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खामोशी के शायर की विदाई

SYED ASIFIMAM KAKVI
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SYED ASIFIMAM KAKVI
15/02/2012
सी ने में जलन आंखों में तूफान-सा क्यों है, इस शहर में हर शख्स परेशान-सा क्यों है जैसी पंक्तियों के जरिये आधुनिक जिंदगी की तल्ख सचाइयों को शब्द देने वाले शायर शहरयार इस तरह चले जाएंगे, यह कभी सोचा भी न था। जिसमें उन्होंने एक बार कहा था कि लोगों ने उन्हें गजलों का शायर ही मान लिया है। उनका यह मलाल वाजिब भी था।

दरअसल शहरयार ने फिल्मों के लिए कुछ गजलें लिखी थीं, जिसके कारण उन्हें काफी मकबूलियत हासिल हुई। इसमें सबसे ज्यादा शोहरत उन्हें फिल्म उमराव जान के लिए लिखी गजलों के कारण मिली। नतीजतन वह आम आदमी की रूहों में बस गए। यही वजह है कि लोग अकसर उनके बारे में जब बातें करते हैं, तो उनकी गजलों का ही हवाला देते हैं। इस गलतफहमी की वजह यह भी रही कि वह जहां कहीं मुशायरों में जाते थे, तो अकसर गजलें ही सुनाते थे।

इसे विडंबना ही कहेंगे कि उर्दू के इतने बड़े शायर को अगर जाना और पहचाना जा रहा है, तो उन गजलों के लिए, जो उन्होंने फिल्मों के लिए लिखे।
मगर शहरयार ने गजलों से ज्यादा नज्में लिखी हैं। शहरयार केवल फिल्मी गजलों के शायर नहीं थे, बल्कि वह उर्दू साहित्य के ऐसे हस्ताक्षर थे, जिन्होंने आम आदमी के जीवन से जुड़ी तल्ख हकीकत को अपने लेखन में जगह दी।

इसके अलावा वह सांप्रदायिक ताकतों को भी ललकारते रहे और व्यवस्था पर भी कड़ा प्रहार करते रहे। अपनी नज्मों और गजलों के अर्थ वह बहुत बारीकी से समझाते थे। यह अध्यापक होने के कारण उनका सहजात गुण था। अगर उनकी रचनाओं में कल्पनाशीलता, प्रतीक चयन और शैलीगत वैविध्य को देखना है, तो ये सारी खूबियां गजलों से हटकर उनकी नज्मों में ही मिलेंगी। बॉलीवुड से खुद को अलग करने के बाद भी वह अदबी महफिलों की शान रहे और शायरी करते रहे। उनकी महत्वपूर्ण किताबें हैं-ख्वाब का दर बंद है, शाम होने वाली है, मिलता रहूंगा ख्वाब में और सैरे-जहां।

शहरयार के बारे में एक आम धारणा यह है कि वह निराशावादी शायर हैं। जबकि ऐसा है नहीं। उलटे खुद को निराशावादी समझे जाने का दुख भी उन्हें कम नहीं था। दरअसल ख्वाब का दर बंद है किताब का टाइटिल देखकर ही मजरूह सुलतानपुरी ने शहरयार को निराशावादी बताया। जबकि हकीकत यह है कि उस किताब में व्यवस्था पर तंज किया गया है। अब इस शेर को लीजिए, मुनहरिब ख्वाबों से हुए जब लोग/ सोयें या जागें सब बराबर है।

आखिर इसमें निराशावाद है या तंज है? वास्तव में वह व्यवस्था की साजिशों को बेनकाब करने वाले शायर थे। वह खामोशी, शाइस्तगी और संभ्रांतता के शायर थे, इसलिए उनकी शायरी में तोड़-फोड़ और उठापटक वाली शब्दावली आपको कहीं नहीं मिलेगी। उनका जैसा मिजाज था, वह उसी तरह के शब्दों का इस्तेमाल करते थे। उन्होंने मुश्किल से मुश्किल बातों को भी आसान भाषा में व्यक्त किया, ताकि आम आदमी उसे सहजता से समझ ले।

अनूठापन और संप्रेषणीयता उनकी शायरी की विशेषता है, जिसके चलते वह उर्दू शायरी को नया नक्श देने में कामयाब हुए। बीसवीं सदी के उर्दू साहित्य के विकास में उनका अहम योगदान रहा है। देश, समाज, सियासत, मोहब्बत और दर्शन को अपनी शायरी का विषय बनाने वाले शहरयार उर्दू के ऐसे चौथे शायर हैं, जिन्हें प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ सम्मान से नवाजा गया। ख्वाब का दर बंद है के लिए उन्हें साहित्य अकादेमी सम्मान मिला था।

शहरयार का मानना था कि जीवन मूल्यों को शायरी (पोयट्री) ही सबसे सशक्त ढंग से व्यक्त कर सकती है। निजी जीवन में वह मूल्यों और रिश्तों को काफी अहमियत देते थे। अच्छे शायर के साथ-साथ वह हॉकी के खिलाड़ी और अच्छे पाकशास्त्री भी थे। उन्हें अदबी दुनिया में लाने का श्रेय खलीलुर्रहमान आजमी को जाता है।

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