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यह रचना स्वर्गीय रफीक शादानी जी की है,जिसे मै इस मंच पर प्रस्तुत कर रहा हूँ…
जियो बहादुर खद्दर धारी,
लुटा देश को बारी बारी ,
देश मा महगाई बेकारी
नफरत कि फैली बीमारी
दुखी है जनता बेचारी
बिका जात है लोटा-थारी
जियो बहादुर खद्दर धारी!
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मनमानी हरताल करत हो
देशवा का कंगाल करत हो
खुद को माला माल करत हो
तोहरे दम पर चोर बाज़ारी
जियो बहादुर खद्दर धारी!
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धूमिल भाई गाँधी कि खादी
पहिने लगे जब अवसरवादी
या तो पहिने बड़े फसादी
देश को लूटो बारी बारी
जियो बहादुर खद्दर धारी!
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तन से गोरा,मन से गन्दा
मंदिर-मस्जिद नाम पे चंदा
सबसे बढ़िया तोहरा धंधा
न तो नमाज़ी, न तो पुजारी
जियो बहादुर खद्दर धारी!
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सूखा या सैलाब जो आवे
तोहरा बेटवा ख़ुशी मनावै
घरवाली आँगन में गावै
मंगल भवन अमंगल हारी,
जियो बहादुर खद्दर धारी!
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झंडी झंडा रंग-बिरंगा
नगर-नगर में कर्फ़यू दंगा
खुशहाली में पड़ा अड़ंगा
हम भूखा तू खाओ सोहारी
जियो बहादुर खद्दर धारी!
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बरखा मा विद्यालय ढही गय
वही के नीचे टीचर रही गय
नहर के खुलतै दुई पुल बहि गय
तोहरी इ ख़ूनी ठेकेदारी
जियो बहादुर खद्दर धारी!
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