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समझौते की भेंट क्यों चढ़ जाते हैं वैवाहिक स्वप्न !!

सरोकार
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शादी विवाह का मौसम है, सौभाग्यवश मुझे भी इस मौसम का लुत्फ उठाने का अवसर प्राप्त हुआ. अभी कुछ दिन पहले मेरी बेस्ट-फ्रेंड के भाई की शादी थी. जाना तो जरूरी था ही, लेकिन शायद मैंने यह कभी नहीं सोचा था कि यह शादी मुझे बहुत कुछ सोचने के लिए विवश कर देगी. हालांकि विवाह से वापस लौटने के साथ ही अंतर्द्वंदों का सिलसिला भी शुरू हो गया था लेकिन उन्हें शब्दों में उतारने का समय आज मिला है.


marriageमेरी दोस्त और मेरी पारिवारिक पृष्ठभूमि पूरी तरह भिन्न है. मैं दिल्ली से संबंध रखती हूं और वो और उसका परिवार ठेठ उत्तर-प्रदेश से. यहीं कारण है कि उनके रिवाज और विवाह संबंधी अन्य व्यवस्थाएं हमारे परिवार से बहुत अलग थी. ऑफिस में व्यस्त होने के कारण मैं विवाह से पूर्व किसी भी  प्रोग्राम का हिस्सा नहीं बन सकी , इसीलिए केवल शादी में हुए अपने अनुभव ही बांट  रही हूं. बारात निकलने के साथ ही मौज-मस्ती और नाच-गाना शुरू हो गया. शायद विवाह स्थल घर से बस 15 मिनट ही दर था जहां पहुंचने में हमें 3 घंटे से भी अधिक समय लग गया. खैर, विवाह जीवन में एक ही बार होता है तो इसे धूमधाम से मनाना भी हमारा अधिकार ही है.


लेकिन विवाह के दौरान जो बात मुझे सबसे ज्यादा खटकी वह थी वधु पक्ष वालों का झुका हुआ सिर!! बारात के स्वागत के साथ ही शुरू हो गया उनके साथ होते द्वितीय दर्जे का सा बर्ताव. वैसे तो मुझे भी विवाह संस्कारों और रिवाजों  के विषय में ज्यादा समझ नहीं है लेकिन यहां मेरे आशय केवल वैयक्तिक इच्छाओं और आत्म-सम्मान से ही है.


हो सकता है यह सब भी रिवाज का एक हिस्सा हो लेकिन क्या विवाह से जुड़े सभी रस्मों-रिवाज को हंसी-खुशी संपन्न करना केवल वर पक्ष का ही अधिकार है?बाकी सब घटनाएं विवाह समारोह में कई बार देखी जाती है. वर-पक्ष का लड़की वालों के साथ अशोभनीय मजाक करना, उनके द्वारा की गई खातिरदारी में कमियां निकालना, तमाम व्यवस्थाओं पर प्रश्नचिंह लगाना आदि लेकिन जिस घटना ने मुझे सबसे ज्यादा परेशान किया वह था वधु का नाम परिवर्तन !! एक अच्छे इंसान से विवाह करना शायद हर लड़की का सपना होता है लेकिन शायद इस ओर कोई ध्यान नहीं देता कि हर सपने की एक कीमत होती है.


अब इसे संयोग ही कहेंगे कि मेरी सहेली और उसकी होने वाली भाभी का नाम एक ही था, मुझे नहीं लगता कि अगर परिवार में दो लोगों का नाम एक ही है तो इससे कोई खास परेशानी हो सकती है. लेकिन फिर भी नव-वधु को अपने उपनाम के साथ-साथ अपने उस नाम को भी  त्यागना पड़ा जो शायद उसकी पहचान बन गया था.  क्या विवाह का मतलब पूरी तरह अपनी पहचान को गंवा देना है. सरनेम को बदलना एक सामाजिक परंपरा बन गया है, जिसे जैसे-तैसे अपना लिया गया है लेकिन अब नाम को भी बदले जाने का सिलसिला शुरू हो गया है, वो भी सिर्फ इसीलिए क्योंकि इस नाम की एक लड़की पहले भी मौजूद है. क्या यह इतनी बड़ी समस्या है जिसे समाप्त करने के लिए किसी से उसका नाम, उसकी पहचान ही छीन ली जाएं? वैसे यह कोई पहला वाक्या नहीं है, क्योंकि इससे पहले भी मैं कुंडली के दोषों के कारण या फिर अन्य किसी कारण से विवाह के समय नाम बदलने की घटनाएं देख चुकी हूं. लेकिन इन सभी घटनाओं में कहीं भी लड़के के नाम बदलकर विवाह करने जैसी बात मैंने आज तक कहीं नहीं देखी. हां, अंकशास्त्र या फिर व्यक्तिगत उन्नति के लिए अपना नाम बदला जाए तो इसे हम समझौता करना नहीं कहेंगे क्योंकि समझौता करना केवल महिलाओं का ही दायित्व जो है. पहले अपने उस परिवार को छोड़ना जहां उसने अपने जीवन के सबसे खूबसूरत क्षण व्यतीत किए हैं,  फिर विवाह के पश्चात नए उपनाम को अपनाना और अब इससे भी जी ना भरे तो ससुराल वालों द्वारा दिए गए नाम का ताउम्र निर्वाह करना.


जबकि आज हमारा समाज एक ऐसे दौर से गुजर रहा है जब व्यक्तिगत अपेक्षाओं और अस्तित्व के मायनें अत्याधिक बढ़ चुके हैं. ऐसे में सरनेम के साथ-साथ अपने नाम के साथ भी समझौता करने जैसी बातें मुझे बिल्कुल सही नहीं लगती. भले ही महिलाओं को विवाह के पश्चात किसी दूसरे घर का सदस्य बनना हो लेकिन उनकी सदस्यता प्राप्त करने के लिए अपने नाम, अपनी पहचान को पीछे छोड़ देना कितना न्यायसंगत है, कृप्या कर मुझे इसका उत्तर अवश्य दें.


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