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‘झुकती है दुनिया झुकाने वाला चाहिए’…..

ताहिर की कलम से
ताहिर की कलम से
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‘झुकती है दुनिया झुकाने वाला चाहिए’…..
दे दी हमे आजादी बिना खडग बिना ढाल रालेगण सिद्धि के संत अन्ना हजारे तुने कर दिया कमाल
जी हां, ये पंक्तियाँ इसलिए चरितार्थ हो रही हैं.क्योकि अब लगभग पूरा देश अन्ना के आन्दोलन में जुड़ चुका है.पहले 1975 के आन्दोलन में मीडिया उस तरह का नहीं था,जिस तरह का आज का हो चुका है. हालांकि ऐसी बातों का आंदोलनों पर असर जरूर पड़ता है। मंगलवार को टीम अन्ना से निपटने में दिल्ली पुलिस ने जो अपेक्षाकृत अधिक संयम बरता, उसका एक बड़ा कारण यह भी था कि उसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का ध्यान रखना था। घटनाओं के लाइव कवरेज की ताकत के कारण यह मीडिया तत्क्षण जनमत बना या बिगाड़ सकता है। जेपी को 25 जून, 1975 की रात में गांधी शांति प्रतिष्ठान से गिरफ्तार करके पार्लियामेंट थाना लाया गया था, कल्पना कीजिए कि तब आज की तरह लाइव कवरेज हो रहा होता, तो क्या होता? उसके पहले चार नवंबर 1974 को पटना में सीआरपी के एक जवान ने प्रदर्शन के दौरान जेपी के सिर पर लाठी चला दी थी। उसे नानाजी देशमुख ने बीच में ही रोक लिया था, जिससे जेपी बच गए। यदि उस ऐतिहासिक दृश्य का लाइव कवरेज हुआ होता, तो आंदोलन को कितनी गति मिल जाती?
जेपी स्वतंत्रता आंदोलन के एक बड़े नेता थे और उन्हें आंदोलन करके खुद गद्दी नहीं संभालनी थी, इसलिए तब के मीडिया के एक बड़े हिस्से का सहयोग उनके आंदोलन के कवरेज में मिलता था, पर आज जैसी स्थिति नहीं थी। क्योंकि तब दूसरे पक्ष में इंदिरा गांधी जैसी एक ताकतवर प्रधानमंत्री भी थीं, जिनसे कुछ अपवादों को छोड़कर तकरीबन हर मीडिया घराना सहमता था। आज तो अधिकतर मीडिया घराने निडर होकर एक गठबंधन केंद्र सरकार के जमाने में काम कर रहे हैं। इंटरनेट पर तो लगभग कोई अंकुश ही नहीं है।
हालांकि बात यह भी है कि देशव्यापी भीषण भ्रष्टाचार से पीड़ित लोगों में मीडिया से जुड़े लोगबाग और उनके बाल-बच्चे भी हैं। इसलिए एक बदली हुई राजनीतिक परिस्थिति में मीडिया का एक हिस्सा अति उत्साह में भी सहयोग के साथ-साथ अन्ना-स्वामी रामदेव को बिन मांगे अपनी सलाहें दे रहा है। सन 1974 में बिहार आंदोलन शुरू हुआ और जून 1975 में आपतकाल लग गया था। यानी करीब सवा साल तक आंदोलन चला। आपातकाल में तो भूमिगत आंदोलन था। यदि आज की तरह मीडिया विस्फोट तब हुआ होता, तो शायद जून 1975 से पहले ही आपातकाल लग गया होता। लेकिन अभी भी देखा जाए तो स्थिति उस दौर से कम नहीं है.पूरे देश में सरकार के प्रति हाय-होल्ला मचा हुआ है. सरकार को लोकपाल बिल पास करना ही होगा.

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