kavita~Kala
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अश्क पलकों से फिसलना
मुस्कुराकर बात करना
सुन सके न कोई, उस
आवाज़ से पल-पल बिलखना
बेरुखी अंदाज़ में कुछ
बेसुधी सी होश में
वो, महफ़िलों में, तेरी गोरी
बाहों का
न होना
खलना
नींद में भी, होश में भी
रात आते स्वप्न में भी
स्मरण करना तुम्हारी
तुमसे सब बेबाक कहना
चाहतों की बातें करना
स्वप्नों का सजना, विखरना
मंज़िलें जिनके लिए सब
राज सब संसार तजना
अब हैं लगतीं बेवजह
ये बेतुका मन का बहकना
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