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मुहर्रम सब्र और इबादत का महीना है

SYED ASIFIMAM KAKVI
SYED ASIFIMAM KAKVI
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मुहर्रम कोई त्योहार नहीं है, यह सिर्फ इस्लामी हिजरी सन् का पहला महीना है। पैगंबर मुहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन एवं उनके साथियों की शहादत इस माह में हुई थी। मुहर्रम सब्र का, इबादत का महीना है। इसी माह में पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब, मुस्तफा सल्लाहों अलैह व आलही वसल्लम ने पवित्र मक्का से पवित्र नगर मदीना में हिजरत की थी यानी कि आप सल्ल. मक्का से मदीना मुनव्वरा तशरीफ लाए। कर्बला यानी आज का इराक, जहां सन् 60 हिजरी को यजीद इस्लाम धर्म का खलीफा बन बैठा। वह अपने वर्चस्व को पूरे अरब में फैलाना चाहता था जिसके लिए उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी पैगम्बर मुहम्मद के खानदान के इकलौते चिराग इमाम हुसैन, जो किसी भी हालत में यजीद के सामने झुकने को तैयार नहीं थे।इस वजह से सन् 61 हिजरी से यजीद के अत्याचार बढ़ने लगे। ऐसे में वहां के बादशाह इमाम हुसैन अपने परिवार और साथियों के साथ मदीना से इराक के शहर कुफा जाने लगे लेकिन रास्ते में यजीद की फौज ने कर्बला के रेगिस्तान पर इमाम हुसैन के काफिले को रोक दिया। वह 2 मुहर्रम का दिन था, जब हुसैन का काफिला कर्बला के तपते रेगिस्तान पर रुका। वहां पानी का एकमात्र स्रोत फरात नदी थी, जिस पर यजीद की फौज ने 6 मुहर्रम से हुसैन के काफिले पर पानी के लिए रोक लगा दी थी। बावजूद इसके, इमाम हुसैन नहीं झुके। यजीद के प्रतिनिधियों की इमाम हुसैन को झुकाने की हर कोशिश नाकाम होती रही और आखिर में युद्ध का ऐलान हो गया। इतिहास कहता है कि यजीद की 80,000 की फौज के सामने हुसैन के 72 बहादुरों ने जिस तरह जंग की, उसकी मिसाल खुद दुश्मन फौज के सिपाही एक-दूसरे को देने लगे। लेकिन हुसैन कहां जंग जीतने आए थे, वे तो अपने आपको अल्लाह की राह में कुर्बान करने आए थे। उन्होंने अपने नाना और पिता के सिखाए हुए सदाचार, उच्च विचार, अध्यात्म और अल्लाह से बेपनाह मुहब्बत में प्यास, दर्द, भूख और पीड़ा सब पर विजय प्राप्त कर ली। 10वें मुहर्रम के दिन तक हुसैन अपने भाइयों और अपने साथियों के शवों को दफनाते रहे और आखिर में खुद अकेले युद्ध किया फिर भी दुश्मन उन्हें मार नहीं सका।

आखिर में अस्र की नमाज के वक्त जब इमाम हुसैन खुदा का सजदा कर रहे थे, तब एक यजीदी को लगा कि शायद यही सही मौका है हुसैन को मारने का। फिर, उसने धोखे से हुसैन को शहीद कर दिया। लेकिन इमाम हुसैन तो मरकर भी जिंदा रहे और हमेशा के लिए अमर हो गए, पर यजीद तो जीतकर भी हार गया। उसके बाद अरब में क्रांति आई, हर रूह कांप उठी और हर आंखों से आंसू निकल आए और इस्लाम गालिब हुआ। इमाम हुसैन ने ऐलान करके लोगों को कर्बला चलने की दावत दी। हज के ज़माने में लोगों को इकट्ठा करके समझाया कि यज़ीद के फितने से निपटना क्यों ज़रूरी है। ये भी बताया कि झूठ और ज़ुल्म से लड़कर मौत को गले लगाना कामयाबी क्यों है और डरकर घरों में छिप जाना या उसकी बैयत कर लेना ग़लत कैसे है। इमाम हुसैन ने कहा कि ज़ुल्म के ख़िलाफ जितनी देर से उठोगे उतनी ज़्यादा क़ुर्बानी देनी होगी।लोग इस गफ़लत में थे कि कर्बला न जाकर बच जाऐंगे लेकिन हसीन बिन नमीर अल सकुनी के उमवी लश्कर ने उनकी औरतों और बच्चों तक को नहीं छोड़ा। यज़ीद और उसके कमांडरों ने मक्का और मदीना में हर वो काम किया जिसकी इस्लाम में मनाही थी

लेकिन इमाम हुसैन तो कहकर गए हैं हर ग़लत बात और हर ग़लत आदमी से सवाल करो चाहे गर्दन ही क्यों कटानी पड़े। जनाब लोग सवाल कर रहे हैं तो रोकिए मत। ये ज़िंदा क़ौम की निशानी है। अगर आज हम हक़ को फ़रामोश करेंगे तो कल हम सब को भुगतना भी पड़ेगा।लोगों को ये मत बताईए कि इमाम हुसैन कैसे शहीद हुए। ये समझाइए क्यों शहीद हुए। लोगों को ये भी बताइए कि क्यों हर दौर में इमाम हुसैन की हलमिन की सदा ज़िंदा रहेगी। कर्बला क़त्लगाह नहीं है। कर्बला हमारी यूनिवर्सिटी है। हम कर्बला से पढ़कर आए हैं कि ज़माना कितना ही ख़राब हो और हवाएं कितनी ही मुख़ालिफ हों। हम न झुके हैं, न बिके हैं और न हमने किरदार का सौदा किया है। हम क़यामत तक हक़ के साथ रहेंगे चाहे जो क़ीमत चुकानी पड़े। पूरी इस्लामी दुनिया में मुहर्रम की नौ और दस तारीख को मुसलमान रोजे रखते हैं और मस्जिदों-घरों में इबादत की जाती है। क्यूंकि ये तारीख इस्लामी इतिहास कि बहुत खास तारीख है…..रहा सवाल भारत में ताजियादारी का तो यह एक शुद्ध भारतीय परंपरा है, जिसका इस्लाम से कोई ताल्लुक़ नहीं है। तजिया की शुरुआत बरसों पहले तैमूर लंग बादशाह ने की थी, जिसका ताल्लुक शीआ संप्रदाय से था। तब से भारत के शीआ और कुछ क्षेत्रों में हिन्दू भी ताजियों (इमाम हुसैन की कब्र की प्रतिकृति, जो इराक के कर्बला नामक स्थान पर है) की परंपरा को मानते या मनाते आ रहे हैं।तुगलक-तैमूर वंश के बाद मुगलों ने भी इस परंपरा को जारी रखा। मुगल बादशाह हुमायूं ने सन् नौ हिजरी 962 में बैरम खां से 46 तौला के जमुर्रद (पन्ना/ हरित मणि) का बना ताजिया मंगवाया था। तब से भारत के शीआ-सुन्नी और कुछ क्षेत्रों में हिन्दू भी ताजियों (इमाम हुसैन की कब्रकी प्रतिकृति, जो इराक के कर्बला नामक स्थान पर है) की परंपरा को मानते या मनाते आ रहे हैं।

कुल मिलकर ताज़िया का इस्लाम से कोई ताल्लुक़ ही नही है लेकिन हमारे भाई बेहेन जो न इल्म है और इस काम को सवाब समझ कर करते है उन्हें हक़ीक़त बताना भी हमारा ही काम है। मुहर्रम की फजीलतों में से एक सबसे बड़ी फ़ज़ीलत है इस महिने का रोज़ा। इस महीने की 9 और 10 तारीख को या फिर 10 या 11तारीखको रोज़ा रखते हैं। और मस्जिदों-घरों में इबादत की जाती है। क्यूंकि ये तारीख इस्लामी इतिहास कि बहुत खास तारीख है
मुहर्रम की दस तारीख़ पूरी दुनिया के मुसलमानों के लिये एक महत्वपूर्ण तारीख़ है।
तारीख़ के कई अहम वाक़िआत 10मुहर्रम से जुड़े हुये हैं,मुस्तनद ओ मोअतबर मोअर्रिख़ीन(इतिहासकारों) ने लिखा है__

मुहर्रम को अल्लाह ने ये दुनिया बनाई और इसी दिन हज़रत आदम अलैहीस्सलाम को पैदा किया।
2_
10मुहर्रम को अल्लाह ने हज़रत आदम की तौबा क़ुबूल की थी।
3_
10मुहर्रम को हज़रत इदरीस अलैहिस्सलाम को आसमान पर उठाया गया।
4_
10मुहर्रम को हज़रत नूह अलैहिस्सलाम की कश्ती क़यामत ख़ेज़ सैलाब से बच कर सुरक्षित जूदी नाम के पहाड़ की पर रुकी।
5_
10मुहर्रम को हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को अल्लाह ने ख़लीलउल्लाह (अल्लाह का दोस्त) बनाया और उन पर आग गुलज़ार हुयी।
6_
10मुहर्रम को हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को क़ैदख़ाने से रिहाई मिली थी।
7_
10मुहर्रम को हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम की अपने वालिद हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम से बरसों के बाद मुलाक़ात हुई थी।
8_
10मुहर्रम को हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की क़ौम बनी इस्राईल को अल्लाह ने फिरऔन के ज़ुल्म से छुटकारा दिया और फिरऔन को अल्लाह ने दरिया में ग़र्क़ कर दिया।
9_
10मुहर्रम को हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम को बादशाहत वापस मिली।
10_
10मुहर्रम को हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम को शदीद बीमारी से शिफा हासिल हुई।
11_
10मुहर्रम को हज़रत युनुस अलैहिस्सलाम को 40रोज़ के बाद मछली के पेट से आज़ादी मिली
12_
10मुहर्रम को हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम की क़ौम की तौबा क़ुबूल हुई ।
13_
10मुहर्रम को हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की विलादत हुयी।
14_
10मुहर्रम को हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को यहूदियों के शर से निजात दिला कर आसमान पर उठाया गया।
15_
10मुहर्रम को पहली बार आसमान से रहमत की बारिश हुयी।
16_
10मुहर्रम को क़ुरैश ख़ाना-ए-काबा का ग़िलाफ बदलते थे।
17_
10मुहर्रम को हज़रत मुहम्मद सल्ल अल्लाह अलैही वसल्लम ने हज़रत ख़दीजा रज़ी अल्लाह अन्हा से निकाह किया था।
18_
और सबसे आखिर में 10मुहर्रम के रोज़ कूफी फरेबकारों ने जिगर_गोश_ए_रसूल सल्ल अल्लाह अलैही वसल्लम, हज़रत हुसैन रज़ी अल्लाह अन्हू को करबला के मैदान में शहीद कर दिया था।
19_
और 10मुहर्रम को ही क़यामत क़ायम होगी।
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बनी इस्राइल के लोग फिरऔन से निजात मिलने के बाद से 10मुहर्रम को अल्लाह सुब्हान व तआला का शुक्र अदा करने की नियत से रोज़ा रखते थे इसलिये हमारे नबी सल्ल अल्लाह अलैही वसल्लम के फरमान के मुताबिक दुनिया भर के मुसलमान 9/10 या 10/11 मुहर्रम को रोज़ा रखते हैं।आप सल्ल अल्लाह अलैही वसल्लम ने ये भी फरमाया कि रमज़ान-उल-मुबारक के बाद सबसे फज़ीलत वाले रोज़े मुहर्रम उल हराम के हैं और ये भी कि ये रोज़े गुज़रे साल के गुनाहों कफ्फारा हैं।
सैय्यद आसिफ इमाम काकवी

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