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जय हो बाबा रामदेव जी की

sushma's view
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अन्‍ना ने भी मुंह मोड़ा !

रामदेव की ओर से सेना तैयार किए जाने का विरोध करते हुए टीम अन्ना ने स्पष्ट किया कि उनकी दिशा अलग है। अनशन में यह स्पष्ट करने की कोशिश होती रही कि अन्ना सच्चे सत्याग्रही हैं ।

बयान से पलटे बाबा

ग्यारह हजार लोगों का सशस्त्र कैडर तैयार करने के बयान पर मचे बवाल के बाद बाबा रामदेव की ओर से स्पष्टीकरण जारी कर कहा गया कि कानून हाथ में लेने का हमारा इरादा नहीं है।

दान में मिला द्वीप

बाबा रामदेव ने अपने दो ट्रस्टों के संपत्ति विवरण को छोड़कर शेष सभी ट्रस्टों से जुड़ी संपत्ति का विवरण इंटरनेट पर सार्वजनिक कर दिया है। बाबा ने अपने चार ट्रस्टों की संपत्ति करीब 1177 करोड़ रुपये की बताई है….

४२६ करोड़ के बाबा रामदेव
सन्त और पापी में केवल यह अन्तर है कि हर सन्त का एक भूतकाल होता है और हर पापी का एक भविष्य।
और शायद बाबा रामदेव इस बात को भूल से गए है की , उनकी सबसे बड़ी प्रतिस्ठा योगाचार्य होने में ही है.बाबा रामदेव योग के ज्ञाता है,योग की शिक्षा का प्रचार और प्रसार उन्होंने उसी तरह किया है जिस तरह से हम विचार कर सकते है की कभी अशोका द ग्रेट ने बोध धर्म के प्रचार और प्रसार के लिए किया था.अशोका की सबसे महान बात यहीं थी की उन्होंने जीवन में उन उपदेशो को ह्रदय से आत्मसात किया और वे उसके लिए और उस तरह से जिए भी.जैसा उन्होंने सिखा . अशोका ने सीखने से पहले जो कुछ भी किया हो पर सीखने और मनन करने के पश्चात उसने वही किया जो वो पूरे मन से करना चाहता था. और इस कार्य के लिए उसने एक और जहाँ अहिंसा को अपनाया वही अपने पुत्र और पुत्रियों को भी इस कार्य के लिए उद्धत किया.
कहने का अर्थ है.
लोग धर्म के लिए आपा-धापी करेंगे, उसके लिए लिखेंगे, उसके लिए लड़ेंगे, उसके लिए मरेंगे, सब करेंगे पर उसके लिए जिएंगे नहीं।धर्म से तात्पर्य यहाँ सिर्फ उन बटवारे से नहीं है की भगुवा पहनने से आप हिन्दू और अल्लाह कहने से मुस्लिम हो जाते है. धर्म है मानवता का , और इस मानवता के धर्म में “मेरा अपना विचार है की “बाबा रामदेव द्वारा सराहनीय प्रयास हुआ है. वो चाहे ४२५ करोड़ की संपत्ति हो , पर पंतजलि योगपीठ से सुविधाएँ और सेवाएं भी निश्चित रूप से मिली है. हा :ये दीगर बात है की योग आपको इंग्लिश दवाओ की तरह तुरंत आराम मुहैया नहीं करा सकता. और इसके अच्छे परिणामो के लिए आपको सब्र करना पड़ता है.क्योकि मेरा मानना है की दुनिया में प्रत्येक लोग
जितनी मेहनत से नरक में जाते हैं, उससे आधी से स्वर्ग में जा सकते हैं।कहने का अर्थ ये है की जिसका काम उसी को साजे.
……………………नहीं यहाँ ये मतलब कतई न लगाये की भ्रस्टाचार की ओर रामदेव जी को आवाज नहीं उठानी चाहिए.पर यहाँ ये कहना जरुरी है की रामदेव जी की करनी नरक में जाने के लिए ही है.जबकि इससे पहले उनके द्वारा जो काम करा गया उससे निश्चित ही वो स्वर्ग के अधिकारी थे.
पर लगातार उनके द्वारा किये गए अनावश्यक कार्य …………….रिश्वत………………महिला कपडे………………करोड़ की संपत्ति…………………………….. निश्चित ही उन्हें नरक का टिकेट दे रही है. ……………………………

क्या इससे अच्छा ये न था की वे अपने कार्य को ही ओर अच्छे ढंग से करते .हमारे भारत की महान स्तिथि ये है की हम बड़ी जल्दी सेंटिमेंट में आ जाते है. किसी ने दो शब्द अच्छे न कह दिए की घर बार छोड़ उसके पीछे चल देते है .
अगर ईश्वर न भी हो तो उसका आविष्कार कर लेते है. ओर उसे जबदस्ती मानने की जिद भी करते है.
यहाँ रामदेव जी के पास ये जो अकूत संपत्ति आई है वो इसी अविष्कार का ही नतीजा तो है.मुझे तो रामदेव जी
अवसरवादी :ज्यादा लगते है जो की

गलती से नदी में गिर पड़े तो नहाना शुरू कर दे।
एक के बाद एक तमाशे करके वो क्यों हाई लाइट में आना चाहते है पता नहीं?
फिर ये कहना की मुझे चुनाव नहीं लड़ना है……………………का क्या मतलब है .कोई यक्ति यदि सुबह सुबह योग करे ओर थोडा घुमने भी जाये ओर उसे रास्ते में कुछ बच्चे मिल जाये जो कहे वह दादा जी आप तो बहुत फिट लग रहे है क्या बात है? खूब वोकिंग हो रही है…………………………

ओर दादा जी का reply आये की नहीं वो बस: अरे मुझे कोई दूसरी शादी थोड़े ही करनी है…………………….
मेरा कहना है की ………”””
लोग अलग-अलग तरीकों से अपने गुस्से को अभिव्यक्त करते हैं. कुछ झगड़ा करते हैं, तो कुछ तोड़-फोड़. कोई सत्याग्रह करता है, तो कोई अनशन. मकसद एक ही होता है – सामने वाले को समझाना कि मैं आपसे या आपके तौर-तरीकों से सहमत नहीं हूँ.”””
तो अगर आपका मकसद लोगो को जागरूक करना ही है तो ये आप अपने योग के मध्य योगा करवाते हुए भी समझा सकते है. मैं मानती हू की लोग मानेगे नहीं पर मनन जरुर करेंगे इस भ्रस्टाचार को स्वयं से ही ख़त्म करने का……..इस तरह से एक अलग ही यवस्था कड़ी करना ,भीड़ जमा करना .कई कार्य बाधित करना ,सत्याग्रह करना ……..ओर अपनी प्रतिस्ठा के प्रतिकूल वयवहार करना सचमुच निराशाजनक है.
आप के पास पूर्व में ही समूची जनता है जो आपको सुनती ओर समझती है, जानती है मानती है, तो क्यों अन्ना वाला ही तरीका लागू करे. कुछ ऐसा करे जो जनता के नजदीक जाकर उन्हें समझकर हासिल किया जा सके. अध्यापक के लिए आवश्यक है की वो नयी पीड़ी को अपने संदेशो को बहुत ही गंभीर तरीके से समझाए . उन्हें बातो की याख्या नहीं बल्कि बातो का मर्म समझ में आ सके . आप किसी से “जंगल को मत उजाडो ” …………..कहने की बजाय अगर ये सन्देश दे पाए की ” जंगल से हमें क्या मिलता है. ओर क्यों जंगल हमारे लिए जरुरी है………….तो ज्यादा बेहतर होगा.

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