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बंटवारे कि राजनीति को जनसमर्थन कहां से मिलता है

ताहिर की कलम से
ताहिर की कलम से
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सीधे-सपाट और त्वरित निर्णय शक्ति से रची उनकी राजनीति कि यह बड़ी ताकत है कि फैसले को अंजाम देने में किसी ·कि मुंह ताकने कि जरूरत या किसी से कोई मशवरा लेना नहीं। भले ही फैसला लाभ या हानि में तब्दील हो जाए लेकिन फैसला तो सटीक और राजनीति को अपनी और घुमा देने वाला ही होता है। तो विधानसभा में ध्वनिमत से पूर्वांचल, बुंदेलखण्ड, अवध और पश्चिमी प्रदेश बनाने का प्रस्ताव पारित हो गया है वह चाहे आगे जो शक्ल अख्तियार करे लेकिन मायावती ने अपना काम कर दिया है। मुख्यमंत्री मायावती विपक्ष के भारी विरोध के बावजूद उत्तर प्रदेश को चार हिस्सों में बांटने का प्रस्ताव विधानसभा में सिर्फ दस मिनट से भी कम समय में पारित कर दिया गया। मायावती ने सोमवार को सदन में एक लाइन का प्रस्ताव रखा जिसे शोरगुल के बीच ध्वनिमत से मंजूर कर लिया गया। इसके बाद सदन को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया। प्रस्ताव में उत्तर प्रदेश को पूर्वांचल, पश्चिम प्रदेश, बुंदेलखंड और अवध प्रदेश में विभाजित करने का प्रावधान है। सदन में सिर्फ राज्य के चार हिस्सों में विभाजन और वित्तीय वर्ष 2012-13 के लिए लेखानुदान पारित हुआ। विपक्षी पार्टियों का कहना है कि यह प्रस्ताव राज्य पुनर्गठन आयोग पर छोडना चाहिए था। यह तो राजनीति और रणनीति कि बात है। अब यह प्रस्ताव विधान परिषद से पारित होने के बाद लखनऊ से दिल्ली यानी केंद्र सरकार के पास जाएगा। ·केंद्र सरकार के पाले में डालकर मायावती ने लम्बे समय से इन क्षेत्रों में प्रदेश बनाने कि चली आ रही मांग को धार और रफ्तार दोनों ही दे दिया है। लेकिन बंटवारे को लेकर चाहे तेलंगाना का हो या फिर अन्य क्षेत्रों का-राजनीति से अलग बात कि जाए तो हमें यह विचार करना चाहिए आखिर बंटवारे कि राजनीति को जनसमर्थन कहां से मिलता है?
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