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Syed Asifimam KAKVI
22/02/2012
टीम इंडिया की एक और हार. इस बार श्रीलंका ने हराया. ऑस्ट्रेलिया में भारत की किस्मत बदल नहीं पा रही है. टेस्ट में बुरी तरह हारने के बाद लगा था कि शायद वनडे में भारत बदला लेगा.
दो मैच जीते, तो लगा कि वर्ल्ड चैंपियन की लाज बची रहेगी. पर ऐसा हो नहीं रहा है. छह मैच खेल चुके हैं और अगर कोई चमत्कार नहीं हुआ, तो इस टूर्नामेंट से बोरिया-बिस्तर समेट कर टीम इंडिया को लौटना पड़ेगा.
श्रीलंका से हारने के बाद भारत अंक तालिका में सबसे नीचे यानी तीसरे स्थान पर आ गया है. नेट रन रेट भी निगेटिव है. दो मैच और खेलना है. दोनों मैच भारत को जीतना होगा, तभी फ़ाइनल खेलने की संभावना बनेगी. टीम इंडिया जैसा खेल खेल रही है, नहीं लगता है कि सुधार होनेवाला.
सवाल एक ही है. क्या हो गया है टीम इंडिया को? टीम एकजुट होकर नहीं खेल रही है. ऐसे में जीत की कल्पना करना, सपना पालना बेईमानी है. बिना रन बनाये, बिना विकेट लिये कोई टीम जीत नहीं सकती.
जिन खिलाड़ियों को पूरा ध्यान खेल पर लगाना चाहिए, वह गुटबाजी में लगा रहे हैं. यह सही है कि हारने के बाद मूड बिगड़ता है और तब कमियां दिखने लगती हैं. जिस धौनी की अगुवाई में टीम इंडिया ने वल्र्ड कप जीता था, वही धौनी अब कह रहे हैं कि सचिन, गंभीर और सेहवाग धीमे फ़ील्डर हैं. ये तीनों शीर्ष खिलाड़ी रहे हैं. हो सकता है कि ये तीनों रैना, कोहली और रोहित शर्मा जैसे तेज फ़ील्डर नहीं हों, पर सार्वजनिक तौर पर अगर धौनी सीनियर खिलाड़ियों की आलोचना करने लगें, तो टीम कैसे एक रहेगी.
धौनी ने रोटेशन का फ़ार्मूला लागू किया है, आखिर इसकी जरूरत क्यों पड़ी? यह सब प्रयोग तब होता है, जब टीम जीत हासिल कर सुरक्षित स्थिति में पहुंच गयी हो. रोहित शर्मा और रैना को मौका देने के लिए अगर यह काम धौनी ने किया है, तो आलोचना होगी ही.
बार-बार मौका देने के बावजूद इस बार रोहित शर्मा और रैना नहीं चले. युवा खिलाड़ियों में सिर्फ़ कोहली ही खेल पा रहे हैं. जो खिलाड़ी बेहतर नहीं खेल पा रहे हैं, उन्हें टीम से बाहर होना चाहिए. लेकिन ऐसी स्थिति में टीम में 11 खिलाड़ी भी पूरे नहीं होंगे. सचिन, सेहवाग, रैना, रोहित शर्मा और जडेजा का यही हाल है. दो मैच में गंभीर चले, तीन में धौनी और कोहली.
टीम इसलिए हार रही है, क्योंकि बुनियाद बेहतर नहीं है. सिर्फ़ एक बार सेहवाग-गंभीर ने 52 रन की साङोदारी की है. बाकी मैचों में पहला विकेट 9, 14, 24, 8 और 0 पर गिरा है. अगर ओपनिंग ऐसी रहेगी, तो कैसे जीतेंगे? सिर्फ़ बल्लेबाजी ही क्यों, गेंदबाजी भी खत्म ही है.
श्रीलंका के खिलाफ़ अंतिम 10 ओवरों में जम कर रन लुटाया. इतना घटिया खेलने के बावजूद एक समय भारत का स्कोर चार विकेट पर 176 रन था (35.3 ओवर). यहां से भी जीत का रास्ता खुल सकता था, लेकिन कोहली के आउट होते ही सपना टूट गया. कुछ हाथ दिखाया इरफ़ान पठान ने. पर अकेले कुछ नहीं हो सकता. सच तो यह है कि टीम इंडिया में कुछ न कुछ तो गड़बड़ है.
बड़े खिलाड़ी होने के बावजूद सचिन को पता नहीं क्या हो गया है कि रन नहीं बन रहे. क्या सौवें शतक का दबाव है? सेहवाग के दिमाग में कप्तान बनने का ख्वाब है. लगातार सेहवाग भी फ़ेल हो रहे हैं. टीम एक होकर नहीं खेल रही है. वह जज्बा भी नहीं दिख रहा, जो जीतनेवाली टीम में होती है.
लगता है कि लंबे समय से देश से बाहर रहने के कारण परिवार की याद में ये खिलाड़ी डूब गये हैं. दो मैचों में कुछ कर पायें तो ठीक, वरना मुंह लटका कर टीम इंडिया को लौटना पड़ेगा.
हार हो या जीत, बात अलग है, पर देशवासियों को लगना चाहिए कि उसके खिलाड़ियों ने जी-जान से मैच जीतने का प्रयास तो किया. यह अभी नहीं लगता. बेहतर होग, सब प्रयोग बंद कर टीम इंडिया एकजुट होकर वापसी का प्रयास करे.
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