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मुसलमानों का विश्वास नहीं जीत पायी कांग्रेस

SYED ASIFIMAM KAKVI
SYED ASIFIMAM KAKVI
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कांग्रेस का 4.5 प्रतिशत अल्पसंख्यक आरक्षण के वादा मुसलमानों को नहीं रिझा सका क्योंकि मुसलमानों को सच्चर कमेटी की तरह कांग्रेस के इस घोषणा पर भी विश्वास नहीं था। वहीं दूसरी ओर सपा की 18 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा मुस्लिमों को उसकी ओर खींच लाई।
दरअसल कांग्रेस ने सच्चर कमेटी की रिपोर्ट भी उन्हीं जिलों र्म लागू की जहां मुसलमानों की आबादी 22 प्रतिशत है। इससे मुसलमानों को लगा कि कांग्रेस धोखा देने के अलावा कुछ नहीं कर रही है और उन्होंने समझा कि सच्चर कमेटी की तरह 4.5 प्रतिशत आरक्षण का हश्र भी न हो, इसीलिये मुसलमानों ने सपा पर भरोसा किया। हालांकि चुनाव की घोषणा होने के बाद से ही मुस्लिम मतदाता इस उधेड़बुन में था कि आखिर क्या किया जाए लेकिन जैसे जैसे मतदान करीब आया, सपा मुखिया की घोषणाएं मुस्लिमों को अपनी ओर खींच ले गयीं।
आज़ादी के बाद से हिंदुस्तान के सफ़र को देखता हूँ तो पाता हूँ कि जहाँ अल्पसंख्यक आज से 63 बरस पहले खड़े थे, आज भी कमोवेश वहीं पर हैं. उसी ग़ैर-बराबरी और ग़ैर-अमनी के माहौल में आज के हिंदुस्तान का अल्पसंख्यक युवा भी साँस ले रहा है. विभाजन के समय से ही हिन्दुस्तानी मुसलमान तरह तरह की परिशानियों में फंसा हुआ है. कुछ लोग यह समझते रहे हैं कि मुल्क को बाँटने में मुसलमानों का बड़ा हाथ रहा है. हमेशा मुसलमानों को शक की निगाह से देखा जाता रहा है.हुक़ूमतों की ओर से भी मुसलमानों की उपेक्षा ही होती रही है. ज़बानी बयानों और कोरे सब्ज़-बागों के सहारे अल्पसंख्यकों को वोटों की राजनीति के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा.
आज भी तक़रीबन वही हाल है. हालांकि हर तबके का आम आदमी भी अब इस बात को समझ रहा है कि अल्पसंख्यकों की उपेक्षा हुई है लेकिन किसी न किसी वजह से लोग खुल कर बोलने को तैयार नहीं है. मुसलमानों को जो राहतें भी थोड़ी बहुत मिली वो भी क़ानूनी पचड़ों में पड़कर कागज़ी ही होकर रह गई हैं. दरअसल, मुल्क में मुसलमानों की इतनी ख़राब स्थिति पैदा ही न होती अगर इन्हें मुसलमान की हैसियत से देखने के बजाय एक हिंदुस्तानी की हैसियत से देखा गया होता.अब मुसलमानों ने भी सोच लिया है कि जो क्षेत्र का विकास करेगा, उनके आर्थिक और शैक्षिक विकास पर ध्यान देगा, उसे ही कुर्सी पर बिठाया जायेगा। यही वजह है कि इस बार भाजपा हराओ का नारा नहीं चला।
यूपी की बसपा सरकार से मुसलमान इसलिए नाराज था क्योंकि केंद्र की अल्पसंख्यक योजनाओं का बजट बसपा ने अपने पास दबाकर रख लिया। अब मुसलमानों के पास कोई विकल्प नहीं बचा और सपा की ओर झुकाव हो गया।आरक्षण नहीं, भागीदारी चाहिये राजनीतिक पार्टियां जान गयी हैं कि मुसलमानों के बिना काम चलने वाला नहीं है। अब मुसलमानों को आरक्षण की भीख नहीं सत्ता में भागीदारी चाहिये। मुस्लिमों के आर्थिक, शैक्षिक उत्थान के बारे मे सोचने वाली पार्टियां ही राज करेंगी।
मुसलमानों को अब समझ में आ गया है कि सभी राजनीतिक पार्टियां एक जैसी है। मुस्लिम क्षेत्रों की जो दुर्दशा 20 साल पहले थी, वही अब भी है। ऐसे में अब मुसलमान उसी को समर्थन देगा जो विकास करेगा। अमर सिंह के प्रभाव की वजह से सपा से बाहर हुए आजम खान पार्टी में वापस आ गए हैं। सपा ने कल्याण से हाथ मिलाकर अपनी उंगलियां जलाई थीं, मुस्लिम समुदाय कांग्रेस नीत सरकार के कोटा में कोटा के तहत इस खास वर्ग के पिछड़ों के लिए साढ़े चार फीसदी आरक्षण के टोटके से बहुत प्रभावित नहीं नजर आ रहा है। यह कई चुनावी मुद्दों में से एक माना जा रहा है, बटला हाउस मुठभेड़ का मुद्दा खास तौर पर पूर्वी उत्तरप्रदेश में भावनात्मक मुद्दा बन गया है। ‘कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह का इस मसले पर शोर मचाना और तुरंत ही गृह मंत्री पी चिदंबरम की ओर से इसकी काट किए जाने के बाद कांग्रेस की इस मसले पर विश्वसनीयता कठघरे में खड़ी हुई है।’‘बटला हाउस के मुद्दे पर हमारे साथ धोखा हुआ है। आखिर एक जांच क्यों नहीं हो सकती है। जो भी दोषी हो सजा पाए। फिर हम उनकी बात क्यों मानें।

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