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याद में तिल-तिल तड़पना

kavita~Kala
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याद में तिल-तिल तड़पना

याद में तिल-तिल तड़पना
रात का जगना
झलक भर को
एक-बस
वीरान में नज़रें भटकना
जाने क्या दीवानगी है
अजब दिल का टूट, हँसना

याद में तिल-तिल तड़पना

अश्क पलकों से फिसलना
मुस्कुराकर बात करना
सुन सके न कोई, उस
आवाज़ से पल-पल बिलखना


याद में तिल-तिल तड़पना

बेरुखी अंदाज़ में कुछ
बेसुधी सी होश में
वो, महफ़िलों में, तेरी गोरी
बाहों का
न होना
खलना


याद में तिल-तिल तड़पना

नींद में भी, होश में भी
रात आते स्वप्न में भी
स्मरण करना तुम्हारी
तुमसे सब बेबाक कहना
चाहतों की बातें करना
स्वप्नों का सजना, विखरना
मंज़िलें जिनके लिए सब
राज सब संसार तजना
अब हैं लगतीं बेवजह
ये बेतुका मन का बहकना


याद में तिल-तिल तड़पना

‘स्वव्यस्त’

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