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दरशल लगता हा सरकार को कभी गरीबी से जूझना नही पड़ा. तभी तो गरीबी का मजाक उड़ा दिया. केंद्र सरकार ने हाल ही पेट्रोल के दाम बढ़ाकर जनता का चैन तो छीना ही, अब यह भी बता दिया कि देश में गरीब होना आसान नहीं है। योजना आयोग ने गरीबी की नई परिभाषा गढ़ दी है। विपक्ष ने सरकार पर गरीबी नहीं गरीबों को ही हटाने का आरोप लगाते हुए हल्ला बोल दिया है। विपक्ष ने इसे गरीबों का अपमान और उनके साथ विश्वासघात बताया है। योजना आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि खानपान पर शहरों में 965 रुपये और गांवों में 781 रुपये प्रति महीना खर्च करने वाले शख्स को गरीब नहीं माना जा सकता है। गरीबी रेखा की नई परिभाषा तय करते हुए योजना आयोग ने कहा कि इस तरह शहर में 32 रुपये और गांव में हर रोज 26 रुपये खर्च करने वाला शख्स बीपीएल परिवारों को मिलने वाली सुविधा को पाने का हकदार नहीं है। अपनी यह रिपोर्ट योजना आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को हलफनामे के तौर पर दी है। इस रिपोर्ट पर खुद प्रधानमंत्री ने हस्ताक्षर किए हैं। आयोग ने गरीबी रेखा पर नया क्राइटीरिया सुझाते हुए कहा है कि दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और चेन्नै में चार सदस्यों वाला परिवार यदि महीने में 3860 रुपये खर्च करता है, तो वह गरीब नहीं कहा जा सकता। इस हास्यास्पद परिभाषा पर हो- हल्ला मचना शुरू हो चुका है। रिपोर्ट के मुताबिक, एक दिन में एक आदमी प्रति दिन अगर 5.50 रुपये दाल पर, 1.02 रुपये चावल-रोटी पर, 2.33 रुपये दूध, 1.55 रुपये तेल, 1.95 रुपये साग-सब्जी, 44 पैसे फल पर, 70 पैसे चीनी पर, 78 पैसे नमक व मसालों पर, 1.51 पैसे अन्य खाद्य पदार्थों पर, 3.75 पैसे ईंधन पर खर्च करे तो वह एक स्वस्थ्य जीवन यापन कर सकता है। साथ में एक व्यक्ति अगर 49.10 रुपये मासिक किराया दे तो आराम से जीवन बिता सकता है और उसे गरीब नहीं कहा जाएगा। अब सरकार से यही पूछ लिया जाए कि आखिर गरीब कौन है?
इसे आर्थिक असमानता की सबसे चौड़ी खाई या फिर तुलनात्मक विवरण की पराकाष्ठा कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए। विश्व के सबसे बड़े मानवीय संगठन आईएफआरसी का कहना है कि विश्व के तकरीबन एक अरब से ज्यादा लोगों को एक तरफ जहां दो वक्त की रोटी नसीब नहीं होती और उन्हें रात में भूखे पेट सोना पड़ता है वहीं इससे ज्यादा लोग अत्यधिक पोषण के कारण मौत के मुंह में समा जाते हैं. लेकिन योजना आयोग को कोई गरीब नज़र नही आता.
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