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बिना सबूत के जेल

SYED ASIFIMAM KAKVI
SYED ASIFIMAM KAKVI
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लालू प्रसाद यादव यानी एक भोली सूरत, गोल-गोल चेहरा, सफेद कटोरा कट बाल, चेहरे पे मासूमियत, आंखों में शरारत, मन में विरोधियों को धूल चटाने का जज्बा और जबान जैसे अभी कोई नया शगूफा छोड़ने वाली हो। कोई इन्हें भारत की राजनीति का मसखरा कहता है तो कोई गरीबों का नेता। वहीं कोई उनको बिहार की बर्बादी का जिम्मेदार मानता है। जो भी हो, लालू की चाहत का आलम ये है कि पाकिस्तान में अगर किसी भारतीय नेता की बात होती है तो वो हैं लालू। यही नहीं, हॉवर्ड यूनिवर्सिटी भी लालू को अच्छी तरह जानती है वो चाहे जैसी सियासत करें। आप उन्हें पसंद करें या नापसंद, लेकिन नजरअंदाज नहीं कर सकते।1977 में पहली बार लालू संसद पहुंचे। केवल 29 साल की उम्र में और दो साल बाद ही उन्होंने मोरारजी देसाई के खिलाफ वोट दिया। अभी तक लालू आदर्शवादी थे। राममनोहर लोहिया और इमरजेंसी के नायक जयप्रकाश नारायण के समर्थक लालू ने पिछड़ी जातियों के बीच अपनी छवि बनानी शुरू कर दी थी। वो अब कांग्रेस राज को खुली चुनौती देने लगे थे। उन्होंने जेपी की एक खासियत भी अपना ली थी। बड़ी-बड़ी जनसभाएं, पटना के गांधी मैदान में होने वाली इन जनसभाओं में 1974 की संपूर्ण क्रांति के ख्वाब को बार-बार दोहराया जाता। 1990 में टूटे-बिखरे बिहार में लालू ने अपना राजनीतिक कौशल दिखाया। मंडल कमीशन की लहर पर सवार होकर वो जनता दल की तरफ से सत्ता पर काबिज हुए। जनता से उनका वादा था- स्वर्ग नहीं तो स्वर, खामोश रहने वालों को आवाज और सम्मान, पिछड़ी जातियों और मुसलमानों को बराबरी।
लालू ने अपने बिहार में होनेवाले चुनावों में जाति फैक्टर को हमेशा से हावी होने दिया, हर बार पिछड़ों को उपर ऱखा। लालू की इसी रणनीति ने 1991 के लोकसभा चुनाव ने लालू को बड़ी फतह दिलाई। लालू का गणित साफ था। उन्हें मंडल और मुस्लिम के गठजोड़ की ताकत समझ आ गई थी। इसी गठजोड़ ने उनकी पार्टी को बिहार में तीन बार सत्ता दिलाई और साथ ही सूबे में अपना एकछत्र राज्य कायम कर अपनी धमक दिखाई।
मुसलमान वोटरों से लालू को चौतरफा समर्थन मिला। इसकी वजहें भी थीं, जब लालकृष्ण आडवाणी ने 1990 में अपनी रथयात्रा शुरू की तो बिहार के मुसलमानों को डर था कि इससे मुस्लिम विरोधी लहर चल पड़ेगी। लेकिन 23 अक्टूबर को लालू ने वो कर दिखाया जो तब तक कोई राज्य सरकार नहीं कर सकी थी। रथयात्रा बिहार में घुसी ही थी कि आडवाणी को समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया। आडवाणी को गिरफ्तार करने की खबर जंगल की आग की तरह फैली और एकाएक लालू अल्पसंख्यकों और धर्मनिरपेक्षता के नए मसीहा बनकर उभरे। ये वो छवि थी जिसे उन्होंने आने वाले कई सालों तक भुनाया। लेकिन इस कामयाबी की चमक पर धीरे-धीरे भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद का ग्रहण लगने लगा। सूबे में अपराध और अपराधियों पर नकेल कसने में नाकामयाब रहे लालू नक्सलियों का उभार रोकने और बिहार को विकास के रास्ते पर लाने में भी कामयाब नहीं हो सके। 1997 में चारा घोटाला हुआ और 2000 में उन पर आय से ज्यादा संपत्ति के आरोप लगे। उन्हें चार्जशीट किया गया और जेल भी जाना पड़ा। जेल जाने के बाद भी लालू का पार्टी पर दबदबा कायम था और आनन फानन में उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी को सूबे की कमान सौंप दी। लेकिन लालू की साख पर बट्टा लग चुका था और वो दिन भी आया जब उनके ही लोगों ने उन्हें ठुकरा दिया। लालू को झूठे चारा घोटाले में इतनी बड़ी सजा लेकिन मोदी तो गुजरात के पुरे चारागाह खा गया तो उसकी क्या सजा होनी चाहिये , आपको बता दूं के गुजरात में गाँव समाज की जमीने जिनमे चारागाह सबसे महत्वपूर्ण है, उनको मोदी और उनकी दलाल सरकार ने बड़े उद्योगपतियों को मुफ्त में बाँट दी है. सरकारी खजाने को इससे बड़ी लूट और जनता के संशाधनो को पूंजीपतियों को सौंपने का इससे बड़ा उदाहरण कहीं नहीं मिलेगा। जल,जंगल और जमीन जनता के संशाधन है.
भारतीय न्याय प्रक्रिया के बारे में रोना है की बिना सबूत के किसी के खिलाफ कार्यवाही नहीं हो सकती , सुप्रीम कोर्ट ने लालू की सम्पति को उनकी कानूनी आय के बराबर माना ,और एक जज ने लालू को सिर्फ इस आरोप में जेल भेज दिया की मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने फर्जी तरीके से हो रहे अवैध निकासी पे रोक लगाने में
अक्षम रहे क्या मनमोहन सिंह या सोनिया गाँधी या राहुल गाँधी को जेल हुआ की वो सत्ता में रहते 2 G घोटाले को, राष्ट्रमंडल खेल घोटाले को, कोयला घोटाले को रोक पाने में अक्षम रहे .एक कहावत थी ” जिसकी लाठी , उसी की भैस ” घोटाला कराने वाले वही , उजागर करने वाले भी वही , जांच करने वाले भी वही , गवाही भी उनही की जज भी उनही का । तो सजा तो पक्की थी । लालू यादव राजद सुप्रीमो को चारा घोटाले में कानून ने दोषी करार दिया .एक जननेता का ये दुखद राजनेतिक अवसान हे ..गलती उनसे हुई उन्होंने सजा पा ली .मगर इसके पूर्व भी देश में अनेक राजनेताओ ने घोटाले किये हे अरबो खरबों के घोटाले हो चुके हे .कारण एक ही हे .अधिकतर नेता ऊँचे घरानों से सम्बन्ध रखते हे रसूख दार हे .लालू जेसे गंवई ,दलित ,पिछडो ,अकलियत के पैरोकार नेताओ को देश का अभिजात्य वर्ग और कुलीन जातियों के नेता पसंद नहीं करते थे ..लिहाजा उन्हें जेल पहुंचा के दम लिया .आज देश भर के नेताओ कांग्रेस / बीजेपी के सभी बड़े नेताओ ने अपनी आने वाली 100 पुश्तो के खाने लायक इंतजाम किया हुवा है चारा घोटाले में दोषी जगन्नाथ मिश्रा (भूतपूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री बिहार, जगन्नाथ मिश्रा का बीटा नितीश मिश्रा, नितीश कुमार की सरकार में कैबिनेट मंत्री है ),जगदीश शर्मा ( सांसद जदयू) और ध्रुव भगत ( उस समय भाजपा के विधायक थे) भी है , 22 नवंबर को जनता सीबीआइ की निष्पक्षता को देखेगी। इस दिन कोर्ट में सीबीआइ को चारा घोटाले के ही मामले में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हलफनामा दायर करना है। सभी दलों में है। चारा घोटाला तो 1977 से ही हुआ है, जबकि जांच केवल लालू प्रसाद के शासनकाल से हुई। लालू पर लगाए गए आरोपों में कोई सबूत नहीं है। लालू को जिस केस में दोषी ठहराया गया उसी मामले में नीतीश कुमार, शिवांनद तिवारी व ललन सिंह पर भी आरोप थे। लेकिन सीबीआइ ने उन लोगों का नाम हटा दिया। अब देखना है कि हलफनामे में सीबीआइ कितनी निष्पक्षता दिखाती है बिहार में 11.500 करोड़ रुपयों के वित्तीय अनियमितता की बात सीएजी की रपट में सामने आई . ये हेराफेरी का मामला वर्ष 2002 से 2008 के बीच का हैं .पटना हाई कोर्ट में दाखिल एक हलफनामे में बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार, उप मुख्य मंत्री सुशील कुमार मोदी, स्वास्थ्य मंत्री नन्द किशोर यादव समेत 47 अन्य को मुख्य अभियुक्त बनाया गया है . आरोपपत्र में स्पष्ट उल्लेख है कि वर्ष 2002 से 2008 तक सरकारी खजाने से 11,500 करोड़ रुपयों की निकासी का कोई हिसाब किताब नहीं है. पटना हाई कोर्ट के द्वारा मामले की सी0बी०आई० जांच के आदेश दे दिए गये हैं .इस खज़ाना घोटाले में नीतीश शामिल हो या ना हों लेकिन जिम्मेदारी तो उन पर भी आती है । क्या अटल बिहार वाजपेयी को जेल हुयी की उसके प्रधानमंत्री रहते ,टेलिकॉम घोटाला, ताबूत घोटाला और लाखो घोटाला हुए.क्या प्रणव मुख़र्जी को उनके वित्त मंत्री रहते हेलीकाप्टर घोटाला में अवैध निकासी हुआ तो जेल हुयी ,पैसा बरामद नहीं हुआ. मनी ट्रेल नहीं मिला और शक के आधार पे जेल वाह रे ………………………

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