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आंच ..! तुम्हारे लिए ……

कोना एक रुबाई का
कोना एक रुबाई का
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रात सिक्के की तरह
उछली थी
मगर जब गिरी
तो ना चिट थी
ना पाट थी,
मगर उसके गिरने की आवाज़
मेरी आँखो ने सुन ली,
आँखे उठी
और बैठ गयी
झांकती गयी दूर तक
ये ज़हन मे मेरे,
जहां तेरी याद
अंधेरे कमरे मे
स्विच बोर्ड के लाल
इंडिकेटर की तरह
जल रही थी….!!

फिर मेरे पान्व भी
जाग गये
मैंने उठकर
पंखा बुझा दिया,
और अंधेरे कमरे मे
एक मोमबत्ती को जलाकर
अपनी हथेली से
घेर लिया
उसकी लौ को मैने…

यूँ मैं
तमाम शब
तेरे तखल्लुस को
महसूस करता रहा…..!!!

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