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झूठ के दिग्विजय का समय:अशोक वाजपेयी

ताहिर की कलम से
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मेरठ, ४ दिसंबर,२०१२। यह झूठ के दिग्विजय का समय है। यहां नेता, मीडिया, ज्योतिषी, विद्वान सभी झूठ बोल रहे हैं! २४ घंटे अहर्निश झूठ परोसा जा रहा है। हम भी कमाल के लोग हैं जो मुदित मन से यह सब देखते-सुनते हैं। न हमें गुस्सा आता है, न खीझ होती है।
प्रख्यात कवि, साहित्य-संस्कृति आलोचक अशोक वाजपेयी मेरठ स्थित स्वामी विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार संकाय के तत्वावधान में आयोजित विशेष व्याख्यान के लिए पधारे थे। पत्रकारिता, कला, फैशन, होटल मैनेजमेंट, इंजीनियरिंग आदि के छात्रों-शिक्षको, साहित्य प्रेमियों से संवादरत थे। खचाखच भरे विश्वविद्यालय के मालवीय प्रेक्षागृह में अशोक वाजपेयी ‘हमारा समय’ विषयक विशेष व्याख्यान में पूरी रौ में थे। ‘औपचारिक’ साहित्य से इत्तर विषयों के छात्र-छात्राओं ने व्याख्यान का आनंद उठाया-जिरह और सवालों-सरोकारों के साथ।
श्री वाजपेयी का कहना था कि हम सामूहिक संवेदनशून्यता और निष्क्रियता का शिकार हो रहे हैं। युवाओं से उन्होंने कहा कि ‘सफलता किसी भी कीमत पर’ को आदर्श न मानें। आप पर भरोसा है, शंका भी है। लेकिन भरोसा से कहीं अधिक शंका है। छात्र युवाओं से संवाद शैली में सवालों, ठहाकों, सन्नाटों के बीच अशोक वाजपेयी ने अनेक चुभते सवालों-संदर्भों को रखते हुए कहा कि आज मीडिया माध्यमों ने अनंत वर्तमान पैदा कर दिया है। यहां हर चीज आज है।

आगे उन्होंने कहा कि ‘जब दो भाषायी मिलते है, तो अपनी बोली-बानी में बात करते हैं। मराठी मिलते हैं तो मराठी में बात करते हैं, उडि़सा के मिलते हैं उडिय़ा में बात करते हैं, बंगाली और तमिल अपनी भाषा में बात करते हैं, लेकिन जब दो हिंदी वाले मिलते हैं तो “गलत अंग्रेजी में बात करते हैं”। आज जातीय स्मृति के सबसे बड़े संग्रहालय ‘भाषा’ का विलोपन हो रहा है। उन्होंने सवाल किया कि ऐसी जातीय ज्ञान-विपन्नता लेकर हम भला कैसे एक ज्ञान पर आधारित समाज बनाएंगे? उन्होंने कहा कि आज प्रचारित किया जा रहा है कि दुनिया विचारों से नहीं बल्कि चीजों से बदलेगी, लेकिन लोग भूल रहे हैं कि कंप्यूटर ज्ञान पैदा नहीं करता बल्कि इसमें ज्ञान डाला जाता है। उन्होंने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि युवाओं के सामने कई चुनौतियां हैं जिसमें टेक्नोलॉजी सबसे प्रमुख है। पर जिन्दगी टेक्नोलॉजी से नहीं चलने वाली बल्कि यह चलेगी विचार से। उपभोक्तावादी संस्कृति और जुटाऊ-खपाऊ चलन पर उन्होंने कहा कि हम गोदामियत की ओर बढ़ रहे हैं। हमारे घर गोदाम बनते जा रहे हैं।
उनका कहना था कि यह मनुष्यता का हिंसक समय है। सिविल, सैन्य, से लेकर मनोरंजन, खेल, मीडिया, घरेलू महिलाओं और अल्पसंख्यक सभी हिंसा झेल रहें हैं। आज सभी धर्मों ने हिंसक रूप धारण कर लिया है। लोग हिंसा के प्रति उदासीन होते जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि मनुष्यता के लिए, जीवन और जगत को बेहतर बनाने के सपने देखते रहना चाहिए ।
अपने सुचिंतित व्याख्यान में अशोक वाजपेयी ने साहित्य -कला -संस्कृति के अनेक आयामों -प्रसंगों को उल्लेखित किया।
छात्रों से सृजन -संवाद स्थापित करते हुए ‘शहर अब भी सम्भावना है’ , फिलहाल , कहीं नहीं वहीँ आदि सहित अनेक कृतियों के ख्याति प्राप्त कवि -समालोचक वाजपेयी ने कहा कि हिंदी समाज-संस्कृति का असली संकट वैचारिक और सांस्कृतिक विपन्नता है, जो कि घटने के बजाय बढ़ती जा रही है और उससे निपटने के लिए न कोई व्यापक अभियान है, न ही कोई विशेष संस्थागत पहल। हम ज्ञान का उपनिवेश भर बनने जा रहे हैं। हिंदी का खाता-पीता मध्यवर्ग अपनी मातृभाषा से लगातार विश्वासघात कर रहा है, उसके प्रति न कोई लगाव उसमें है और उसमें होड़ ही लगी है कि कैसे अगली पीढ़ियों का हिंदी-ज्ञान कम से कम हो। नयी पीढी को दुनिया को बेहतर , संस्कृति सम्पन्न बनाने का प्रयास करना चाहिए।
इससे पूर्व सुभारती मास कम्युनिकेशन के प्राचार्य व डीन प्रो. आरपी सिंह ने आरम्भिक वक्तव्य के साथ अशोक वाजपेयी का संक्षेप में परिचय दिया। प्राचार्य, हायर एजुकेशन डॉ मोहन गुप्त ने अशोक वाजपेयी को बुके प्रदान कर स्वागत किया। इस मौके पर प्रख्यात साहित्यकार, कवि फोक लोर इंस्टीट्यूट बर्कले, यूएसए के निदेशक रहे वेद प्रकाश वटुक का स्वागत फाईन आर्ट संकाय के प्राचार्य प्रोफेसर पिंटू मिश्र ने किया। व्याख्यान के पश्चात प्रश्नोत्तर का कार्यक्रम हुआ जिसमें जिज्ञासु छात्र-छात्राओं ने कई जीवंत-ज्वलंत सवाल उठाए। प्रोफेसर डॉ मोहन गुप्त, प्राचार्य हायर एजूकेशन ने आभार प्रकाश किया। संचालन प्रोफेसर आरपी सिंह ने किया।
डॉ जयंत शेखर , डॉ यू के सिंह , डॉ रेनू भटनागर , डॉ विजय भटनागर , शशांक शर्मा , शिखा धामा आदि की सक्रीय भागीदारी रही । विशेष व्याख्यान का संयोजन पी के पांडे ने किया।

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