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हर साल महापर्व छठ के दौरान बिहार आने वाली कमोबेश सभी ट्रेनों के अंदर का हाल। अफसोस की बात तो ये है के ये मुसाफिर रेलवे को पूरे पैसे चुकाने के बावजूद जानवरों की तरह सफर करने को मजबूर हैं। सरकार को चाहिए था कि वो पहले बेसिक ज़रूरतों को पूरा करे फिर बुलेट ट्रेन चलाने की सोचे। 1 बुलेट ट्रेन चलाने में जितना खर्च आएगा, उसमें 1200 राजधानी एक्सप्रेस और करीब 2670 आम ट्रेनें चल सकती हैं। लेकिन सरकार आम आदमी के लिए सोचती ही कब है? आम आदमी तो बस चुनाव के वक़्त याद आता है।
छठ पर्व के कारण ट्रेन के सफर के दौरान जलालत झेलकर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश स्थित अपने गांव-शहर पहुंचने वाले लोगों से पूछिये अच्छे दिन आ गए क्या। ट्रेनों में सफर के दौरान उनकी मनोदशा के बारे में पूछिये। कैसे वे सफर कर अपने गंतव्य तक पहुंचे हैं या पहुंचने की जद्दोजहद कर रहे हैं। जवा ब में अच्छे दिन फुस्स साबित होगा।
ऐसी स्थिति पिछले कई सालों से है। खाकर दिल्ली से बिहार, झारखंड व उत्तर प्रदेश जाने वाली लंबी दूरी की ट्रेनों में सामान्य दिनों में भी आपको कन्फर्म टिकट के लिए सोचना पड़ेगा। आपके माथे पर बल पड़ जाएंगे। ऐसे में जब पर्व-त्योहार का मौसम आ जाए और जाने वाले लोगों की भीड़ बढ़ जाए, तो ट्रेनों में भेड़ बकरियों की तरह लदकर सफर करना मजबूरी बन रही है।
इन दिनों ट्रेनों में हालात ऐसे हैं कि लोगों को दिवाली, छठ पूजा के लिए खरीदी गई पूजन सामग्रियों के साथ ट्रेनों के टायलेट में ठूंसकर सफर करना पड़ रहा है। आपको किसी भी ट्रेन में एक इंच जगह खाली नहीं मिलेगी। ट्रेन में आप महिलाओं व बच्चों के साथ अगर अंदर प्रवेश कर गए, तो यह पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक सरीखा अनुभव देगा।
सरकार तनिक अपने देश के उन निरीह, निहत्थे लोगों के बारे में भी सोचिए, जो इन दिनों अपनी मातृभूमि की मिट्टी की महक को महसूस करने के लिए ट्रेनों में भारी फजीहत झेलते हुए सफर कर रहे हैं। ऐसे लोग सकुशल अगर अपने घर पहुंच जाते हैं, तो यह उनके लिए जंग जीतने के सुखद अनुभव जैसा है।
जो लोग बिहार, झारखंड आदि जा रहे हैं, वे भी हिन्दू ही हैं और हिन्दू त्योहारों को ही सेलिब्रेट करने जा रहे हैं। मगर उनकी दुर्गति पर गो रक्षा के कथित अलंबरदार न तो कोई हिन्दूवादी संगठन कुछ बोल रहा है और न ही सत्ता सुख भोग रहे संत महात्मा (सांसद, मंत्री) ही अपना मुंह खोल रहे हैं। हमारे मंत्री बुलेट ट्रेन का सपना दिखा रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेशों में जाकर गीता बांट रहे हैं। हिन्दू मंदिर बनवा रहे हैं, लेकिन अपने देश में ट्रेनों के टाॅयलेट में सफर कर रहे हिन्दूओं की धार्मिक आस्था को पल-पल ठेस पहुंच रही है। यह सही है कि यह हालात एक दिन में नहीं बदले जा सकते हैं। लेकिन इस बारे में क्या कहेंगे कि सुविधा व स्पेशल ट्रेनों के नाम पर मौजूदा किराये की दर से दो से तीन गुना किराये वसूलकर रेलवे सही दिवाली मना रहा है। यह ठीक है कि एक दिन, कुछ महीने, कुछ सालों में हालात नहीं बदले जा सकते हैं, लेकिन हालात बदलकर अच्छे दिन लाने की शुरुआत तो की ही जा सकती है।
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