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जी हां हम बात कर रहे हैं योग की योग का वैसे तो कोई मज़हब नज़र नहीं आता आपस में एक-एक को जोड़ना भी योग कहलाता है लेकिन पिछले कई दिनों से कई सियासी पार्टियों में छिड़ी रार और तमाम टीवी चैनलों पर चल रही डिबेट को देखते और सुनते हुए मन में सवाल खड़े कर दिए की योग को किस श्रेणी में रखा जाता है। योग हिन्दू कैसे हो सकता है? या ये सियासी लोगों ने अपनी रोटियां सेकने का कोई धर्म जैसा समझ लिया है। अंतराष्ट्रीय योग दिवस के दिन योग को लेकर चल रहे विवाद के बीच खबर ये भी आई है की लखनऊ की एक मुस्लिम दंपति ने 21 जून को योग सीखने की जिम्मेदारी ली है। अब सवाल ये खड़ा हो जाता है की क्या योगा का कोई साइड इफ़ेक्ट होता है जो हिन्दू लोगों को नहीं होगा और मुस्लिम लोगों को हो जाएगा? योग पर हिन्दू-मुसलमान क्यों? क्या योग का कोई धर्म होता है। क्या ये योग पर राजनीति चमकाने की कोशिश तो नहीं? जो शरीर को तंदरुस्त रखे उसमे आपत्ति क्या है। योग केवल इंसान के लिए है आत्मिक आर्थिक उन्नति के लिए योगा किया जाय। इसे हिन्दू-मुस्लिम के रूप में न देखा जाय तो ही अपने आप को स्वास्थ्य रखा जा सकता है।
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