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दंगे ख़त्म सियासत जारी .

SYED ASIFIMAM KAKVI
SYED ASIFIMAM KAKVI
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Qalam se likh nahi sakte udaas dil ke afsane,
Hamare sath jo hota hai bas acha nahi hota,
मैं लिखता क्यों नहीं?
ये एक सवाल अक्सर किया जाता है और इल्ज़ामात के साथ कि मैं लिखता क्यों नहीं? क्या जवाब और सफ़ाई दूँ मैं इस इल्ज़ाम की, अगर मैं लिखना नहीं चाहता ट्विटर और फेसबुक पर क्यों लिख रहा हूँ? क्या मेरा अंदाज़ बदल गया है? क्या मेरी सोच बदल गई? क्या मैं उसी तेवर के साथ नहीं लिख रहा हूँ?
उत्तरप्रदेश में हो रहे सांप्रदायिक दंगों के कारण सपा को मुस्लिमों का समर्थन कम होता दिख रहा है। जमायत उलेमा ए हिंद (जेयूएच), ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी), ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिसे मुश्वरात (एआईएमएमएम), जमात ए इस्लामी हिंद और जमियत अहले हदीथ हिंद जैसे विभिन्न मुस्लिम संगठनों के नेताओं ने उत्तरप्रदेश की सपा सरकार को बर्खास्त करने की मांग की। इन नेताओं ने सपा सरकार पर दंगे रोकने में नाकामयाब बताया।
सपा सरकार दंगाइयों से मिली हुई है। सपा सरकार 2014 के चुनाव में फायदे के लिए भाजपा के साथ मिलकर माहौल को सांप्रदायिक रंग दे रही है। इन नेताओं ने दावा किया कि मुसलमानों ने सत्तारूढ़ दल में विश्वास खो दिया है ,
आलराबता एजुकेशन वेलफेर ट्रस्ट के जेनेरल सेक्रेटरी एस आसिफ़ इमाम कक़वि ने कहा कि 2014 के आम चुनावों के लिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिशें हो रही हैं और इसमें दंगों का इस्तेमाल किया जा रहा है? भाजपा द्वारा नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जाना तय है। नरेंद्र मोदी के कारनामों से सभी वाकिफ हैं। न तो मुस्लिम क़ौम मुर्दा है न सोई हुई और न ही ऐसा है कि उस क़ौम के अंदर सोचने समझने की सलाहियत ख़त्म हो गई है। मुसलमान भी अगर हिंदुस्तान की दीगर क़ौमों की तरह एक सियासी ताक़त हों तो इसमें बुराई क्या है। उनका आरोप है कि मुसलमानों ने बड़ी उम्मीदों के साथ समाजवादी पार्टी का समर्थन किया था, लेकिन अखिलेश सरकार ने उनके भरोसे को तोड़ दिया।
मुजफ्फरनगर की सड़कों पर पसरे कर्फ्यू के सन्नाटे में अखिलेश सरकार की साख के राख होने का शोर भी शामिल है। यही वजह है कि गुजरात दंगों के बाद पहली बार तमाम मुस्लिम संगठन एक सुर में मुसलमानों की जान-माल की सुरक्षा का सवाल उठा रहे हैं। उनकी नाउम्मीद की वजह हैं समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव, जो यूं मुसलमानों के सबसे बड़ा खैरख्वाह होने का दम भरते हैं, पर मुजफ्फरनगर दंगे ने बता दिया कि दावे और हकीकत में काफी फर्क होता है। मुस्लिम नेताओं का आरोप है कि बढ़ते तनाव की खबरों पर यूपी सरकार ने जानबूझकर कर कान नहीं दिए। उसका इरादा, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के जरिए, राजनीतिक फायदा उठाने का था। नतीजे में तमाम लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा। उनकी मांग है कि अखिलेश यादव इस्तीफा दें, वरना केंद्र उनकी सरकार को बर्खास्त करे।मुस्लिम संगठनों का गुस्सा स्वाभाविक भी है। उनका दावा है कि वे हमेशा मुस्लिम समुदाय में शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी चीजों पर गौर करना चाहते हैं, लेकिन उनके सामने सुरक्षा का सवाल लाकर खड़ा कर दिया जाता है। एक तरफ कुछ राजनीतिक दल मुसलमानों की सुरक्षा को लेकर चुनौती खड़ी कर देते हैं, तो दूसरे राजनीतिक दल उनका मसीहा बनकर खड़े हो जाते हैं। दोनों ही तरफ मकसद वोट बटोरना होता है। चुनाव दर चुनाव, मुसलमान जहां का तहां नजर आता है।दंगो से हुए दर्द को ख़त्म करने की सियासत का अपना ही अंदाज़ हैं मगर अफ़सोस ये तरीका सिर्फ मीडिया वालो पर ही काम करता हैं जख्मी अवाम पर नहीं वो तो दर्द से बिलबिलाती रह जाती हैं और मीडिया चंद नेताओ की नाराजगी और रूठने मनाने के खेल को हवा देने लगती हैं, सुना हैं आज़म खान नाराज़ हैं बहुत नाराज़ हैं अपनी ही समाजवादी ? सरकार से ……. उस आज़म खान से जिसने समाजवादी पार्टी की गारंटी ली मुसलमानों से वोट के बदले …
खान साहब जिन मुसलमानों के दम पर आप सियासत में टिके हो वहां औरतो की तरह इस रूठने मनाने के खेल से बाहर आकर मुसलमानों के साथ साथ जो दंगा पीड़ित हैं चाहे वो किसी भी मजहब से हो उनको इन्साफ भी दिलाने की लड़ाई लड़ो
Alfaaz To Buhut Hai Meri Mohabbat Bayan Karne K Liye
Woh Meri Khamoshi Nahi Samjhta ..Mere Alfaaz Kahan Samjhe Gaa !…

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