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इतिहास बन जाएगी चवन्नी
नई दिल्ली। एक जमाना था जब दादा-दादी से चवन्नी मिल जाने पर बच्चे खुशी से उछल पड़ते लेकिन आज चवन्नी तो क्या अठन्नी की भी कोई पूछ नहीं रही। रिजर्व बैंक ने चवन्नी को बंद करने का फैसला किया है और कल से यह इतिहास बनकर रह जाएगी।
रिजर्व बैंक के आदेश के अनुसार कल यानी 30 जून 2011 से च्च्चीस पैसे का सिक्का यानी चवन्नी की वैद्यता समाप्त हो जाएगी। बढ़ती महंगाई के इस दौर में रुपये की कीमत घटने से छोटे सिक्के पहले ही चलन से बाहर हो चुके हैं। अब तो अठन्नी भी बाजार में नहीं दिखाई देती है, चवन्नी तो पहले ही चलन से बाहर हो चुकी है। पांच, दस और बीस पैसे के सिक्के तो गुजरे जमाने की बात हो चुके हैं।
रिजर्व बैंक सूत्रों ने बताया कि 31 मार्च 2010 तक बाजार में पचास पैसे से कम मूल्य वाले कुल 54 अरब 73 करोड़ 80 लाख सिक्के प्रचलन में थे, जिनकी कुल कीमत 1455 करोड़ रुपये मूल्य के बराबर हैं। यह बाजार में प्रचलित कुल सिक्कों का 54 फीसदी तक है।
हालांकि, मुद्रास्फीति की बढ़ती दर के कारण बाजार में 25 पैसे का सिक्का प्रचलन में काफी समय पहले से ही बंद है और आमतौर पर दुकानदार अथवा ग्राहक लेन-देन में इसका प्रयोग नहीं करते हैं।
जानकारी सूत्रों के अनुसार 25 पैसे के सिक्के का धातु मूल्य की लागत ज्यादा पड़ती है। अर्थशास्त्र की भाषा में इसे सिक्के की ढलाई का नकारात्मक होना कहा जाता है। शुरुआत में इसका मूल्य उसकी लागत से अधिक होता था। धातु और अंकित मूल्य के बीच का यह अंतर ही सरकार का फायदा होता है, लेकिन अंकित मूल्य कम और धातु मूल्य अधिक होने से यह नुकसानदायक हो जाता है।
उल्लेखनीय है कि सिक्के बनाने में मुख्य रूप से तांबा, निकल, जस्ता और स्टेनलेस स्टील का इस्तेमाल किया जाता है। वैश्विक बाजार में इन प्रमुख धातुओं की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण अधिकतर देश कम मूल्य वाले सिक्के बनाने से कतराने लगे हैं।”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””’//////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””
जब मैं छोटी थी तो चवन्नी में एक कुल्फी मिल जाती थी .जो बड़ी स्वाद होती थी.पर आज वो दिन भी आ गया है जब हमें चवन्नी को अंतिम बार विदा कहना पड़ेगा.कई यादें है इस चवन्नी के साथ. किसी बहुत छोटे और गंदे बच्चे को चवन्नी कहकर चिड़ाया जाता था.मेरे भाई को एक बार शोक पैदा हुआ चवन्नी जमा करने का.बहुत सरे चवन्नी जमा करी .पर बाद में उनका क्या हुआ पता नहीं? इन सब यादो के बीच चवन्नी अब गायब हो जाएगी . पर मैं अपने गुल्लक में जरुर रखूंगी. मैंने बहुत छोटी पर बहुत मीठी चीज़े इस चवन्नी की बदोलत ही खायी है.तब हमारे पास ये खजाने के जैसी होती थी.जिसे हम अपनी पसंद के चीजों के खाने पर खर्च कर लेते थे. दो चवन्नी में आलू की चाट आती थी .खट्टी और मीठी दोनों. बड़ा मज़ा आता था खाने में. मैं हमेशा हर दूसरे दिन चाट खाती थी, कुल्फी वाला तो बाज़ार में कभी कभार मिलता था. चवन्नी को हम कभी कभी देवता के रूप में भी मानते थे.पर तब तो बहुत ही छोटी थी.हम सिक्के को हाथ में बंद कर लेते थे और भगवान से मंगाते हुए कहते थे की अगर भगवान ने हमें हमारी चीज़ दे दी तो हम ये सिक्का भगवान को दे देंगे.याद नहीं की ऐसा कहकर हमारी इच्छा पूरी हुई थी भी या नहीं. पर हम बहुत मिस करेंगे अपने चवन्नी को.
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