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घोटाला नहीं साब, शासन की मंशा …

nai baat
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अब नौकर की क्या औकात…। जो मालिक कहेगा, वही करेगा। इससे अलग उसे कुछ सोचना भी नहीं चाहिए। यही नीति है, यही शाश्वत सत्य। पता नहीं हम किस मिट्टी के बने हैं कि ऐसी दलीलें देने वालों माफ नहीं करते। कहते हैं कि तुम्हारी बुद्धि क्या घास छीलने गई थी। कितने अमानवीय हैं हम। बेचारे पूर्व टेलीकाम सेक्रेट्री सिद्धार्थ बेहुरा को ले लीजिए। 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में उन्होंने सीबीआइ कोर्ट से दरख्वास्त की है कि हुजूर, माई-बाप मैंने तो वही किया जो राजा (तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए. राजा) ने कहा था। उन्होंने कहा फलां फाइल पर ओके लिख दो, मैंने लिख दिया। मेरे ख्याल से कोर्ट को उनकी इस दलील पर जरूर पसीज जाना चाहिए। वैसे ए. राजा की दलील भी कम दिलचस्प नहीं है। अब सब कुछ प्रधानमंत्री व पी.चिदंबरम की जानकारी में होने का दावा करने के साथ-साथ वह यह भी कह रहे हैं कि भइया अपन तो पब्लिक (आम जनता) के नौकर ठहरे। पब्लिक चाहती थी कि हाथ में ऐसा झुनझुना हो कि कहीं भी दन्न से बात हो जाए सो मंत्री के नाते स्पेक्ट्रम बांट दिए, इसमें गलत क्या किया। अब जब राजा और उनके सिपहसलार सभी कहीं न कहीं नौकर हैं और शासन (जनता) की मंशा के अनुरूप ही काम किया है तो क्यों न उन्हें संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया जाए। इसलिए मैं यही कहूंगा कि मी-लार्ड यह अपील स्वीकार कर लीजिएगा। रही बात कथित तौर पर देश के खजाने को 30 हजार करोड़ रुपये के नुकसान की तो (सीबीआइ ने कहा है) कोई बात नहीं। इसकी भरपाई वक्त कर देगा। उस पर किसी का शासन नहीं है।

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