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हमारा भारत आजादी से पहले सोने कि चिडियां कहा जाता था. लेकिन आजादी के बाद अंग्रजों से आजाद तो हो गए लेकिन आज हम भ्रष्टाचार रूपी रावण के पूरी तरह से गुलाम बने हुएं हैं. क्या यह हमारा भारत है? क्या इस तरह से हम आने वाली पीढ़ी को भ्रष्टाचार से बचा पायेंगे? क्या उनके जीवन को सुरक्षित कर पायेंगें? ये अपने आप में एक बड़ा सवाल है. (किसी भी देश का अपना इतिहास होता है, परम्परा होती है. यदि हम देश को शरीर माने तो, संस्कृति उसकी आत्मा होती है, या शरीर मे दौड़ने वाला रक्त होता है या फिर सांस…..जो शरीर को चलाने के लिये अतिआवश्यक है. किसी भी संस्कृति में अनेक आदर्श रहते हैं, आदर्श मूल्य है, और मूल्यों का मुख्य संवाहक संस्कृति होती है.) यदि हम अपने भविष्य को बनाना चाहते हैं तो वास्तव में इसकी सुरुआत खुद से ही करनी होगी न तो किसी को घूश होगी और न ही देनी होगी. भ्रष्टाचार के इस रोग के कारण हमारे भारत देश का कितना नुकसान हो रहा है, इसका अनुमान लगाना भी मुश्किल है. पर इतना तो साफ़ दिखता है कि सरकार द्वारा चलाई गयी अनेक योजनाओं का लाभ सिर्फ ऊंचे पद पर बैठे अधिकारियो को मिलता हें. लेकिन गरीब जनता तक नही पहुंच पाता है. इसके लिये सरकारी मशीनरी के साथ ही साथ जनता भी दोषी है. भ्रष्टाचार किस प्रकार देश को घुन की तरह खाये जा रहा है उसका सबसे बड़ा उदाहरण तो हमारे नेतागण हैं. सभी जानते हैं कि उनको अपने कार्य के लिये कितना वेतन और भत्ता मिलता है? परन्तु देखते ही देखते उनके महल खड़े हो जाते हैं, आखिर कहां से आते हें ये पैसे? क्या किसी ने कभी सोचा हें? यदि सोचा होता तो ये नेतागण गरीब जनता कि मेहनत कि कमाई का मजा ये नही ले रहे होते. करोड़ों की अचल सम्पत्ति बन जाती है और अच्छा-खासा बैंक बैलेंस जमा हो जाता है. और आश्चर्य की बात तो यह है कि लोग इस विषय में ऐसे बात करते हैं कि जैसे यह एक आम बात हो. जिस जनता ने उनको चुनकर संसद या विधानसभा तक पहुँचाया है, वह तक प्रश्न नहीं करती कि उनके पास इतना धन आया कहां से? लोग यह भी नहीं सोचते कि जो पैसा आम जनता से कर के रूप में वसूला जाता है, देश की अवसंरचना के विकास के लिये, उसका न जाने कितना बड़ा हिस्सा तो इन लोक प्रतिनिधियों के जेब में चला जाता है. देश को अन्दर ही अन्दर भ्रष्टाचार रूपी रावण घुन कि तरह खाए जा रहा है. कभी कभी मेरे अंग्रेज और अन्य अभारतीय मित्र मेरे से कई तरह के सवाल पूछते है, जैसे हमारी संस्कृति कैसी है, हमारे इतने सारे देवी देवता क्यों है, अगर हम सभी एक जैसे है तो हमारे यहाँ विभिन्न प्रकार की जातिया प्रजातिया क्यों है? वर्ण सिस्टम का क्या महत्व है? और हमारे हर त्योहारों के साथ कोई ना कोई कथा क्यो जुड़ी हुई है? भारत मे इतनी भाषाओ के बावजूद कौन सी चीज लोगो को जोड़े रखती है? जब आप लोग अपने को एक मानते हो तो फिर दंगे फसाद क्यो होते है, आपके धर्म और संस्कृति मे इतने विरोधाभास क्यों है? आखिर क्यों भाई को भाई और माता-पिता को बेटा मार डालता है. क्या आज का भारत है? आज का भारत वो होता जब माता-पिता को देवताओं के सामन पूजा जाता.जब समय आने पर भाई-भाई का काम निकालता….ये होता आज का भारत.
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