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बुढ़ापा

kavita~Kala
kavita~Kala
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सिसकती थक हार जीवन

अंत से बेजान जर्ज़र

सह थपेड़े जिंदगी के

पूतों के दुत्कार बर्बर |1|


झुक गईं सब अस्थियाँ

कोमल त्वचा झुर्रा गयी

ज्यों सर तड़ागों की कुमुदनी

धूप से कुम्हला गई |2|


प्रीत थी जब तक थे प्रीतम

प्रियतमा कहने को कोई

नींद थी, रातें भी थीं

और साथ में हम-राह कोई |3|


पर… अब वो प्रीतम

न प्रीत जग में

ना रहा हमदर्द साईं

खो गए श्रृंगार सारे

गेसुओं की रहनुमाई |4|


अब तो बस, कुछ यादें दिल में

ढेर सारी सिसकियाँ हैं

दूर से आदर दिखाती,

शेष कुछ नजदीकियां हैं |5|


-स्वव्यस्त

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