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बिहारी छात्रों की मेधा का लोहा आज पूरी दुनिया मानती है

SYED ASIFIMAM KAKVI
SYED ASIFIMAM KAKVI
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दिल से निकलेगी न मरकर भी वतन की उल्फत,
मेरी मिट्टी से भी खुशबू -ए-वतन आएगी

हम 107 साल के हो गये । इन वर्षों में हमने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं, लेकिन हमारी विरासत हमें संघर्ष, साझी संस्कृति एवं सादगी सिखाती है । माना लाख बाधायें हैं पथ में लेकिन हमारा इतिहास रहा है कि हमने बाधाओं के बीच से रास्ता निकाला है। कहने को बिहार पिछड़े राज्यों में आता है लेकिन इसकी मेधा का लोहा पूरी दुनिया ने माना है। शून्य का अाविष्कार करने वाले आर्यभट्ट हों या अर्थशास्त्र के प्रणेता चाणक्य, दुनिया को शांति का पाठ पढ़ाने वाले महात्मा बुद्ध हों या शिक्षा का संदेश देने वाला नालंदा विश्वविद्यालय, इनसब पर बिहारियों को नाज है।आज भी जिस राज्य में शिक्षा का प्रतिशत मात्र 52.47% हो, जहां मूलभूत सुविधाओं का अभाव हो, जहां 23.97 लाख युवा बेरोजगार हों, फिर भी आज बिहारियों ने एक बार फिर दिखा दिया है कि हम किसी से कम नहीं। देश-विदेश में बिहारी अपना परचम लहराते रहे हैं, देश के अधिकतम बड़े पदों की शोभा आज भी बिहारी बढ़ा रहे हैं, आइबी प्रमुख हों या सीबीआइ प्रमुख, बिहारी राज कायम है।बिहार के राजनीतिक परिदृश्य की बात करें तो यहां से काफी संख्या में राजनीति के चमकते चेहरे केंद्र और राज्य सरकार का हिस्सा हैं और बिहार ही राजनीति और देश का मिजाज तय करता रहा है। तो वहीं बिहारी भारतीय प्रशासिक सेवा की रीढ़ की हड्डी कहे जाते हैं, दूसरे शब्दों में बिहार पिछड़ेपन और अभावग्रस्त राज्य होने के साथ आइएएस की फैक्ट्री कहा जाता है, जो इस बार भी यूपीएससी के रिजल्ट से साबित हो गया है।देश में कुल 5,500 आइएएस में से 450 बिहारी हैं, साथ ही दस ब्यूरोक्रेट्स एेसे हैं जो पूर्व और पश्चिमी क्षेत्र को संभाले हुए हैं। आइएएस ही नहीं, आइपीएस, आइएफएस भी ज्यादातर बिहार से ही आते हैं। पिछले दस साल की बात करें तो सात सौ में से पच्चीस प्रतिशत बिहार के अभ्यर्थियों ने आइएएस और आइपीएस की परीक्षा में सफलता पाई है। पिछड़ा राज्य, बीमारू राज्य, बिहारी का टैग…ये सब बातें ठीक है, लेकिन आखिर क्या बात है कि बिहार आज भी आइआइटी की परीक्षा हो, यूपीएससी की परीक्षा हो या कोई भी प्रतियोगी परीक्षा अपना बेहतर प्रदर्शन करता रहा है? यह प्रश्न उठना लाजिमी है कि क्या बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी ? बिहारी छात्रों की मेधा का लोहा आज पूरी दुनिया मानती है। आज बिहार की राजधानी पटना शिक्षा का हब बन चुका है। लेकिन राजनीति, जातिप्रथा, सरकारी उपेक्षा की वजह से यहां से छात्र बेहतर शिक्षा के लिए अन्य राज्य के बड़े शहरों में पलायन कर जाते हैं।छात्र और अभिभावक बेहतर भविष्य की तलाश में अन्य राज्यों में भटकते हैं, जिससे हर साल राज्य को घाटा उठाना पड़ता है। इसकी वजह है कि बिहार में छात्र केवल नौकरी को ही तरजीह देते हैं और उसके लिए ही मेहनत करते हैं, यही वजह है कि इंजीनियर बनने आइएएस बनने या अन्य बेहतर नौकरी की ही इच्छा सबको होती है। बिहार में उद्योग की कमी है जिसकी वजह से बेरोजगारी की स्थिति है। बिहार का युवा सरकारी नौकरी ही चाहता है और इसी वजह से हर साल करीब 40,000 छात्र विभिन्न संस्थाओं में पढ़ने के लिए राज्य से बाहर चले जाते हैं और राज्य को राजस्व का नुकसान उठाना पड़ता है।अगर हम अन्य राज्यों की तुलना करें तो बिहार में एक अभिभावक अपने पैसे इधर-उधर खर्च करने में कतराता है, एक किसान भी चाहता है कि उसका बेटा या बेटी पढ़ लिखकर आइएएस, आइपीएस या आइआइटियन बने।

मां-बाप अपना पेट काटकर भी बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं।ये एक सबसे बड़ी वजह है कि बिहारी अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने को तैयार रहते हैं और बच्चे भी जी-जान लगाकर उनकी हसरत को पूरा करते हैं। इसीलिए एक पान वाले का बेटा-बेटी, किसान और रिक्शाचालक का बच्चा, मध्यवर्ग से आने वाला छात्र भी आज आइआइटी, आइएएस की परीक्षा में सफल हो रहा है।एक आंकड़े के अनुसार देश भर के कुल 4925 आईएएस अधिकारियों में 462 अकेले बिहार से हैं। यानी, 9.38 प्रतिशत टॉप ब्यूरोक्रेट्स बिहारी हैं। 2007 से 2016 के बीच देश भर से चुने गए कुल 1664 आईएएस अधिकारियों में से बिहार से 125 (7.51 प्रतिशत) शामिल हुए। बिहार से सबसे ज्यादा आईएएस अधिकारी 1987 से 1996 के बीच चुने गए। इस दौरान यूपीएससी के जरिए कुल 982 आईएएस अधिकारियों का चयन हुआ, जिसमें अकेले बिहार से 159 अधिकारी शामिल थे। उस समय बिहार से आईएएस बनने की दर 16.19 फीसदी रही।हाल ही में देश के गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार के साकेत कुमार को अपना निजी सचिव चुना था|

देश के गृह मंत्री के बाद वर्तमान सरकार में देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी एक बिहारी को ही अपना निजी सचिव चुना है|यही नहीं, बिहार कैडर के 2009 बैच के आईएएस अधिकारी मनोज कुमार सिंह को भी ऊर्जा, नयी एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री राज कुमार सिंह का निजी सचिव बनाया गया है| ज्ञात हो कि प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी से पूर्व में सम्मानित भी हो चुके हैं| यह सम्मान उन्हें बिहार के समस्तीपुर के डीएम के रुप में किये गये कार्यो के प्रतिफल में मिला था| कुंदन ने तब राष्ट्रीय स्वास्थय बीमा योजना के तहत प्राइवेट अस्पतालों की गड़बड़ी पकड़ी थी| वे इस से पहले भी भारत सरकार में स्किल डेवलपमेंट के राज्य मंत्री रहे राजीव प्रताप रुडी के प्राइवेट सेक्रेटरी थे| राजनाथ सिंह के साथ पहले भी प्राइवेट सेक्रेटरी के रुप में बिहार के सहरसा के रहने वाले आईएएस नीतेश कुमार झा थे| बिहार में अगर उच्च शिक्षा का बेहतर माहौल मिले तो वही छात्र अपने ही राज्य में रहकर और बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। हर साल बिहार से लगभग एक लाख छात्र-छात्राए अपने कैरियर की तलाश करने बिहार से बाहर,बैंगलोर,चेन्नई,महाराष्ट्र,या अन्य राज्यों में जाते है ।वहा वहा पढाई करके उधर ही नौकरी कर लेते है और इस तरह बिहार से हर साल करीबन एक लाख बिहारी बुद्धिजीवी पलायन कर जाते है जो या तो सिर्फ सोशल मीडिया पे बिहारी होते है या फिर NRI बिहारी । इसमें कुछ असफल लोग बिहार आकर घर जरूर बैठ जाते है कुछ 2-3% लोग जॉब के लिए बिहार भी वापस आते है ,लेकिन 50% तक तो अपने फॅमिली को भी उधर ही बुला लेते है । अपना घर, अपनी जमीन छोड़कर कहीं दूर जाना और रहना शायद ही किसी को पसंद हो। कोई भी व्यक्ति अपनी जड़ों से अलग होने की योजना यूं ही नहीं बनाता। हम बिहारी हैं और इसका हमें गर्व है । समाज के हर तबके को साथ लेकर हमें चलना है ।

 

रास्ता कठिन है लेकिन नामुमकिन नहीं।सफर लंबा है लेकिन अंतहीन नहीं। लड़ाई मुश्किल है, हमेशा से रही है लेकिन दरअसल मेरे लिये बिहारी होना एक अनुभूति है। बिहारी होने के नाते मैं खुद को बिहार के बाकी लोगों से काफ़ी जुड़ा हुआ महसूस करता हूँ। मैं ये बात पूरे दिल से बोल रहा हूँ कि जब भी मैं बिहार से किसी को कुछ अच्छा करता देखता हूँ, किसी को सफल होता देखता हूँ तो मुझे व्यक्तिगत तौर पे भी काफी गर्व होता है । रही बिहार के बारे में एक खास बात बताने की तो वो है इसके हार न मानने की ज़िद। हमारे यहाँ इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है, बिहार के बाहर के लोग हमारे बारे में गलत स्टीरियोटाइप पाले हुए हैं, हमारी भाषा को, बोलने के तरीके को गलत तरीके से देखते हैं। फिर भी बिहार के लोग इन तमाम विषम परिस्थितियों से लड़ते हुए हर क्षेत्र में सफल होते आ रहे हैं। ये जुझारूपन एक तरह से हम बिहारियों के DNA में आ गया है। आज बिहार के बाहर हमारे बिहार के वासी जीवन के हर क्षेत्र में सफलता के झंडे गाड़ रहे हैं आपने अपनी मेहनत का लोहा देश के बड़े महानगरों की बड़ी -बड़ी कंपनियों में अलग-अलग प्रांतों, खाड़ी देशों में मनवाया, अमेरिका, यूरोप और वेस्ट इंडीज में मनवाया है।

-सैय्यद आसिफ इमाम काकवी

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