि तब बनी जब उन्होंने राजीव गांधी से पंगा लिया। अन्यथा ज्यादातर राष्ट्रपतियों जैसे सर्वपल्ली राधाकृष्णन, जाकिर हुसैन, वीवी गिरि, फखरूद्दीन अली अहमद,नीलम संजीव रेड्डी,के.आर. नारायणन, आर. वेंकटरमन, शंकर दयाल शर्मा का नाम नई पीढ़ी को याद नहीं है। प्रतियोगिता की तैयारी कर रहे युवा भी एकबारगी सभी के नामों को शायद ही बता सकें। ऐसे में अन्ना ठीक कहते हैं कि वह जहां हैं वहीं बेहतर हैं। मुझे तो लगता है कि गांधी के रास्ते पर चलने वाले अन्ना भी सौ-50 साल बाद शोध की चीज बन जाएंगे। बनारस में इस बार दुर्गा पूजा के दौरान झालरों से अन्ना बना ही दिए गए हैं। लेकिन अन्ना हजारे के इस स्टैंड से मैं थोड़ी चिंता में भी पड़ गया हूं। लोग अगर उनका अनुगमन कर बिना बीवी-बच्चों के जीवन की कल्पना साकार करने लगे तो सामाजिक व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी। जब अन्ना दिल्ली में रामलीला मैदान पर अनशन पर बैठे थे तो मेरे पास एक एसएमएस आय़ा जिसका लब्बो लुआब था –अन्ना कुछ नहीं कर पाते गर शादी शुदा होते। बीवी कहती—ये जो पैदा किए हैं (औलादें) इनकी फीस चुकानी है, घऱ का किराया देना है और ए जी ये परकटी कौन है, आज कल उसके साथ बहुत घूम रहे हो, यह नहीं चलेगा। शाम को ठीक सात बजे चले आना, समझे। अटल बिहारी वाजपेयी भी बाल -बच्चे दार नहीं हैं (अधिकृत तौर पर) वह प्रधानमंत्री की कुर्सी के आगे हार गए अपना करियर वार गए, आज है कोई उन्हें पूछने वाला। इसलिए ब्याह नहीं किए हैं तो नया जीवन का नया फलसफा अपनाइए, क्या पता आप भी अन्ना बन जाएं। राष्ट्रपिता नंबर दो।
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