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सियासत ही पिलाती है जाम सभी को, नफ़रत का
कोई मज़हब नहीं देता पैग़ाम कभी नफ़रत का”
आज के दौर में सबसे अधिक अगर नफरत फैलाई जा रही है तो धर्म के नाम पे। यह एक केवल अफ़सोस की ही नहीं ताज्जुब की भी बात है, क्यूंकि सभी धर्म सच की हक की राह पे चलने ही नसीहत करते हैं। यह नफरत फैलाने वाला धर्म आज के दौर में कौन सा पैदा हो गया, जो कभी खुद का नाम मुस्लिम रख लेता है तो कभी हिन्दू कभी ईसाई और बात करता है नफरत की। कभी हिन्दू जागो कभी मुस्लमान जागो के नारे देता है, लेकिन जगाता इन्सान के अंदर के हैवान को है। इस मज़हब का हकीकत में कोई नाम नहीं यह हैवानियत है और इसको फैलाने वाले दुनिया परस्त लोग हैं जिनका कोई धर्म नहीं।
नफ़रत बंद कर कीजिए साहब, मोहब्बत कीजिए सबसे मोहब्बत कीजिए अगर इनका कोई धर्म होता तो अमन और सत्य का रास्ता दिखा के इंसान की इंसानियत को जगा रहे होते। पिछले कई वर्षों से धर्म के नाम पर इंसानियत से नफरत देखने को मिल रहा है जबकि कोई भी इन्सान अगर धार्मिक बन कर धर्म का पालन करे तो कहीं कोई शान्ति भंग नहीं होगी। हजरत मोहम्मद (स.अव.) ने कहा इस दुनिया की सभी कौमों में अगर एकता चाहते हो तो सभी धर्म के संस्थापकों का आदर करो और दूसरों के धर्म में दोष निकालना या उसको बदनाम करने से बचो। अगर ऐसा नहीं करोगे तो इस समाज में नफरत और आपस में दुश्मनी फैलेगी, जो सभी कौम को नुक़सान देगी।
मेरा मानना है कि अपने धर्म को मानो, और उसके बताए रास्ते पे चलो और दूसरों के धर्म की इज्ज़त करो उसमें दोष न निकालो। मुझे अपने बचपन की याद आ रही है। सर्दियों की रात में सोने से पहले अम्मी पैगंबर साहब की जिंदगी के कुछ किस्से सुनाती थीं। एक किस्सा आज भी ज़ेहन में ताजा है। अम्मी बताती थीं कि आप (ज्यादातर मुसलमान पैगंबर मुहम्मद साबह को आप कहकर संबोधित करते हैं) जिस रास्ते से गुजरते थे उस रास्ते पर एक बुढ़िया रोज कांटे बिछा देती या फिर ऊपर से गंदगी फेंक देती आप कांटे हटाते, अपने कपड़े साफ करते और गुज़र जाते। यह सिलसिला महीनों तक चलता रहा। एक दिन उस बुढ़िया ने न कांटे ही बिछाए और न गंदगी ही फेंकी।
आप यह देखकर हैरान हुए और उस बुढ़िया का हाल-चाल पहुंचने उसके घर पहुंचे। देखा तो वो बीमार थी। आप ने हाल-चाल पूछा और उसकी तबियत ठीक होने की दुआ की। इस घटना का उस बुढ़िया पर ऐसा प्रभाव हुआ कि वो भी पैगंबर की सच्चे दिल से सम्मान करने लगी। अम्मी द्वारा बचपन में कई बार सुनाई गए इस वाक्ये का इस्लाम की हदीसों में भी जिक्र होगा। वाक्या का सार यही है कि पैगंबर ने खुद पर कीचड़ फेंकने वाली बुढ़िया पर गुस्सा जाहिर करने के बजाए अपने व्यावहार से उसका भी दिल जीत लिया। न कीचड़ फेंके जाने से उन्होंने रास्ता बदला और न ही कभी कोई प्रतिक्रिया दी। बस खामोशी से गुज़रते रहे।
खुद अल्लाह तआला ने मुहम्मद साहब के ज़िक्र को सर बुलंद किया है, इंसान की बिसात नही कि उनकी शान में ज़िक्र करके या गुस्ताख़ी करके रत्ती भर भी उनकी शान बढ़ा या घटा सके। बस अगर बंदा उनकी शान को बयान करता है तो उसके ईमान के दर्जे बढ़ते हैं। मुहम्मद साहब सिर्फ मुसलमानों के नहीं बल्कि इस तमाम आलम के लिए रहमत हैं। क़ुरआन में अल्लाह तआला ने फरमाया… “ऐ मेरे महबूब नबी मैंने आपको तमाम आलम के लिए रहमत बनाकर भेजा”। प्रॉफेट मुहम्मद साहब इस कायनात के वो वाहिद शख्सियत हैं, जिन्होंने बेटियों को भी बाप की जायदाद में हक़ लेने का फ़रमान दिया। हज़रत मोहम्मद की ज़िंदगी हर लम्हा, मज़लूमों और बेबसों को उनका हक़ दिलाने के लिए गुज़रा है।
अगर आप यह लेख पढ़ रहे हैं या फिर पैगंबर के अपमान या कुरान के अपमान की कोई भी ख़बर पढ़ रहे हैं तो कुछ भी सोचने से पहले यह ज़रूर सोच लीजिएगा कि यदि पैगंबर के सामने ऐसे हालात आए होते तो उन्होंने क्या किया होता? अगर आपने एक बार भी ऐसा सोच लिया तो तमाम बातों का जवाब मिल जाएगा और अगर आप पैगंबर-ए-इस्लाम की सोच तक नहीं पहुंच पाए तो कम से कम पैगंबर के अपमान के विरोध में जवाब देने के लिए पवित्र कुरान और पैगंबर मुहम्मद की जीवनी की कॉपियों को पैकेटों में रखकर बांटा ताकि दुनिया के पैगंबर और उनके इस्लाम का असली संदेश मिल सके।
सख़्ती थोड़ी लाज़िम है पर पत्थर होना ठीक नहीं
हिंदू मुस्लिम ठीक है साहब कट्टर होना ठीक नहीं।
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