sushma's view
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आज भी बहुत कुछ ऐसा ही है जैसा पहले हुआ करता था आप कहेंगे कैसे? कैसे का सवाल तब आता है जब सारे दोषो का केंद्र सिर्फ औरत को ही ना बनाया जाए .हम बहुत कुछ सोचते है विचारते है और अंतत: उस आखिरी कड़ी में ही पहुच पाते है कि अगर औरत ठीक होती या लड़की ने ऐसा ना किया होता तो सब ठीक होता.मुझे समझ में नहीं आता कि क्या भगवान ने पुरुष को घोडा बनाकर भेजा है या खच्हर .बुधिहिन बनाकर भेजा है या बुद्धिजीवी.मुझे ऐसा लगता है पुरुष नाम के जीव को कुछ ज्यादा ही बुद्धि देकर भेजी गयी है जो वो हर बात में औरतो को आगे कर देता है और तमाशा सुरु होने पर तमाशबीन होकर एक तरफ हो जाता है आज मैं देखती हू तो ये मंजर जहा एक ऑरत अपने आप को कही भी सुरक्षित नहीं समझ पाती तो इतनी सारी व्याखान का क्या मतलब?इतनी सारी आजादी का क्या मतलब.
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