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बिहार में विनाश के दिन

SYED ASIFIMAM KAKVI
SYED ASIFIMAM KAKVI
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बिहार भयावह बाढ़ के चपेट में है। 12 जिलों के सैकड़ों प्रखंड में लगभग 80 लाख से अधिक लोग प्रभावित हैं। लाखों लोग विस्थापित हो चुके हैं, उनका घर दह गया है, जान-माल की अथाह क्षति हुई है। विस्थापितों को भोजन-पानी-मेडिकल रिलीफ़ में दिक्कत हो रही है। सरकार चाहकर भी सबतक नहीं पहुंच पा रही है। ऐसे वक्त में अनेकों नागरिक समूह उनके राहत-बचाव के लिए
प्रयास कर रही है। मेरा यह पोस्ट एक दुखी बिहारी के नाते है। माननीय मुख्यमंत्री साहब यह पोस्ट आपके लिए है। हर साल उत्तर बिहार बाढ़ में ढूब जाता है, लोग बेघर हो जाते हैं और सैकड़ों लोगों की जान चली जाती है।जैसे हर साल बाढ़ आता है, उसी तरह बाढ़ से लोगों के जिंदगी तबाह होने के
बाद मुख्यमंत्री साहब हर साल आप भी आते हैं। मुझे याद है पिछले साल भी कुछ इसी तरह का फोटो खिंचवाये थे आप। कुछ नहीं बदला, पोज भी वही है, आपका स्टाईल भी वही है, लोगों की दशा भी वही है। ऐसा नहीं है कि यह बाढ़ अचानक आती है। सबको पता है कि किस महीने में हर साल उत्तर बिहार में बाढ़ आती है। यहाँ तक कि नेपाल से आने वाले पानी का बांध भी तो आप ही खोलते हैं।यानी आपको सब पता होता है, मगर आप तबाही होने देते हैं। यह प्रकृतिक आपदा नहीं है, यह आप लोगों की साजिस लगती है। काश बाढ़ आने से पहले आपकी ऐसी तस्वीर आती। अतंरआत्मा की आवाज सुनने वाले मुख्यमंत्री जी, आपकी अंतरआत्मा कब बोलेगी? बिहार में पारिस्थितिक विषमता बहुत अधिक देखने को मिल रही है। बिहार के लगभग 12 जिले बाढ़ से प्रभावित है तो 12 जिले सूखे की समस्या से ग्रसित है। आपको बता दें कि बाढ़ प्रभावित जिलों में सीतामढ़ी, दरभंगा, पूर्वी चंपारण, अररिया, सुपौल, मधुबनी, शिवहर,किशनगंज, मुजफ्फरपुर, सहरसा, कटिहार, मोतिहारी, पूर्णिया शामिल है। वहीं सूखे के चपेट में रोहतास, अरवल, गया, जहानाबाद जैसे जिले हैं। अभी बिहार के सभी 38 जिलों में से 12 जिलों में औसत से 43% बारिश कम हुई है। पटना
में मानसून सीजन के चार महीने (जून- सितंबर) के पहले महीने में 68 % कम बारिश हुई है।देखा जाए तो 13 जिलों में काफी काम बारिश हुई है (20-59%) और 12 ज़िलों में बारिश न होने से सुखाड़ की स्थिति उत्पन्न हो गयी है,जहां की बारिश 60 % से भी कम हुई है। 1 जून से 26 जून तक बेगूसराय और शेखपुरा में सामान्य बारिश की तुलना में 91% कम बारिश हुई है। बिहार एक
ऐसा राज्य है जो भौगोलिक रूप से भारत के बाकि राज्यों से थोड़ा अलग है.बिहार में मौसम कोई भी हो, लोगों को हर मौसम में परेशानी उठानी पड़ती है.बारिश से पहले अगर बेतहाशा गर्मी पड़ती है तो बिहार के लोग लू की चपेट में आ जाते हैं. लू के कारण बिहार में गर्मी के मौसम में कई मौतें भी हो
जाती है. लू से बचने के लिए लोग बारिश की उम्मीद करते हैं. और जब बिहार में बारिश आती है तो भी लोगों के लिए परेशानी लेकर आती है क्योंकि बिहार में बारिश के कारण बाढ़ जैसे हालात बन जाते हैं. बिहार में बाढ़ के कारण तो कई इलाके भी डूब जाते हैं. बिहार में हर साल बाढ़ के कारण हाहाकार मच जाता है. लोग अपने घरों को छोड़ने तक मजबूर हो जाते हैं. सड़कों से लेकर घरों तक में बाढ़ के कारण पानी घूस जाता है और लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. बिहार में बाढ़ कारण तो कई लोगों की जान तक चली जाती है. लेकिन ऐसा क्या कारण है कि बिहार में हर साल बाढ़ का कहर देखने को मिलता है? आखिर क्या वजह है कि बिहार में बाढ़ के कारण इतनी तबाही मचती है? और हर साल हजारों करोड़ रुपये की संपत्ति पानी में बह जाती है.लेकिन ये बाढ़ क्यों आती है और कौन इसके लिए जिम्मेदार है, आइए इसे समझने की कोशिश करते हैं. लेकिन दोस्तों आगे बढ़ने से पहले अगर आपने अभी तक हमारे चैनल को सब्सक्राइब नहीं किया है तो नए अपडेट के लिए जल्द सब्सक्राइब कर लें. तो आइए शुरू करते हैं.दोस्तों, भारत के आजाद होने के
बाद पहली बार 1953-54 में बाढ़ को रोकने के लिए एक परियोजना शुरू की गई.नाम दिया गया था ‘कोसी परियोजना.’ साल 1953 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इस परियोजना के शिलान्यास के समय यह कहा गया था कि अगले 15 सालों में बिहार की बाढ़ की समस्या पर काबू पा लिया जाएगा. लेकिन आज इतने सालों बाद भी बिहार में बाढ़ से बद्दतर हालात बन जाते हैं. वहीं
साल 1979 से अब तक बिहार लगातार हर साल बाढ़ से जूझ रहा है. बिहार सरकार के जल संसाधन विभाग के मुताबिक राज्य का 68,800 वर्ग किमी हिस्सा हर साल बाढ़ में डूब जाता है. बिहार में बाढ़ आने का सबसे बड़ा कारण नेपाल है. जी हां दोस्तों, बिहार में जो हर साल बाढ़ आती है, उसमें नेपाल से आयी पानी का सबसे बड़ा हिस्सा होता है. दोस्तों, नेपाल और बिहार एक दूसरे से काफी सटे हुए हैं. इसका नुकसान बारिश के दौरान बिहार को होता है. नेपाल और बिहार की भौगोलिक परिस्थिति के कारण बिहार को हर साल बाढ़ के कारण खामियाजा उठाना पड़ता है. बिहार में सात जिले ऐसे हैं जो नेपाल से सटे हैं. इनमें पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल,
अररिया और किशनगंज शामिल है. वहीं नेपाल पहाड़ी इलाका है. जब पहाड़ों पर बारिश होती है, तो उसका पानी नदियों के जरिये नीचे आता है और नेपाल के मैदानी इलाकों में भर जाता है. नेपाल में कई ऐसी नदियां हैं जो नेपाल के पहाड़ी इलाकों से निकलकर मैदानी इलाकों में आती हैं. फिर वहां से और नीचे बिहार में दाखिल हो जाती हैं. बिहार में ये पानी बाढ़ की शक्ल ले लेता है. नेपाल से आने वाला पानी बिहार में मौजूद नदियों में मिलता है तो नदियों का जलस्तर बढ़ जाता है, जिसके कारण चारों और बाढ़ का पानी फैल जाता है. दोस्तों, बिहार में बाढ़ का सबसे ज्यादा पानी नेपाल से आता है. नेपाल में पानी इसलिए नहीं टिकता क्योंकि वो पहाड़ी इलाका है. नेपाल में पिछले कई सालों में खेती की जमीन के लिए जंगल काट दिए गए हैं. जंगल मिट्टी को अपनी जड़ों से पकड़कर रखते हैं और बाढ़ के तेज बहाव में भी कटाव कम होता है. लेकिन जंगल के कटने से मिट्टी का कटाव बढ़ गया है.दोस्तों, नेपाल में कोसी नदी पर बांध बना है. ये बांध भारत और नेपाल की सीमा पर है, जिसे 1956 में बनाया गया था. इस बांध को लेकर भारत और नेपाल के बीच संधि है. संधि के तहत अगर नेपाल में कोसी नदी में पानी ज्यादा हो जाता है तो नेपाल बांध के गेट खोल देता है और इतना पानी भारत की ओर बहा देता है, जिससे बांध को नुकसान न हो. नेपाल में जब भी पानी का स्तर बढ़ता है तो वह अपने बांधों के दरवाजे खोल देता है. इसकी वजह से नेपाल से सटे बिहार के जिलों में बाढ़ आ जाती है. उत्तर बिहार के अररिया, किशनगंज, फारबिसगंज, पूर्णिया, सुपौल, मधुबनी, दरभंगा और कटिहार जिले में बाढ़ का पानी घुस जाता है. कोसी, कमला, बागमती, गंडक, महानंदा समेत उत्तर
बिहार की तमाम छोटी-बड़ी नदियों के तटबंधों के किनारे बसे सैकड़ों गांव जलमग्न हो जाते हैं. हालांकि दोस्तों, बिहार में बाढ़ के लिए नेपाल ही अकेला जिम्मेदार नहीं है. फरक्का बराज बनने के बाद बिहार में नदी का कटाव बढ़ा है. सहायक नदियों के जरिए लाई गई गाद और गंगा में घटता जलप्रवाह समस्या को गंभीर बनाते हैं. बिहार में हिमालय से आने वाली गंगा की सहायक नदियां कोसी, गंडक और घाघरा बहुत ज्यादा गाद लाती हैं. इसे वे गंगा में अपने मुहाने पर जमा करती हैं. इसकी वजह से पानी आसपास के इलाकों में फैलने लगता है. नदी में गाद न हो और जलप्रवाह बना रहे तो बाढ़ जैसी समस्या आए ही नहीं. दोस्तों बिहार में जलग्रहण क्षेत्र यानी कैचमेंट एरिया में पेड़ों की लगातार अंधाधुंध कटाई की जा रही है. इसकी वजह से कैचमेंट एरिया में पानी रुकता नहीं नहीं है. कोसी नदी का कैचमेंट एरिया 74,030 वर्ग किमी है. इसमें से 62,620 वर्ग किमी नेपाल और तिब्बत में है. सिर्फ 11,410 वर्ग किमी हिस्सा ही बिहार में है. पहाड़ों पर स्थित नेपाल और तिब्बत में ज्यादा बारिश होती है तो पानी वहां के कैचमेंट एरिया से बहकर बिहार में मौजूद निचले कैचमेंट एरिया में आता है. पेड़ों के नहीं होने की वजह से पानी कैचमेंट एरिया में न रुककर आबादी वाले क्षेत्रों में फैल जाता है और बाढ़ जैसे हालात बन जाते हैं।
सैय्यद आसिफ इमाम काकवी ..

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