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अन्ना हजारे द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाया जा रहा आंदोलन अच्छा है पर व्यावहारिक नहीं. यही वजह है कि मैं अपने आप को अन्ना की टीम से अलग कर लिया.अन्ना भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन चला रहे हैं, यह अच्छी बात है. उनके आंदोलन को देशवासियों व मीडिया के लोगों ने भी भरपूर समर्थन किया है, पर आंदोलन का तरीका लोकतांत्रिक होना चाहिए अव्यावहारिक नहीं.
अन्ना टीम के सदस्य लोकतांत्रिक मूल्यों की बात तो करते हैं पर व्यवहार में उनका क्रियाकलाप नहीं झलक रहा. हजारे ऊपरी स्तर पर आयी भ्रष्टाचार के खिलाफ ही सिर्फ मुहिम चला रहे हैं.
मैं चाहता था कि आंदोलन निचली स्तर से चलाया जाये ताकि आंदोलन से गरीबों को उनका वाजिब हक मिल सके. इन्हीं मतभिन्नताओं को लेकर मैंने अपने आपको टीम अन्ना से किनारा कर लिया.लोकपाल के सवाल पर आम राजनीतिक सहमति बनाने की सरकारी कोशिश बेनतीजा रही
लोकतंत्र में परिवर्तन लाने की अलख जगाने वाले ही मतदान नहीं कर पाए। ये अधिकार की तो बात खूब बढ़ चढ़कर करते हैं लेकिन कर्तव्य याद ही नहीं रहता। केजरीवाल जी, ये न भूलें कि भारतीय संविधान में अधिकारी के साथ कर्तव्य की भी बातें कहीं गई हैं। कुल मिलाकर मतदाता सूची में अपना नाम सुनिश्चित करना केजरीवाल का भी दायित्व बनता है।
मतदाता सूची में नाम न होने के कारण टीम अन्ना के प्रमुख सदस्य अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसौदिया वोट नहीं डाल सके। लेकिन भ्रष्टाचार के विरुद्ध इतना बड़ा जनआंदोलन खड़ा करने वाले केजरीवाल को भी इस बात की जरूर चिंता होनी चाहिए थी कि मतदाता सूची में उनका नाम है या नहीं।
केजरीवाल का नाम मतदाता सूची में न होने के मामले में चुनाव आयोग ने उन्हें ही जिम्मेदार माना है। मंगलवार को मुख्य निर्वाचन अधिकारी उमेश सिन्हा ने साफ कहा कि मतदाता सूची में अपना नाम सुनिश्चित करना खुद मतदाता का भी दायित्व है।
टीम अन्ना के प्रमुख सदस्य अरविंद केजरीवाल ने संसद को सीधे निशाने पर लेकर देश की सर्वोच्च लोकतांत्रिक संस्था के सम्मान को लेकर नई बहस छेड़ दी है। तमाम संविधान के विशेषज्ञों का मानना है कि केजरीवाल की संसद पर की गई टिप्पणी संसदीय अधिकारों की अवमानना की परिधि में आती है जबकि कुछेक केजरीवाल के पक्ष में बोलने के मौलिक अधिकार के बहाने खड़े हैं।टीम अन्ना के एक अन्य सदस्य कुमार विश्वास के कहने पर केजरीवाल एयरपोर्ट से वापस लौट आए। लेकिन उनका लौटना सफल नहीं हो सका। एक ओर उन्हें मतदान केंद्र पर लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा वहीं वोटिंग लिस्ट में नाम नहीं होने की वजह से केजरीवाल वोट भी नहीं डाल सके। मतदाता जागरुकता अभियान के सिलसिले में गोवा जा रहे केजरीवाल ने भी माना कि उन्होंने अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने की पहल नहीं कर गलती की।
कांग्रेस ने केजरीवाल पर चुटकी लेते हुए कहा कि टीम अन्ना को सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी के पैरोकार करार दिया। दिग्विजय सिंह ने ट्वीट किया, ‘अन्ना वोट नहीं देते हैं। केजरीवाल को इसकी फिक्र नहीं कि वह बतौर वोटर रजिस्टर्ड हैं या नहीं। साफ है कि टीम अन्ना जैसा उपदेश देती है, उस पर खुद अमल नहीं करती। टीम अन्ना बताए कि उन्हें लोकतंत्र में विश्वास है या नहीं। यदि वो लोकतंत्र में विश्वास करते हैं तो किस तरह के लोकतंत्र में।’
अन्ना हजारे द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाया जा रहा आंदोलन अच्छा है पर व्यावहारिक नहीं. यही वजह है कि मैं अपने आप को अन्ना की टीम से अलग कर लिया.अन्ना भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन चला रहे हैं, यह अच्छी बात है. उनके आंदोलन को देशवासियों व मीडिया के लोगों ने भी भरपूर समर्थन किया है, पर आंदोलन का तरीका लोकतांत्रिक होना चाहिए अव्यावहारिक नहीं.अन्ना टीम के सदस्य लोकतांत्रिक मूल्यों की बात तो करते हैं पर व्यवहार में उनका क्रियाकलाप नहीं झलक रहा. हजारे ऊपरी स्तर पर आयी भ्रष्टाचार के खिलाफ ही सिर्फ मुहिम चला रहे हैं.मैं चाहता था कि आंदोलन निचली स्तर से चलाया जाये ताकि आंदोलन से गरीबों को उनका वाजिब हक मिल सके.वास्तव में, हर सफल गैर काग्रेसी आदोलन का आरंभ इसी तरह गैरसियासी अभियान से ही हुआ। जेपी व वीपी दोनों के ही आदोलन भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम से शुरू हुए थे। शुरुआती दौर में दोनों ही आदोलनों में दलगत राजनीति को नहीं स्वीकारा गया था। जेपी तो दलहीन जनतत्र के सिद्धात के जन्मदाता ही हैं। वीपी सिह भी अपने अभियान को आदोलन या मच ही बताते थे। अन्ना आदोलन का पहला दौर भी ठीक इसी तरह चला। जैसे आखिर में जेपी और वीपी का अभियान काग्रेस विरोधी राजनीतिक दलों से जुड़ गया था। अन्ना के अभियान में भी कुछ-कुछ वैसी ही शुरुआत के सकेत मिलने लगे हैं। अब आगे यह देखना दिलचस्प होगा कि अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान और विपक्षी दलों के काग्रेस विरोधी अभियान में कितना नजदीकी तालमेल बैठ पाता है।
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