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कान की अधिकतर बीमारियों की शुरुआत नज़ले एवं जुकाम के कारण होती हैं। सर्दी के मौसम में नज़ला एवं जुकाम होना आम बात है। इसी कारण सर्दियों के मौसम में कान की बीमारियां अधिकता में पाई जाती हैं। कान के तीन भाग होते हैं- है। ताहिर खान की डॉ. अमरेश सक्सेना से बात-चीत के आधार पर पेश है कुछ सुझाव
1 बाह्य कान (एक्सटर्नल इअर) 2 .मध्य कान (मिडिल इअर) 3. आंतरिक कान (इनर इअर)
मध्य भाग, कान का वह भाग होता है जो कान के पर्दे के पीछे होता है। सर्दी के मौसम में नज़ले, जुकाम के कारण कान के इस भाग में संक्रमण हो जाता है जिसको ‘ओटाइटिस मीडिया’ कहते हैं। यदि इसका समय से उपचार न किया जाए तो पर्दे के पीछे मवाद पड़ जाता है जो कभी-कभी पर्दे को गला देता है तथा कान से मवाद आने की दिक्कत शुरू हो जाती है।
लक्षण- ओटाइटिस मीडिया में कान में तेज दर्द होता है एवं सुनने की क्षमता कम हो जाती है।
इलाज- ओटाइटिस मीडिया के इलाज के लिए मरीज को एंटीबॉयोटिक दवाएं देनी पड़ती हैं एवं दर्द के निवारण के लिए एनालजेसिक दवाएं देनी पड़ती हैं।
बचाव- यह बीमारी बड़ों की अपेक्षा बच्चों में अधिक होती हैं। अत: सर्दी के मौसम में बच्चों को ठंड से बचाना आवश्यक है जिससे उनको नजला, जुकाम न हो और कान के इन्फेक्शन को रोका जा सके।
कभी-कभी जुकाम के कारण कान के पर्दे के पीछे पानी इक_ïा हो जाता है। इस बीमारी को नान सपुरेटिव ओटाइटिस मीडिया कहते हंै। यह बीमारी भी बड़ों की अपेक्षा बच्चों में ज्यादा कॉमन होती है। इस बीमारी का अन्य कारण बच्चों में एडिनाइडस का पाया जाना होता है।
लक्षण- इस बीमारी में कान में भारीपन तथा दर्द होता है। मरीज की सुनने की क्षमता काफी कम हो जाती है।
इलाज-नान सपुरेटिव ओटाइटिस मीडिया का इलाज एंटीबायोटिक दवाएं, एंटीएलरपिक दवाएं, नेसल ड्राप्स एवं भाप की सिकाई द्वारा किया जाता है। कभी-कभी दवाओं के द्वारा आराम न होने पर कान के पर्दे में छोटा सा चीरा लगाकर (माइरिंगोटमी) पानी को निकालना पड़ता है।
बहुत अधिक सर्दी में कभी-कभी कान की नस जो चेहरे की मांसपेशियों को सप्लाई करती हैं, को फालिज़ लग जाता है जिसके कारण मरीज का मुंह टेढ़ा हो जाता है। इस बीमारी के बैल्स पैल्सी कहते हैं।
लक्षण- इसके इलाज के लिए मरीज को कोर्टिकोस्टिरोइड दवाएं दी जाती हैं। 80 -85 प्रतिशत दवाओं के द्वारा ठीक हो जाते हैं। परन्तु जिन मरीजों को दवाओं से लाभ नहीं होता। उनका इलाज नस का आपरेशन करके किया जाता है। इस ऑपरेशन को फेशियल डीकमप्रेशन कहते हैं।
बचाव- अधिक सर्दी एवं ठंड होने के दौरान कान को ढक कर रखें, खासतौर पर यदि इस मौसम में स्कूटर, मोटरसाइकिल आदि सवारी पर निकलें। अधिक सर्दी में कान के आंतरिक भाग (इनर इअर) पर भी प्रभाव पड़ता है जिसके कारण मरीज को चक्कर आने की शिकायत हो सकती है।
डॉ. से बातचीत में पूछा गया कि कान में दर्द होने पर या चींसने पर ज्यादातर पब्लिक कान में गर्म सरसों का तेल डालते है वो कितना सही है? डॉ. का कहना है कि कान में सरसों का गर्म तेल नहीं डालना चाहिए यह सेहत के लिए हानिकारक हो सकता।
इसलिए सर्दी से बच कर रहें……..
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