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SYED ASIFIMAM KAKVI
21/03/2012
श्रीलंका की हार और बांग्लादेश की जीत के साथ ही भारत ऐशिया कप से बाहर हो गया. क्रिकेट तो जीत-हार का खेल है ही. पर जिस तरीके से श्रीलंका हारा, वह सवाल खड़ा करता है.
हम मनाते रहे कि बांग्लादेश हार जाये,श्रीलंका जीत जाये ताकि भारत फ़ाइनल खेले, पर प्रार्थना बेकार.बांग्लादेश ही जीता, साथ में भारत बाहर. अब हम भले ही चिल्ला-चिल्ला कर आरोप लगाते रहे कि जानबूझ कर श्रीलंका हारा ताकि भारत बाहर हो जाये, पर इन आरोपों पर कौन भरोसा करेगा. और उसने अपनी रणनीति के तहत मैच हारा हो, पर इसके लिए दोषी तो टीम इंडिया ही है. आखिरर हम अपने बल पर फ़ाइनल में क्यों नहीं पहुंचे? अब पछताने से कुछ नहीं होनेवाला.
पूरे मैच को जिसने भी देखा, उसके मन में एक ही सवाल उठा-‘क्या श्रीलंका जानबूझ कर हारा? हालांकि इसका प्रमाण देना आसान नहीं है. इसके विपक्ष में मत रखनेवाले कह सकते हैं कि इसी बांग्लादेश ने तो भारत को भी हराया था. इसमें कोई दो राय नहीं कि बांग्लादेश हाल के दिनों में एक फ़ाइटर टीम के रूप में उभरी है.
पर अंतिम लीग मैच में जिस तरीके से पहले श्रीलंकाई बल्लेबाजों ने विकेट फेंके (जयवर्धने, दिलशान और संगाकारा के विकेट तो 32 रन पर ही गिर चुके थे), उससे संदेह शुरू हो गया था. श्रीलंका की टीम किसी तरह 232 रन बना सकी. खेलने का उनका तरीका, बॉडी लैंग्वेज यह बताने के लिए काफ़ी है कि श्रीलंका की टीम आज चाहती क्या थी?
जब गेंदबाजी करने का मौका आया, तब भी श्रीलंका के खिलाड़ियों का रवैया वही रहा. भले ही नया लक्ष्य 212 रन का रखा गया हो, पर 135 रन पर पांच विकेट गिरने के बाद अचानक श्रीलंका के गेंदबाजों ने बांग्लादेश के बल्लेबाजों को छूट देनी शुरूकर दी.
हर ओवर में एक-दो गेंद लेग स्टंप के बाहर फेंका, ताकि या तो गेंद वाइड हो या फ़िर पैड से लग कर सीमा रेखा के पार हो जाये. प्रमाण देखिए. 28वां ओवर. गेंदबाज लकमल ने पहले वाइड गेंद फेंकी. फ़िर लेग स्टंप के बाहर. चार लेग बाई.
एक ओवर बाद कुलासेकरा को जब मौका मिला तो वही हाल. यह मैच का 30वां ओवर था. फ़िर लेग बाई चार रन. जब कैच उछला तो मलिंगा ने कैच लेने का प्रयास नहीं किया. यह सब कोई कहे या नहीं, दुनिया के करोड़ों लोग देख रहे थे. अब सवाल यह है कि ‘या यह सही क्रिकेट है. एक देश को रोकने के लिए दूसरा देश क्या इस हद तक जा सकता है.
मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंडुलकर ने अपने करियर में 100 शतक लगाए हैं, लेकिन सबसे मनहूस सैकड़ा रहा बांग्लादेश के खिलाफ लगा महाशतक। इस के कारण टीम इंडिया बांग्लादेश से हारकर एशिया कप से बाहर हो गई।
एक खिलाड़ी किसी भी उपलब्धि को हासिल करने के बाद खुशी जाहिर करता है, दर्शकों का अभिवादन करता है और मुस्कुराता है। लेकिन मीरपुर के शेर-ए-बांग्ला स्टेडियम में सौवां शतक लगाने के बाद सचिन के चेहरे पर ऐसी कोई खुशी नजर नहीं आई। कुछ था तो बस एक सुकून, जैसे उन्होंने किसी बड़ी समस्या से निजात पाई हो।
सचिन के शतकों के साथ अकसर एक जुमला जोड़ा जाता है, जिस भी मैच में तेंडुलकर की सेंचुरी लगती है वो भारत हार जाता है। बांग्लादेश के खिलाफ भी ऐसा ही कुछ हुआ। ना सिर्फ टीम इंडिया मैच हार गई, बल्कि टूर्नामेंट से भी बाहर हो गई।
पाकिस्तान के खिलाफ रिकॉर्ड जीत दर्ज करने के बावजूद भारत को एशिया कप से बाहर होना पड़ा। बांग्लादेश के खिलाफ हुए मुकाबले में मिली हार के पीछे एक बड़ा कारण रहा सचिन का शतक।
2 अप्रैल, 2011 का दिन। जैसे कल ही की बात हो। मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में श्रीलंका को हराकर टीम इंडिया वर्ल्ड चैंपियन बनी थी। हर ओर बस धोनी ब्रिगेड की जय-जयकार थी। लेकिन ठीक 11 महीने और 19 दिन बाद यही टीम लगातार दूसरे टूर्नामेंट के फाइनल तक का सफर तय करने में विफल हो गई। प्रशंसकों के लिए इस बात को हजम कर पाना मुश्किल लग रहा है।
पहले ऑस्ट्रेलिया में हुई त्रिकोणीय वनडे सीरीज में सबसे तेज जीत दर्ज करने के बावजूद भारत फाइनल में नहीं पहुंच सका। इसके बाद घरेलू मैदानों जैसी परिस्थितियों में हुए 11वें एशिया कप में सबसे बड़े लक्ष्य को हासिल करने के बाद भी टीम टूर्नामेंट से बाहर हो गई। आखिर ऐसा क्या हुआ जो एकाएक यह विश्व-विजेता टीम बांग्लादेश जैसी कमजोर टीम के सामने तक बौनी साबित हो गई। टीम इंडिया को अब जुलाई के बाद ही कोई इंटरनेशनल मुकाबला खेलना है। यदि टीम प्रबंधन इन खामियों को दूर करने में कामयाब होता है, तो टीम एक बार फिर वर्ल्डकप चैंप का रुतबा हासिल कर लेगी कम से कम खेल में इतनी दुश्मनी नहीं होनी चाहिए. संयुक्त राष्ट्र में श्रीलंका के खिलाफ़ भारत वोट करनेवाला है. क्या यह उसका असर है? अगर ऐसा है तो यह और भी खतरनाक है. खेल को राजनीति से नहीं जोड़ा जाना चाहिए. क्रिकेट में जिस तरीके से मैच फ़िक्स हो रहे हैं, हो सकता है यह उसका हिस्सा हो. जो भी हो, क्रिकेट के लिए बेहतर नहीं है. श्रीलंका दावा कर सकता है कि उसने हर संभव प्रयास हिया, पर यह सच है कि इस मैच में हारने से उसे कोई अंतर नहीं पड़ेगा पर भारत बाहर जरूर होगा. यह बदले की भावना है. क्रिकेट को इससे बचना चाहिए.अब भारतीय टीम लौट जायेगी. ऐशया कप . पर अपनी कमियों को टीम इंडिया ढंक नहीं सकती. पहले टेस्ट हारे, बुरी तरह. फ़िर वनडे सीरीज. फ़ाइनल में भी नहीं पहुंचे. जो मैच जीतना चाहिए था, वह हार गये. शुरू में मैच को मजाक में लिया, लगा कि फ़ाइनल में पहुंचने से कौन रोकेगा, खूब प्रयोग किया. पर जब लगे हारने लगे, तब दिमाग ठिकाने पर आने लगा. खूब गुटबाजी की, रोटेशन पॉलिसी के तहत आराम दिया, इसलिए कि सब सीनियर खिलाड़ी फ़ाइनल में फ़ार्म में रहें. पर फ़ाइनल का सपना अधूरा रह गया. जितनी ऊर्जा बचा कर सीनियर खिलाड़ियों ने रखी थी, सब बची रह गयी. अब आइपीएल में सब ताकत दिखायेंगे. कोहली और कप्तान धौनी की बल्लेबाजी को छोड़ दिया जाये, तो सारे खिलाड़ियों का प्रदर्शन घटिया ही रहा, चाहे वे सीनियर हों या जूनियर. कोई सराहने लायक नहीं रहा. गेंदबाजी में भी वही हालत रही, पर अगर टीम इंडिया डूबी तो बैटिंग के कारण.
अब गम मनाने से कुछ नहीं होनेवाला. टीम इंडिया बाहर है. अब टेंशन भी नहीं है कि भारत फ़ाइनल जीतेगा या नहीं. बांग्लादेश जीते या पाकिस्तान , क्या फ़र्क पड़ता है. पर इस सीरीज में जो कमियां सामने आयीं, वह अगर दूर नहीं की गयी तो आनेवाले दिनों में इसी टीम इंडिया की और फ़जीहत होगी.
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