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यू तो आँखे नम है
तेरे सिवा आज न कोई गम है,
मैं हू जिन्दा ,मगर ये जिंदगी तो नहीं
मरती हू मैं ,
लेकिन तू मरी नहीं……………
हम में भर कर एक चिंगारी
तूने लौ जला दी है ,
हम लड़ेंगे ये बात,
हमने हर और फेला दी है.
आज आखिकार दामिनी चली गयीं और सच माने तो उसने अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा काम तो कर ही दिया था. पूरे राष्ट्र को जगाने का काम ………क्या इससे पहले रेप नहीं हुए बलात्कार नहीं हुए या फिर औरतो के साथ कार्य स्थल ,पब्लिक प्लेस पर वारदाते नहीं हुई.मसला आज भी ज्यो का त्यों है.देखने वाली बात यहीं है की आज आम जन जागा है. हम अब शायद सोच सकते है कि कल सब कृष्ण बनेगे, वही कृष्ण जिसने अपनी बहन द्रोपदी के चीर हरण में उनकी लाज बचाई थी…..असल में मुद्दा यहाँ यह भी है की हमें क्या पड़ी है सोच से निकलना.आज हर माँ ,बहन बेटी और लड़की असुरक्षित है क्यों? ऐसा क्या है समाज में जो वो अपनों के बीच रहकर भी असुरक्षित है ,महसूस कर रही है.यहाँ दामिनी तो मिसाल है एक ऐसे सुप्त जंग की ,जो इस दुनिया को कुछ नए रंग देकर जाएगी.हमें कुछ वक्त इंतजार करना होगा.पर बात सिर्फ दामिनी की ही नहीं है यहाँ बात है कई दामिनियों की .जो बेवक्त अपना होसला खोती और इस दुनिया में एक अपनी अनोखी जंग लडती नजर आती है.वो जंग क्या है जब वो अपनी माँ को बताती है तब ओहदा ,पैसा ,रुतबा, छोटे लोग,लड़की जात,निम्न स्तर,मज़बूरी ,कम बोलो,विनम्र रहो जैसे कई उपमानो के साथ परिस्तिथि आ जाती है जो उसे जंग को लड़ने पर मजबूर कर देती है.उस जंग में हार या जीत का कोई मतलब नहीं रहता क्योकि जीत पर जहा वो अपनी शांति खो देती है कभी कभी अपनी आमदनी का जरिया खो देती है वही दूसरी और हारने पर अपनी जिंदगी मौत से पहले ही खो देती है .तो क्या इसके लिए आवाज उठाने का कोई रास्ता रखना उचित है या नहीं………………आज हमें कानून के एक अध्याय की जरुरत है क्योकि हम आवाज उठाना चाहते है .कुछ ऐसा होना चाहिए जिससे ऐसा कर्म करने से पहले ये दरिन्दे डर जाएँ कुछ करने से पहले इनके सामने इनकी सजा इनके आँखों के सामने दोड जाएँ .पर क्या इन दरिंदो के आँखों में ये डर आपको नजर आता है ……नहीं ना; क्योकि दस साल ,पञ्च साल सिर्फ सजा …………….बल्कि सजा भी नहीं ये तो मज़ा है ……..इतने साल में तो लोग इनका चेहरा भी भूल जाते है .और फिर मज़े से ये अपनी जिन्दगी शुरू कर लेते है…………………………………………………लेकिन वो लड़की वो लड़की कहा है ? वो कैसी है? वो जब तक जिन्दा रहेगी जीती रहेगी एक ऐसी लड़की के रूप में जिन्दा रहेगी जो अपनी इज्ज़त खो चुकी है .वो अपने बूते अगर सम्मान भी जुटा ले तो भी वो एक रेप की हुई लड़की ही रहेगी .तो क्या हम बदलना चाहते है ? तो ये शुरुवात हमें अपने आप से ही करनी होगी .हमें अपना हर वो नजरिया बदलना होगा. जो लड़की के कपडे ,जिस्म से होकर गुजरता है.अगर हम सभी अपने नजर को संभाल ले क्या अगली पीड़ी को को ये समझाना आसान नहीं रहेगा की किसी की भी बहन तुम्हारी भी बहन समान है.हम ये समझ पायें की भगवान ने लड़की को सिर्फ भोग्य बनाकर नहीं भेजा है.हमें ये कोशिश करनी होगी की हम अपने मन में शुद्धता ,समानता भर सके जो आज के समाज में बहुत जरुरी है. और इन सबके बाद उस कानून का भी हम इंतजार करेंगे जो लड़की के हित के लिए चीख चीख कर बोलेगा की ये न्याय उसका हक है ,जन्मसिद्ध अधिकार है .अब कोई दामिनी इस तरह बस में ,कोई गीतिका इस तरह मज़बूरी में और कई बालिकाएं लड़कियां यू सडको पर न फेकी जाएँगी ,ना ही आत्महत्या करेंगी.
तो क्या हम संकल्प लेंगे.
और अगर हम आज संकल्प नहीं लेते तो इन सब बेजरुरी चीजों के लिए क्यों रुकते है अपना टाइम ख़राब करते है.आगे बड़ जाइये.अभी तो और तमाशे बाकी है.
आपको नया वर्ष मुबारक नहीं हो.आपके घर भी गीतिका दामिनी जन्म ले …………..और तब तक जन्म ले जब तक आप चेते नहीं ,जगे नहीं ,आपके मन के अन्दर वो सब बाहर आकर फूटे नहीं .तब तक ,तब तक आपको नया वर्ष मुबारक नहीं हो.
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