kavita~Kala
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बड़े-बड़े शहरों में ग़ालिब
अखबारों में क्या छपता।
देश का बनिया लूट चवन्नी
परदेशों में जा छिपता [१ ]
सरकारें अफ़रातफ़री में
बैंक बड़े बेहाल पड़े
देश-देशांतर तू-तू, मैं-मैं
जनता ले अख़बार पढ़े [२ ]
डूब गई लुटिया, वातिल-गमन की
नेता जी के क्या छटका?
मरती तो बदहाल किसानी
भारत का सोना मरता [३]
आज़ के अख़बारों में ग़ालिब
न्याय छोड़ सब कुछ छपता [४]
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