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RBI वाला 1.76 हजार करोड़ कहांं से आया? मुग़लों ने देश में कोई सम्पति नही छोड़ी, अंग्रेज तो कुछ छोड़कर गए नही थे? नेहरू ने देश बर्बाद किया, कांग्रेस ने सत्तर साल तो सिर्फ लूटा था, आखिर ये पैसा कहांं से आया ? जवाब आप सब जानते हैं, बाकी बोलने वाले बोलते रहते हैं।
पिछले साल आरबीआई के तत्कालीन गवर्नर उर्जित पटेल और मोदी सरकार में नीतिगत स्तर पर असहमतियां सामने आई थीं और पटेल ने अपना कार्यकाल ख़त्म होने से पहले ही इस्तीफ़ा दे दिया था। पिछले साल अक्तूबर में आरबीआई के तत्कालीन उप गवर्नर विरल आचार्य ने सरकार को चेताया था कि सरकार ने आरबीआई में नीतिगत स्तर पर हस्तक्षेप बढ़ाया तो इसके बहुत बुरे नतीजे होंगे। विरल आचार्य ने कहा था कि सरकार आरबीआई के पास सुरक्षित पैसे को हासिल करना चाहती है। इसके दो महीने बाद ही उर्जित पटेल ने आरबीआई से इस्तीफ़ा दे दिया था।
इसके बाद मोदी सरकार ने शक्तिकांत दास को गवर्नर बनाया। जिस दिन शक्तिकांत दास आरबीआई के गवर्नर बने उसी दिन साफ़ हो गया था कि सरकार जो चाहेगी उसे आरबीआई को करना होगा। शक्तिकांत दास आईएएस अधिकारी रहे हैं और वो वित्त मंत्रलाय में प्रवक्ता के तौर पर काम करते थे। जब नोटबंदी हुई तो दास ने समर्थन किया था। शक्तिकांत दास दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज में इतिहास student थे। दास ने सरकारी अधिकारी के तौर पर काम किया है।
रिज़र्व बैंक के पास पैसे का होना बहुत ज़रूरी है क्योंकि विदेशी मार्केट में कुछ होगा तो रुपया और कमज़ोर होगा। सरकार के आंकड़े पहले से ही संदिग्ध हैं। इस बात को मोदी सरकार के पूर्व आर्थिक सलाहकार भी उठा चुके हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में आई कमज़ोरी से सरकार दबाव में है। भारतीय मुद्रा रुपया अमरीकी डॉलर की तुलना में 72 के पार चला गया है। लगातार चौथे तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर में गति नहीं आ पाई है। लेकिन सवाल अब भी क़ायम है कि क्या मोदी आरबीआई से पैसे लेकर अर्थव्यवस्था में मज़बूती ला पाएंगे।
सरकार ने टैक्स कलेक्शन का जो लक्ष्य रखा था उसे पाने में नाकाम रही है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले हफ़्ते ही कहा था कि सरकार जल्द ही 700 अरब रुपए सरकारी बैंकों में डालेगी। एशिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था भारत का बैंकिंग सेक्टर संकट के दौर के गुज़र रहा है। केन्द्र सरकार ने पहले पूंंजीपतियों को लाखों करोड़ का क़र्ज़ देकर बैंकों को कंगाल बनाया अब उसकी भरपाई के लिये RBI को कंगाल बनाने पर भारत सरकार जुटी है।
RBI का 1.76 लाख करोड़ निकलना देश में गम्भीर आर्थिक संकट की ओर इशारा कर रहा है। ये आपतकालीन समय के लिए था। जब देश पर कोई आर्थिक संकट आता है उस स्थिति के लिए था। इससे भारत की अर्थव्यवस्था पर गहरे संकट का पुष्टीकरण होता है। जो ये पैसा सरकार को दिया जा रहा है ये आपातकालीन स्थिति के लिए था, लेकिन इसके साथ ही रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया की स्वायत्तता को लेकर भी चिंता जताई जा रही है। वैसे मांगे तो साढ़े तीन लाख करोड़ थे बैंकों को पैसे दिये जा रहे इससे योजनाओं में खर्च होंगे। वैसे पढ़ा था मैंने अर्जेन्टीना ने भी ऐसा ही किया था और तबाही आ गई थी।
इससे रिज़र्व बैंक की विश्वसनीयता कमज़ोर होगी। जो निवेशक भारत की तरफ़ देख रहे हैं वो कहेंगे कि आरबीआई पूरी तरह से सरकार के नियंत्रण में है। मुझे नहीं लगता कि यह अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा है। उसकी अर्थ व्यवस्था में Allah करे हमारे देश में सब अच्छा हो अच्छी तनख्वाह भले न मिले नौकरी सलामत रहे बस दो जून की रोटी और छत-बच्चों की फीस मिलती रहे दो करोड़ नौकरियांं तो मिली नहीं जो थी वही बचानी मुश्किल हो गई है।
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