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 “आओ अमन की ओर लौट चलें”

ताहिर की कलम से
ताहिर की कलम से
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-ताहिर ख़ान, स्वतंत्र पत्रकार, मेरठ। 
जब-जब हिंसा होती है देश में हाहाकार मचता है। चारो तरफ़ जलती गाड़ियां,हाथों में लाठी और डंडों से पेश आने वाले प्रदर्शनकारी, इस बात की तस्दीक़ करती हैं।  इन हिंसा करने वालों के हौसले कितने बुलंद हो चले हैं। इन पर कार्रवाही भी जरूरी हो चली है। क्या हिंसा ही हर बात का समाधान है?  जी हां समय की मांग यह है कि नफरत फैलाने के मकसद वाले कुछ लोगों के जाल में फंसने की बजाय, मानव के मूल स्‍वभाव की तरफ लौटा जाए। समूचा विश्‍व हिंसा की अभूतपूर्व पकड़ में है। जहां देखो आये दिन देश हलकी सी बात पर हिंसक हो जाता है। मामले को जाने बिना ही हिंसा पर उतारू हो जाते हैं। यानी कोई भी सही तरह से इसकी वजह नहीं समझ पाता, लेकिन सवाल ये भी है कि बिना वजह किसी बात का इतना ज्‍यादा प्रभाव भी नहीं हो सकता? लेकिन ये भी सच है इतिहास में कभी भी मानव जाति ने अपना अस्तित्‍व बचाए रखने का इतना गहरा संकट कभी नहीं देखा होगा। धर्म, जाति, पंथ, राष्‍ट्रीयता को पीछे छोड़ अधिकतर मानव जाति का हिस्‍सा हिंसा के इस पागलपन के में बह उठता है। सिर्फ कुछ फीसदी ही गुमराह होने से बच पाते हैं। लेकिन अब अफवाहों का बाज़ार लगातार गर्म होने पर हिंसा जैसी तमाम घटनाएं हो रही है। 
जिस तरिके से अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के खिलाफ हालिया आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विभिन्न संगठनों द्वारा 2 अप्रैल सोमवार को बुलाए भारत बंद में देश भर से व्यापक पैमाने पर हिंसा की खबरें आ रही हैं. एससी एसटी एक्ट को लेकर भारत बंद का असर करीब आधे हिंदुस्तान में देखने को मिला है. सुबह से शुरू हुआ प्रदर्शन अब धीरे धीरे उग्र होता जा रहा है. जिसमें 9 लोगों की मौत हो गयी। जिसमें एमपी में 6 और राजस्थान में एक है। देश के करीब 10 राज्यों में हिंसा देखने को मिली है । जबरन दुकाने बन्द की गई । वहीं 

पश्चिम बंगाल में आसनसोल में रामनवमी के जुलूस के बाद भड़की हिंसा और तनाव के दौरान कई घरों और दुकानों को आग लगा दी गई.
हिंसा की आग में कई लोगों की रोजी रोटी छिन गई. ये कैसा लोकतंत्र आज़ादी का मतलब ये नहीं कि उपद्रव फैलाकर अपनी मांग मनवाई जाए। कुछ दिनों पहले संत राम रहीम के समर्थकों ने हिंसा भड़काई थी। उसमें भी कई लोगों की मौत हो गयी थी। दरअसल गुमराह होने वालों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। हिंसा करने वाले लोग तमाम मानवता के लिए खतरा बनते जा रहे हैं। अगर गौर किया जाए दुनिया की कोई भी जगह ऐसी नहीं है जो सुरक्षित बची हो, जहां हम कह सके कि यह जगह सुरक्षित है। यहां तक कि यदि कहीं से लड़ाई झगड़ों की ख़बर आ जाये तो एक डर सा महसूस होने लगता है अब खुद घर पर रहकर घर की चार दिवारी में डर बना रहता है। घर की चारदीवारी भी डराने लगी है। कोई नहीं जानता कि कब कौन हिंसक होकर पत्थर, गोली, ग्रेनेड या बम दाग जायेगा। कुछ कहा नहीं जा सकता। ये कोई नहीं जानता हिंसा से कितना बड़ा नुक्सान हो सकता है, कई निर्दोष लोग हिंसा की भेंट चढ़ जाएंगे, हिंसा से ना जाने कितने वो बच्चे मारे जाएंगे, जिन्हें अभी समाज में आना बाकी है। समाज के तौर तरीकों को सीखना बाकी है।  
यक़ीन मानिये आप इसकी कल्पना भी नहीं कर पायंगे कि किस हद तक हिंसा जा सकती है और कितना बड़ा इसका नुक्सान ग़रीब जनता को उठाना पड़ेगा। उस भीड़तंत्र का कोई रूप नहीं होता। वो ये नहीं देखती किस जाति और धर्म का है। वो जब अपना फैसला सुनाती तमाम प्रशासनिक अमला भीड़तंत्र के आगे बेबस और बोना हो जाता है। अब निश्चित रूप से राजनीतिक ठेकेदार भी अपनी रोटियां अपने तरीके से सेंकने से पीछे नहीं रहेंगे। हिंसा उस वक्त भी थोड़ी तेज़ हो जाती है जब बवालियों को राजनीतिक सह मिलनी शुरू हो जाती है। हम कभी-कभी भावनाओं में इस कदर भह जाते है नहीं समझ पाते की क्या करने जा रहे हैं। हिंसक लोगों के द्वारा किये गए कु-कृत्य जिन्हें वो खुद नहीं समझ पाते की इन सबका हल क्या है?  यहां तक संयुक्‍त राष्‍ट्र जैसी संस्‍थाओं तक को नहीं समझ आ रहा कि इसे कैसे सुलझाया जाए। कैसे हिंसा जैसे मामलों को कम किया जाये। हम अक्सर सुनते और पढ़ते आएं हैं। हमें हिंसा नहीं अहिंसा के मार्ग पर चलना चाहिए। दरअसल हिंसा के बीज हमारे दिमाग में पहले ही बो दिए जाते हैं, जाति-धर्म और कट्टरता के नाम पर, जो बाद में पेड़ और दरख़्त बन जाते हैं और ऐसी हिंसा का जहरीला फल देते हैं, जो समाज में आग की तरफ फैल जाता है। ज्यादातर युवा‍ओं का दिमाग हिंसा के इन बीजों को बोने के लिए मुफीद बनता जा रहा है। अगर देखा जाए हिंसा के ये बीज किसी जानलेवा वायरस से कम बिल्कुल नहीं है। हम किस तरह तेजी से बढ़ते चले जा रहे यहाँ पर कुछ सवाल उठने लाज़मी उस हो जाते हैं। जब हिंसा से देश सुलग रहा हो।आख़िर ये लोग कौन है जो हिंसा फैला रहे हैं? क्या इसका कारण बेरोजगारी तो नहीं है। कहीं लोगों का अशिक्षित होना तो नहीं है? जो समाज को पतन की और ले जा रहे हैं। वह भी ऐसे वक्‍त में, जब दुनिया में कोई ऐसा नेता नहीं है जिसे हम एक रोल मॉडल मान सकें। राजनीतिक बहस बेहद घटिया और नकरात्‍मक हो चली है, शाम को “प्राइम टाइम” में आपको हिन्दू-मुस्लिम डिबेट देखने को लगातार मिलती रहेगी। यानी कहा जाए मीडिया की दुनिया के पास भी कुछ सकरात्‍मक दिखाने को नहीं है। क्योंकि यदि दिखाने को होता तो आपको हिन्दू-मुस्लिम वाले मुद्दे देखने को नहीं मिलते। ऐसे में हिंसा से छुटकारा सिर्फ और सिर्फ विचारों के आदान-प्रदान से ही हो सकता है यह एक ऐसा अांदोलन होगा जो समूचे विश्‍व को बांटने की बजाय जोड़ेगा। यदि इस विषय पर काम किया जाए, हिंसा मुक्‍त विश्‍व बनाने में हमें काफी लंबा समय लगे, लेकिन हमें शुरुआत करने की जरूरत है। अब आखिर शुरुआत करेगा कौन? हमें फिर से शांति और अहिंसा को पूरी दुनिया में फिर से फैलाने की जरूरत है। वो जाति-धर्म और भाईचारे की मिशाल कायम करके हिंसा जैसे मामलों को रोका जा सकता है। चूंकि हमारा मूल सिद्धांत ही अहिंसा है तो इस आंदोलन की शुरुआत करने के लिए भारत जिसे सोने की चिड़िया कहा गया हो से बेहतर जगह क्‍या होगा तो आओ मिलकर एक शुरुआत करें एक शानदार भारत की। मुझे पूरा यक़ीन और विश्‍वास है कि ऐसा जल्‍द होगा। हिंसा और आंदोलनों पर कुछ हद तक रोक लगेगी। 

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