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सती का आत्मदाह

sanjeevani
sanjeevani
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सती का आत्मदाह

आज वो खत्म हुयी है ,
जो दुनिया कि बुराइयों के बाद भी
उसी रास्ते पर थी
जो उसे उसके नीलकंठ ने दिखाया था ,
विष को अपने अंदर धार कर
जग का कल्याण करने कि राह ,
और उसी राह पर चल रही थी
तब से,
जब  माँ ने पहली पायल पैरों में डाली थी ,
आज  रुनझुन करते
उन्ही पायलों के साथ
माँ कि नयी सारी ,
काम वाली बाई को दे आयी थी वो |
बहुत डाट खाई थी ,
पर शिव कि सती
को शिव के पदचिन्हों पर चलने से
कौन रोक पाया है ?
तीन से तीस कि होते तक
जब भी ईश्वर के सन्मुख कुछ माँगा
किसी न किसी के लिए था
दूसरों के भले में ही अपना भला
चाहा था उसने ,
इसीलिए कोई  बाप बन
कोई भाई बन ,
कोई सखी बन ,
कोई प्रियतम बन
लूट रहा था उसे |
स्नेह, करुना, दया ,
वैराग , त्याग ,
ये ही  थे उसके जीवन के प्रतिमान ,
इन्ही  के कारण जीवन के हर स्तर पर ठगी गयी ,
क्या गलत थे उसके प्रतिमान
या लोगों को कद्र नहीं थी ,
उन प्रतिमानों की |
बहुत कोशिश की सती को शिव से भिन्न करने की ,
पर भिन्न करने कि इस
कोशिश में
आज सती ने वैसे ही आत्मदाह कर लिया ,
जैसे
दक्ष के यज्ञ कुंड में |

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