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धर्म के नाम पर नफरत ठीक नहीं

SYED ASIFIMAM KAKVI
SYED ASIFIMAM KAKVI
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आज के दौर में सबसे अधिक अगर नफरत फैलाई जा रही है तो धर्म के नाम पे। यह एक केवल अफ़सोस की ही नहीं ताज्जुब की भी बात है, क्यूंकि सभी धर्म सच की, हक की राह पे चलने ही नसीहत करते हैं। यह नफरत फैलाने वाला धर्म आज के दौर में कौन सा पैदा हो गया, जो कभी खुद का नाम मुस्लिम रख लेता है तो कभी हिन्दू कभी ईसाई और बात करता है नफरत की। कभी हिन्दू जागो कभी मुस्लमान जागो के नारे देता है लेकिन जगाता इन्सान के अंदर के हैवान को है।

 

इस मज़हब का हकीकत में कोई नाम नहीं, यह हैवानियत है और इसको फैलाने वाले दुनिया परस्त लोग हैं, जिनका कोई धर्म नहीं। अगर इनका कोई धर्म होता तो अमन और सत्य का रास्ता दिखा के इंसान की इंसानियत को जगा रहे होते। हजरत मोहम्मद (स.अव.) ने कहा इस दुनिया की सभी कौमों में अगर एकता चाहते हो तो सभी धर्म के संस्थापकों का आदर करो और दूसरों के धर्म में दोष निकालना या उसको बदनाम करने से बचो। अगर ऐसा नहीं करोगे तो इस समाज में नफरत और आपस में दुश्मनी फैलेगी, जो सभी कौम को नुक़सान देगी। क्या इस से बेहतर कोई नसीहत दी जा सकती है सभी कौम की एकता के लिए।

 

मेरा मानना है कि अपने धर्म को मानो, और उसके बताए रास्ते पे चलो और दूसरों के धर्म की इज्ज़त करो, उसमें दोष न निकालो। अगर हिन्दू के पूजा का वक़्त है, तो उसकी पूजा का इंतज़ाम मुसलमान को कर देना और अगर मुसलमान की नमाज़ का वक़्त है तो उसकी नमाज़ का इंतज़ाम हिंदू को कर देना ही आपस में एक दुसरे के लिए मोहब्बत बढाता है।  इस से एहसास होता है की उसका दोस्त चाहे दुसरे धर्म पे है, लेकिन उसके धर्म की इज्ज़त करता है।

 

एक हिन्दू एक मुस्लमान को रोज़ा खुलवा दे यह भी तो मुहब्बत है और एक मुसलमान एक हिन्दू को आरती पूजा करने का इंतज़ाम कर दे तो यह भी मोहब्बत है। इसलिए अगर कौमों में अमन, एकता चाहते हो तो एक उनसे बचो जो दूसरों के धर्म को बुरा साबित करने पे लगे रहते हैं और दुसरे उनसे बचो जो गंगा जमुना संस्कृति के नाम पे न हिन्दू को हिन्दू और न मुसलमान को मुसलमान रहने देना चाहते हैं।  यह सभी धर्म के दुश्मन हैं।

 

आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चलने वाली साजिश जिसने सभी धर्म के लोगों के दिलों में आपस में नफरत पैदा कर दी है यह गंगा जमुना संस्कृति के हिमायती  उसी का फायदा ले के अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं।  यह अगर हिन्दू होते हैं तो मुसलमान हिमायती बन जाते हैं। अपने ही धर्म में कमियां निकालते हैं और मुसलमानों में वाहवाही लूट के अपना उल्लू सीधा करते हैं। यह हिन्दू को हिन्दू से लड़वाते हैं। ऐसे ही बहुतेरे मुसलमान मिल जायेंंगे जो हिन्दू धर्म के हिमायती  इस्लाम में ही सुधार की बात करते हैं, नाम और शोहरत कमाते हैं। यह किसी के नहीं होते, यह न अपने खुदा के हुए, न भगवान के, न अपने धर्म के हुए, न अपने मज़हब के तो यह क्या खाक हमारे होंगे या आपके। ऐसे मौकापरस्त लोगों से भी सभी कौम के लोगों को होशियार रहना चाहिए, यह आस्तीन के सांप अपनों को दूसरों से लड़वा के आपस में नफरत पैदा करते हैं। ऐसे लोगों से सतर्क रहने की जरूरत है।

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